ज्ञान और कला की देवी माता सरस्वती. 

saraswati mata

                 बागोमे बहार आ जाती है. कलियों में निखार आ जाता है, आमों के पेड़ों पर बौर आ जाती है, गेहूँ की बालियाँ खिलने लगती हैं, हर तरफ रंगबिरंगी तितलियाँ मंडराने लगती है तब वसंत पंचमी का त्यौहार आता है. इसे कुछ लोग ऋषि पंचमी भी कहते है. वसंत पंचमी का त्योहार हिंदू धर्म में एक विशेष महत्व रखता है.

               पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार, मां सरस्‍वती के अवतरण के उपलक्ष्‍य में बसंत पंचमी मनाई जाती है. इस दिन विद्या की देवी माता सरस्वती की पूजा की जाती है. इस दिन स्त्रियाँ पीले वस्त्र धारण करके भक्ति भाव से हर्षोल्लास के साथ सरस्वती माता की पूजा अर्चना करती हैं. 

            माता सरस्वती को बागीश्वरी, माँ भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पुकारा जाता है. संगीत की उत्पत्ति करने के कारण उसे संगीत की देवी भी कहा जाता हैं. वसंत पंचमी के दिन को इनके जन्म उत्सव के रूप में भी मनाते हैं. 

          पौराणिक कथा के अनुसार सृष्टि के प्रारंभिक समय में भगवान विष्णु जी की आज्ञा से ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की तो पृथ्वी पूरी तरह से निर्जन थी व चारों ओर उदासी का माहौल था. अतः ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल में से पृथ्वी पर जल छिड़का. इन जलकणों से चार भुजाओं वाली एक अति सुंदर स्त्री प्रकट हुई. इस शक्ति के हाथों में वीणा, पुस्तक व माला थी. यह स्त्री अतियंत खूबसूरत थी. 

        जब इस देवी ने वीणा का मधुर वादन किया तो संसार के समस्त जीव-जंतुओं को वाणी प्राप्त हो गई, तब ब्रह्माजी ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहकर पुकारा. 

       पुराणों के अनुसार माँ सरस्वती जी की सबसे पहले पूजा श्रीकृष्ण और ब्रह्माजी ने की थी . माँ सरस्वती ने जब श्रीकृष्ण को देखा तो उनके रूप पर मोहित हो गईं. और उन्हें पति के रूप में पाने की इच्छा प्रकट की. 

          भगवान कृष्ण को इस बात का पता चला तो उन्होंने कहा कि वे तो राधा के प्रति समर्पित हैं. सरस्वती को प्रसन्न करने के लिए श्रीकृष्ण जी ने वरदान दिया कि प्रत्येक विद्या की इच्छा रखने वाला मनुष्य माघ मास की शुक्ल पंचमी को आपकी पूजा करेगा. इस कारण हिंदू धर्म में वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है.

          वसंत ऋतु में मानव सहित पशु-पक्षी भी हर्षोल्लास भरने लगते हैं. प्राचीनकाल से ज्ञान और कला की देवी माँ सरस्वती का जन्म दिवस मनाया जाता है, इसलिए इस दिन मा सरस्वती की पूजा कर उनसे ज्ञानवान, विद्यावान होने की कामना की जाती है. कवि, लेखक, गायक, वादक, पत्रकार, नाटककार, नृत्यकार एवं विद्यार्थियों अपने उपकरणों की पूजा के साथ माँ सरस्वती की वंदना करते हैं.

        समस्‍त संसार को ध्‍वनि प्रदान करने वाली मां सरस्‍वती की पूजा देवता और असुर दोनों ही करते हैं. इस दिन लोग अपने-अपने घरों में माता की प्रतिमा स्‍थापित करते हैं. कई स्‍कूल, कॉलेजों, और संस्‍थाओं में कभी सरस्‍वती पूजन का आयोजन करते है. 

           हिन्दू धर्म के दो ग्रंथों ” सरस्वती पुराण ” और ” मत्स्य पुराण ” में सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा का सरस्वती से विवाह करने का प्रसंग है ( यह पुराण 18 पुराणों में सामिल नहीं है.)    

       जिसके फलस्वरूप इस धरती के प्रथम मानव ” मनु ” का जन्म हुआ. कुछ विद्वान मनु की पत्नीं शतरूपा को ही सरस्वती मानते है. 

      मत्स्य पुराण में यह कथा थोड़ी सी भिन्न है. मत्स्य पुराण अनुसार ब्रह्मा के पांच सिर थे. कालांतर में उनका पांचवां सिर शिवजीने काट दिया था जिसके चलते उनका नाम कापालिक पड़ा. एक अन्य मान्यता अनुसार उनका ये सिर काल भैरव ने काट दिया था. 

          कहा जाता है जब ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की तो वह इस समस्त ब्रह्मांड में अकेले थे. ऐसे में उन्होंने अपने मुख से सरस्वती, सान्ध्य, ब्राह्मी को उत्पन्न किया. सरस्वती खूबसूरत थी अतः सरवस्ती के प्रति ब्रह्मा आकर्षित होने लगे और लगातार उन पर अपनी दृष्टि डाले रखते थे. ब्रह्मा की दृष्टि से बचने के लिए सरस्वती चारों दिशाओं में छिपती रहीं लेकिन वह उनसे नहीं बच पाईं.

         इसलिए सरस्वती आकाश में जाकर छिप गईं, लेकिन अपने पांचवें सिर से ब्रह्मा ने आकाश में भी खोज निकाला और उनसे सृष्टि की रचना में सहयोग करने का निवेदन किया. सरस्वती से विवाह करने के पश्चात सर्वप्रथम स्वयंभु मनु को जन्म दिया. ब्रह्मा और सरस्वती की यह संतान मनु को पृथ्वी पर जन्म लेने वाला पहला मानव कहा जाता है. लेकिन एक अन्य कथा के अनुसार स्वायंभुव मनु ब्रह्मा के मानस पुत्र थे.

सरस्वती पूजन की विधि : 

           वसंत पंचमी में प्रातः उठकर बेसनयुक्त तेल का शरीर पर उबटन करके स्नान करना चाहिए. इसके बाद स्वच्छ पीले वस्त्र धारण कर माँ शारदा की पूजा करना चाहिए. साथ ही केशरयुक्त मीठे चावल अवश्य घर में बनाकर उनका सेवन करना चाहिए.

     आजका मेरा यह आर्टिकल माता भगवती, वीणावादनी, एवं विद्या की देवी माता सरस्वती जी को सस्नेह समर्पित करता हूं. 

     ——=== शिवसर्जन ===—

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