जीने की कला – मनुष्य स्वभाव| Jine Ki kala – Human Nature.

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कुदरत ( ईश्वर )भी कमालकी चीज है. ना तो वो दिखता है, ना तो वो बोलता है. फिरभी सुनता सबका है. उसके दरबार में देर है मगर अंधेर कतई नहीं है. उसकी लाठी निरंतर चलते रहती है , पर दिखती नहीं है. उसका न्याय सर्वोपरि है. 

        ईश्वर उदर की साइज के अनुसार सबको खाना भी देता है. चीटी को कण तो हाथी को मण देता है. एक विशाल वृक्ष के बाजुमें एक छोटा पौधा उगता है, तो कुदरत दोनोकी उदर पूर्ति करता हैं. दोनों मेसे कोई भूखा नहीं रहता. 

         सर्प को अपनी स्व रक्षा के लिये जहर दिया. बिंछू को जहरीला दंश दिया. गिरगिट को स्व रक्षा के लिये अपना रंग बदलनेकी कला दी. बाघ – सिंह को मुहके दांत और पंजे में तीक्ष्ण नाख़ून दिये. हिरण को भागनेकी गति दी. गधे को लात मारने की कला दी . मनुस्य को दिमागी शैतानी दी, और जिससे वो नित नये तरीके ढूंढते रहता है. सिंह को गर्जना दी. सुर्य को रोशनी स्वभाव, बंदरों को उछल कूद का स्वभाव , उल्लू को रात में जागनेका स्वभाव दिया. घी को गरमी से पिगलनेका स्वभाव दिया. 

        कुदरत ने हर जीव जंतु , पशु , पक्षी , प्राणी , मछली , जलचर , भू चर सबको अपना अपना स्वभाव दिया है. एक छोटीसी लोग कहानी मित्रों के साथ शेर करना जरूर चाहूंगा. हो सकता हैं, आपमे से बहोत लोग इसे जानते होंगे. 

        एक ब्राह्मण नदी किनारे नहा रहा था. नदी किनारे एक पेड़ था. उपर पेड़ से एक बिंछू पानीमे गिरा. बिंछू बचनेके लिये छटपटाने लगा. ब्राह्मण ने देखा, उसने तुरंत अपनी हथेली में लिया और किनारे पर छोड़ आया. मगर ईस दौरान बिंछू ने ब्राह्मण को दंश मारके काटा. 

          फिर ब्राह्मण नहाने चला गया. कुछ देर बाद फिर बिंछू पानीमे आया. ब्राह्मण ने दया करके फिर हथेली पर लिया और जमीन पर छोड़ आया. ईस दौरान बिंछू फिर उसे काटा. ब्राह्मण फिर नहाने चला गया. कुछ देर बाद तीसरी बार बिंछू पानी में आया. ब्राह्मण ने फिर उसको हथेली में लेकर जमीन पर छोड़ दिया. बिंछू फिर ब्राह्मण को काटा. 

         किनारे पर एक सज्जन बैठे ये. यह सब देख रहा था. 

वो ब्राह्मण को बोला, हे ! विप्र ये बिंछू आपको बार बार काट रहा हे फिर भी आप उसे हर बार बचा रहे हो ? 

      ब्राह्मण बोला, वत्स ! काटना, डंस देना बिंछू का गुण धर्म ( स्वभाव ) हे. वो जब अपना गुण धर्म नहीं छोड़ रहा हे तो मैं तो ब्राह्मण हु, मेरा धरम किसीको बचानेका है. 

       बिंछू जब अपना काटनेके गुण धर्म नहीं छोड़ रहा हे तो मैं कैसे मेरा बचानेका धर्म छोड़ शकता हु….?

ईस छोटीसी कहानी, बहुत कुछ कह जाती है. ये हमें जीनेकी राह सिखाती हे. 

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                              शिव सर्जन

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