जूता, हमारे पेरोंका रक्षक.| Shoe, protector of our feet

shoes

कल के लिए पोस्ट क्या लिखनी है ? सोच रहा था. मै असमंजस मे था. तब बच्चा मम्मी से बोला, मम्मी, मम्मी मेरे जूते…… !. मुझे विषय मिल गया. सोचा जूते के बारेमे कुछ लिखा जाय !. मन ही मन सोचने लगा. 

     मेरे मन मस्तिक मे विचारों का प्रवाह दौड़ने लगा. मैंने मोबाइल उठाया लिखने लगा….. 

      प्रथम रामायण का वो प्रसंग याद आया, जिसमे वनवास गमन के समय भाई श्री भरत द्वारा राज सिँहासन पर रखनेके लिए श्री राम जी से ” पादुका ” मांगनेका का वर्णन किया गया है. 

          मतलब त्रेता युग से ” पादुका.” पादत्राण, जूता का चलन था ये बात तो पक्की हो गयी. वास्तव मे देखा जाय तो आदि काल से जूते पहननेका चलन था. कोई इतिहास कार उसे आजसे 6000 साल पहलेसे तो कोई इतिहास कार उसे 15000 साल पहलेसे बताते हैँ. 

         मगर तब आजकी तरह कैनवास , चमड़े के जूतेका जमाना नहीं था. तत्कालीन लोग लकड़ी के बनाये जूतोंका इस्तेमाल करते थे ! पैर के आकार का तलवा बनाकर अंगूठे के पास लकड़े का एक आधार रखा जाता था. जिसके सहारे अंगूठे से लकड़े के पादत्राण को उठाया जाता था. उसे चरण ” पादुका ” बोला जाता था. 

        फिर आगे चलकर नित नये अविष्कार हुए. जिसमे चमड़ा सबसे ज्यादा कारगर हुआ. आज तक बूट , चप्पल बनानेमें उसका उपयोग किया जा रहा है. 

    प्लास्टिक – रबर की बनी गमबूट भी ज्यादा प्रसिद्ध हुई , क्योंकि वह कीचड़ भरे एरिया या खेतोंमें काम करनेके लिए सुविधा जनक होती है. विषारु जीव जंतु और सर्प डंस से बचनेके लिए लोग गावोंमें इसका ज्यादा उपयोग करते है. 

 रबर की स्लीपर बनी. सस्ती होनेके कारण गरीबो मे ज्यादा फेमस हुई. जो आजतक बाजार मे उपलब्ध है. 

        चप्पल , स्लिपेर, सेंडल के मुकाबले बूट ज्यादा महंगी होती है मगर पाव को गर्मी , शर्दी ओमे ज्यादा रक्षण देती है. 

       आज मार्किट के सेकड़ो उत्पादकों की लाखो वेरायटी बिक रही है. इसमे कपडे से लेकर प्लास्टिक , कैनवास, रबर चमड़ा आदि का इस्तमाल किया जा रहा है. 

         कोल्हापुरी चप्पल उसकी खास बनावट, डिज़ाइन के लिए देश भर मे प्रसिद्ध हे. लखनवी की नवाबी मोजडी तथा राजस्थान की रंगबेरंगी मोजडी भी भारत भर मे प्रसिद्ध है. राजा महाराजा भी फैंसी जूते पहननेके शौखिन हुआ करते थे. कपडे की तरह जूते भी पहनने वाले की शान बढाता है. 

       चप्पल के पिछेका भाग को एड़ी कहते है. महिला ओमे ऊँची एड़ी के चप्पल पहनका फेशन हैँ. ऊँची एड़ी की चप्पल पहनें टिप टॉप करके मैड जब रास्ते पर चलती हैँ तो उसके व्यक्तित्व मे निखार आता हैँ. इस ऊँची एड़ी वाली चप्पल को हिल वाली चप्पल भी कहते हैँ. 

        धनवान महिलाओमे असली हिरा मोती, सोना, चांदी जड़ित चप्पल पहननेका रिवाज़ हैँ, जिसकी कीमत लाखोमे बताई जाती हैँ. मिडिया न्यूज़ को माने तो मार्किट मे करोडो की कीमत के जूते भी मौजूद है…!.

    जय ललिता के पास हजारों निजी चप्पल थी. एक बार तो वह अपनी पसंदीदा की चप्पल घर भूल गई तो खास हवाई जहाज भेजकर घर से वो चप्पल मगाई गयी थी. 

       चप्पल जूते बनाने वाली विदेशी बाटा कंपनी के भारत भर मे कुल 1300 रिटेल शॉप है. यह विदेशी कंपनी है. सन 2004 मे गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड ने उसे सर्वाधिक रिटेल बिक्रीके लिए स्थान दिया था. 

       शादी मे जूते चुराने की भी रसम होती है. हम आपके हे कौन. फ़िल्म मे जूते पर सुन्दर गीत फिल्माया गया था…… जूते देदो… पैसे लेलो… जूते दो…. पैसे लो. 

     राजकपूर की फ़िल्म आवारा मे….मेरा जूता है जापानी… खूब फेमस हुआ था. 

       पुराने ज़माने मे राजा महा राजा लोग पैरो की रक्षा एवं अपनी शान बढ़ाने के लिए हिरन और बाग, चिता की खाल ( चमड़े ) का जूता पहनते थे. 

          चप्पल, जूते की कीमत का आधार गुणवत्ता , उसमे लगाए गए हिरे जवारात और कारीगर की कला के ऊपर ही निर्भर करता है. इसलिए कीमत की कोई सीमा नहीं होती है. उसकी कीमत लाखो या करोडो मे भी हो सकती है. 

   नीके , एक्शन , एडिडास , स्पोर्ट्स , बाटा , पेरागोन आदि ब्रांड के अनेको जूते बाजार मे उपलब्ध है. जो अपने नाम से बिकते है. 

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                       शिव सर्जन प्रस्तुति.

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