किसी देश अथवा किसी भी क्षेत्र में लोगों के बारे में विधिवत रूप से सूचना प्राप्त करना एवं उसे अभिलेख के रुपमें संग्रह करना जनगणना ( CENSUS ) कहलाती है. यह निश्चित समान्तराल के पश्चात शासकीय आदेश के तहत की जाती है.
भारत की जनगणना प्रथम सन 1872 में ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड मेयो के कार्यकाल में कराई गई थी. और सन
2011 तक भारत की जनगणना 15 बार की जा चुकी है. हालाकि भारत की पहली संपूर्ण जनगणना 1881 में हुई थी. सन 1949 के बाद से यह भारत सरकार के गृह मंत्रालय के अधीन भारत के महारजिस्ट्रार एवं जनगणना आयुक्त द्वारा कराई जाती है.
आप को बता दे की सन 1951 के बाद की सभी जनगणनाएं 1948 की जनगणना अधिनियम के तहत कराई गईं है. 1948 का भारतीय जनगणना अधिनियम केंद्र सरकार को किसी भी विशेष तिथि पर जनगणना करने या अधिसूचित अवधि में अपना डेटा जारी करने के लिए बाध्य नहीं करता है.
भारत में अंतिम जनगणना 2011 में कराई गई थी, जबकि अगली 16वीं गणना सन 2021 में कराया जाना था. लेकिन इसे COVID-19 महामारी के कारण स्थगित कर दिया गया था.
मौर्य प्रशासन में जनगणना करना एक नियमित प्रक्रिया थी. मौर्य साम्राज्य में व्यापारियों, कृषकों, लुहारों, कुम्हारों, बढ़इयों आदि जैसे लोगों के विभिन्न वर्गों की गणना करने के लिए ग्रामीण अधिकारी (ग्रामिक) और नगरपालिका अधिकारी (नागरिक) जिम्मेदार थे.
स्वतंत्रता से पहले भारत की जनगणना
के आंकड़े का अवलोकन :
1872 की भारतीय जनगणना.
1881 की भारतीय जनगणना.
1891 की भारतीय जनगणना.
1901 की भारतीय जनगणना.
1911 की भारतीय जनगणना.
1921 की भारतीय जनगणना.
1931 की भारतीय जनगणना.
1941 की भारतीय जनगणना.
उसके बाद स्वतंत्र भारत की जनगणना:
1951 की भारतीय जनगणना
1961 की भारतीय जनगणना
1971 की भारतीय जनगणना
1981 की भारतीय जनगणना
1991 की भारतीय जनगणना
2001 की भारतीय जनगणना
2011 की भारतीय जनगणना
2021 की भारतीय जनगणना अब तक करोना काल की वजह नही हो पाई है.
भारत सरकार द्वारा जनगणना के लिए घरों की लिस्टिंग और नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर को अपडेट करने का काम ता : 1 अप्रैल से 30 सितंबर 2020 के बीच होना तय था, लेकिन कोरोना महामारी की वजह से इसे टाल दिया गया. तब से लगातार तारीख बढ़ाई जा रही है.
वर्तमान में ऑफिस ऑफ रजिस्ट्रार एंड सेंसस ने सभी राज्यों को 30 जून 2023 तक प्रशासनिक सीमाएं फ्रीज करने को कहा है. कानून के मुताबिक, किसी क्षेत्र की सीमाएं तय होने के 3 महीने बाद ही जनगणना शुरू हो सकती है. इसीलिए फिलहाल ता : 30 सितंबर 2023 तक जनगणना शुरू नहीं हो पाएगी.
हर जनगणना से पहले राज्यों को प्रखंड , गांव , शहर , कस्बा , तालुका , पंचायत, पुलिस स्टेशन आदि के नाम और क्षेत्रकी विविध प्रकारकी जानकारी रजिस्ट्रार जनरल एंड सेंसस कमिश्नर ऑफ इंडिया (RGI) को देना होता है. जिस किसी भी जगह का नाम या जियोग्राफी बदलती है, उसकी भी जानकारी RGI को दी जाती है. इसके 3 महीने बाद जनगणना शुरू होती है.
जनगणना की तारीख आगे बढ़ाने के पीछे क्या कारण हो सकता है ? इस विषय में जानकारों का कहना है कि जनगणना में लेट होने की एक वजह जाति जनगणना की मांग भी हो सकती है. बिहार, यूपी, महाराष्ट्रऔर कई राज्यों में कई राजनीतिक दल जाति आधारित जनगणना की मांग कर रहे हैं.
सन 2024 चुनाव से पहले यदि जनगणना में जाति गणना शामिल नहीं होती है तो OBC समुदाय केंद्र सरकार के खिलाफ आंदोलन कर सकते है. इस से उनका वोट बैंक खिसक सकता है! संभव है कि इस वजह से केंद्र सरकार जनगणना टाल रही हो!
