आप लोगोंने अक्सर देखा होगा कि शनिदेव के सिर पर स्वर्णमुकुट, गले में माला तथा शरीर पर नीले रंग के वस्त्र और शरीर भी इंद्रनीलमणि के समान होता है. शनि गिद्ध पर सवार रहते हैं. इनके हाथों में धनुष, बाण, त्रिशूल रहते हैं. शनिदेव को 33 देवताओं में से एक भगवान सूर्य का पुत्र माना गया है.
धर्मग्रंथो के अनुसार सूर्य की पत्नी संज्ञा की छाया के गर्भ से शनि देव का जन्म हुआ था. जब शनि देव छाया के गर्भ में थे तब छाया भगवान शंकर की भक्ति में इतनी ध्यान मग्न थी की उसने अपने खाने पिने तक शुध नहीं रही थी, जिसका प्रभाव उसके पुत्र पर पड़ा और उसका वर्ण श्याम हो गया.
शनि के श्यामवर्ण को देखकर सूर्य ने अपनी पत्नी छाया पर आरोप लगाया की शनि मेरा पुत्र नहीं हैं. तभी से शनि अपने पिता से शत्रु भाव रखते थे. शनि देव ने अपनी साधना तपस्या द्वारा प्रभु शिवजी को प्रसन्न कर अपने पिता सूर्य की भाँति शक्ति प्राप्त की और शिवजी ने शनि देव को वरदान मांगने को कहा, तब शनि देव ने प्रार्थना की कि युगों युगों में मेरी माता छाया की पराजय होती रही हैं, मेरे पिता सूर्य द्वारा अनेक बार अपमानित किया गया हैं, अतः माता की इच्छा हैं कि मेरा पुत्र अपने पिता से मेरे अपमान का बदला ले और उनसे भी ज्यादा शक्तिशाली बने. तब भगवान शंकर जी ने वरदान देते हुए कहा कि नवग्रहों में तुम्हारा सर्वश्रेष्ठ स्थान होगा. मानव तो क्या देवता भी तुम्हरे नाम से भयभीत रहेंगे.
शनिदेव के बारेमें मे हमे पुराणों में अनेक आख्यान मिलते हैं.एक आख्यान के अनुसार शनि के प्रकोप से ही अपने राज्य को घोर दुर्भिक्ष से बचाने के लिये राजा दशरथ जब उनसे मुकाबला करने पहुंचे तो उनका पुरुषार्थ देख कर शनि ने उनसे वरदान मांगने के लिये कहा.
राजा दशरथ ने विधिवत स्तुति कर उसे प्रसन्न किया. पद्म पुराण में इस प्रसंग का सविस्तार वर्णन है.ब्रह्मवैवर्त पुराण में शनि ने जगत जननी माता पार्वती को बताया है कि मैं सौ जन्मो तक जातक की करनी का फ़ल भुगतान करता हूँ.
एक बार जब विष्णुप्रिया लक्ष्मी ने शनि से पूंछा कि तुम क्यों जातकों को धन हानि करते हो, क्यों सभी तुम्हारे प्रभाव से प्रताडित रहते हैं, तो शनि महाराज ने उत्तर दिया,”मातेश्वरी, उसमे मेरा कोई दोष नही है, परमात्मा ने मुझे तीनो लोकों का न्यायाधीश नियुक्त किया हुआ है, इसलिये जो भी तीनो लोकों के अंदर अन्याय करता है, उसे दंड देना मेरा काम है”.
अन्य एक आख्यान के अनुसार ऋषि अगस्त ने जब शनि देव से प्रार्थना की थी, तो उन्होने राक्षसों से उनको मुक्ति दिलवाई थी. जिस किसी ने भी अन्याय किया, उनको ही उन्होने दंड दिया, चाहे वह भगवान शिव जी की अर्धांगिनी सती रही हों, जिन्होने सीता का रूप रखने के बाद बाबा भोले नाथ से झूठ बोलकर अपनी सफ़ाई दी और परिणाम में उनको अपने ही पिता की यज्ञ में हवन कुंड मे जल कर मरने के लिये शनि देव ने विवश कर दिया.
सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र को दान देने के अभिमान के कारण सप्तनीक बाजार मे बिकना पडा और, श्मशान की रखवाली तक करनी पडी, या राजा नल और दमयन्ती को ही ले लीजिये, जिनके तुच्छ पापों की सजा के लिये उन्हे दर दर का होकर भटकना पडा, और भूनी हुई मछलियां तक पानी मै तैर कर भाग गईं, फ़िर साधारण मनुष्य के द्वारा जो भी मनसा, वाचा, कर्मणा, पाप कर दिया जाता है वह चाहे जाने मे किया जाय या अन्जाने में, उसे भुगतना तो जरूर पड़ता है.
मत्स्य पुराण के अनुसार महात्मा शनि देव का शरीर इन्द्र कांति की नीलमणि जैसी है, वे गिद्ध पर सवार है, हाथ मे धनुष बाण है एक हाथ से वर मुद्रा भी है,शनि देव का विकराल रूप भयावह भी है. शनि पापियों के लिये हमेशा ही संहारक हैं. पश्चिम के साहित्य मे भी अनेक आख्यान मिलते हैं, शनि देव के अनेक मन्दिर हैं, भारत में भी शनि देवके अनेक मन्दिर हैं, शिंगणापुर, वृंदावन के कोकिला वन, ग्वालियर के शनिश्चराजी, दिल्ली तथा अनेक शहरों मे महाराज शनिदेव के मन्दिर हैं.
सौर्यमंडल नवग्रहों के कक्ष क्रम में शनि सूर्य से सर्वाधिक दूरी पर अट्ठासी करोड, इकसठ लाख मील दूर है. पृथ्वी से शनि की दूरी करीब इकहत्तर करोड, इकत्तीस लाख, तियालीस हजार मील दूर है. शनि का व्यास पचत्तर हजार एक सौ मील है, यह छ: मील प्रति सेकेण्ड की गति से 21.5 वर्ष में अपनी कक्षा मे सूर्य की परिक्रमा पूरी करता है. शनि धरातल का तापमान 240 फेरनहाइट है. शनि के चारो तरफ सात वलय हैं, शनि के 15 चन्द्रमा है. जिनका प्रत्येक का व्यास पृथ्वी से काफ़ी अधिक है.
ज्योतिष शास्त्रो में शनि को अनेक नामों से सम्बोधित किया गया है, जैसे मन्दगामी, सूर्य-पुत्र, शनिश्चर, छायापुत्र आदि. शनि के नक्षत्र हैं, पुष्य, अनुराधा, और उत्तराभाद्रपद. यह दो राशियों मकर, और कुम्भ का स्वामी है. तुला राशि में 20 अंश पर शनि परमोच्च है और मेष राशि के 20 अंश पर परमनीच है. नीलम शनि का रत्न है.
शनिदेव की तीसरी, सातवीं, और दसवीं द्रिष्टि मानी जाती है. शनि सूर्य, चन्द्र, मंगल का शत्रु, बुध,शुक्र को मित्र तथा गुरु को सम मानता है. शारीरिक रोगों में शनि को वायु विकार, कंप, हड्डियों और दंत रोगों का कारक माना जाता है. साढ़े साती दोष गणना यंत्र से आप जान सकते हैं कि शनि की साढ़े साती आपको कब प्रभावित करेगी.
शनिदेव की कुछ रोचक बातें :
*** शनिदेव के 12 अवतार हैं. हर रूप की अपनी अलग महिमा है. इन सबके जाप करने से रोग और दुख से मुक्ति मिलती है.
*** शनिदेव की आठ पत्नियों के नाम, ध्वजिनी, धामिनी, कंकाली, तुरंगी कलहप्रिया, कंटकी, महिषी और अजा है.
*** शनिदेव प्रत्येक शनिवार के पीपल के वृक्ष में निवास करते हैं. इस दिन जल में चीनी एवं काला तिल मिलाकर पीपल की जड़ में अर्पित करके तीन परिक्रमा करने से शनि प्रसन्न होते हैं.
*** हर शनिवार को काले तिल के साथ आटा और शक्कर मिला लें और उसे चींटियों को खाने के लिये छोड़ दें. घर में आएगा धना-धन पैसा.
*** तांबे के लोटे में जल लेकर उसमें काले तिल डालें. फिर यही जल शिवलिंग पर चढाएं. ऐसा करने से व्यक्ति को सभी रोगों से मुक्ति मिलेगी और भोलेनाथ की कृपा से आर्थिक तंगी दूर होगी.