भारत में जनगणना के 150 साल के इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा है. 81 साल पहले सन 1941 में अंतिम बार सेंसस अपने तय समय से लेट हुआ था, तब दुनिया में द्वितीय विश्व युद्ध चल रहा था. हालांकि तब भी समय पर ही सर्वे करके डेटा जुटाया गया था, लेकिन इस डेटा को व्यवस्थित करने में वक्त लग गया था.
सन 1961 में भारत और चीन के बीच लड़ाई हो या फिर सन 1971 में बांग्लादेश को अलग करने के लिए पाकिस्तान से जंग. दोनों ही मौकों पर समय से जनगणना की गई.
समय पर जनगणना नहीं होने की एक बड़ी समस्या ये है कि डेटा गैप हो जाता है, जिससे एक खास समय का डेटा नहीं होता. जनगणना में लेट होने की वजह से करीब 10 करोड़ से ज्यादा लोगों को खाद्य सुरक्षा काननू के तहत फ्री में आनाज नहीं मिल रहा है. इसकी वजह यह है कि 2011 की जनगणना के आंकड़ों के आधार पर वर्ष 2013 में 80 करोड़ लोग फ्री में राशन लेने के योग्य थे, मगर जनसंख्या में अनुमानित इजाफा के साथ 2020 में यह आंकड़ा 92.2 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान था.
अमेरिका में कोरोना पीक पर होने के बावजूद 2020 में जनगणना कराई गई थी. इसी तरह से इंग्लैंड, स्कॉटलैंड, यूके और आयरलैंड में अलग-अलग एजेंसियों ने कोरोना लहर के दौरान तय समय पर जनगणना के लिए डेटा जुटाना शुरू कर दिया था.
पड़ोसी देश चीन ने भी अपने यहां कोरोना महामारी के दौरान तय समय पर जनगणना कराई थी. यहां सेंसस के बाद मेजर फाइंडिंग सामने आ गई हैं.
जिस रफ़्तार से भारत की जनसंख्या बढ़ रही है, उसे देखते हुए ये चाइना की जनसंख्या को भारत सन 2023 तक पार कर जायेगा और विश्व का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन जायेगा.
विश्व का सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश चीन है. जबकि भारत का स्थान दूसरे नंबर पर है. कोरोना काल की वजह से सन 2021की जनगणना नही हो पाई. मगर एक अनुमान के अनुसार वर्तमान 2022 में भारत की जनसंख्या करीब 1,404,234,872 (140 करोड़ ) आंकी जाती है. ई. सन 1930- 32 मे भारत की आबादी 60 करोड़ थी, आज 140 करोड़ हो गई है.
ता : 11 जुलाई को जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि सन 2022 में चीन की जनसंख्या 1.426 अरब है, जबकि भारत की जनसंख्या 1.412 अरब है. इस लिहाज से भारत अगली जनसंख्या तक जनसंख्या के मामले में चीन से आगे निकल जायेगा और दुनिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश हमारा भारत बन जायेगा.
संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि सन 2023 में भारत की आबादी चीन से ज्यादा हो जाएगी. 2050 तक चीन की आबादी 131 करोड़ तो भारत देश की 166 करोड़ होने का अनुमान है.
दशकीय जनगणना के संचालन की जिम्मेदारी भारत के महारजिस्ट्रार एवं जनगणना आयुक्त का कार्यालय, गृह मंत्रालय, भारत सरकार के पास है.
आज़ादी हासिल करने के बाद जब भारत ने साल 1951 में पहली बार जनगणना की, तो केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से जुड़े लोगों को जाति के नाम पर वर्गीकृत किया गया था.
तब से लेकर आज तक भारत सरकार ने एक नीतिगत फ़ैसले के तहत जातिगत जनगणना से परहेज़ किया और सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मसले से जुड़े मामलों में दोहराया कि क़ानून के हिसाब से जातिगत जनगणना नहीं की जा सकती, क्योंकि संविधान जनसंख्या को मानता है, जाति या धर्म को नहीं.
जातिगत जनगणना क्या है :
जाति के आधार पर लोगों की गणना करने को ही जातीय जनगणना कहा जाता है.
जातीय जनगणना की क्या जरुरत :
कई लोगोंको मानना है कि जातीय जनगणना का आंकड़ा पता चलने से पिछड़ी जातियों को आरक्षण का लाभ देकर उन्हें सशक्त बनाया जा सकता है. इसके अलावा यह भी तर्क दिया जाता है कि जातीय जनगणना से किसी भी जाति की आर्थिक, सामाजिक और शिक्षा की वास्तविक स्थिति का पता चल पाएगा. इससे उन जातियों के लिए विकास की योजनाएं बनाने में आसानी होगी.
राष्ट्रीय जनगणना एक महंगी रीति है. इसमे जनसंख्या की प्रत्येक वस्तु का बारीकीसे निरीक्षण करना होता है. और इसमें डेटा एकत्र करने के लिए बहुत अधिक जनशक्ति की आवश्यकता होती है. जनगणना की जांच में त्रुटियों की कई संभावना हो सकती हैं. फिरभी ये होना आवश्यक है