त्रिकुटा पहाड़ियों पर बसी माँ वैष्णोदेवी

vaishno devi

प्रिय पाठक परमेश्वर. आज हम आपको ले चलते है, माता वैष्णोदेवी के दर्शन के लिए , जो हिमालय पर्वत की त्रिकुटा पहाड़ियों में विध्यमान है. तो चलो तैयार हो जाओ. सबसे पहले प्रेम से बोलो जय माता दी.

आप यदि मुंबई – भाईंदर में रहते हो तो मुंबई से कटरा सीधी ट्रैन उपब्ध है. जो सुबह करीब ग्यारह के आसपास बोरीवली से प्रस्थान करती है. इसके लिए आपको आगेसे आपके बजट के हिसाब से A/C या बीना A/C टिकट बुक करनी होंगी. ये सुपर फ़ास्ट ट्रैन है.

कटरा दूसरे दिन शाम को करीब 5 बजे पंहुचायेंगी. पहले जम्मू तक ट्रैन जाती थी, कटरा तक जाती है. जम्मू से कटरा तक का सफर काफ़ी सुहाना है. पहाड़ों का नजारा आपको बेहद पसंद

आयेगा. जम्मू से कटरा तक ट्रैन 27 सुरंग ( TUNNEL ) से पास होती है.

कटरा रेल्वे स्टेशन पहुंचने के बाद आपको एक दिन होटल में रुकना हो तोआपको 500 रुपिया से लेकर दो हजार रुपये तक की आपके बजट के हिसाब से A/C, NON A/C रूम मील जायेगी. इसके लिए आप मुंबई से भी रूम बुक कर सकते है.

यात्रा शुरु करने से पहले आपको

यात्रा का रजिस्ट्रेशन करना होगा. जहां आपको निःशुल्क पहचान पत्र दिया जायेगा. जो आप गले में पहनकर रख सकते है. ये सेवा कई जगह उपलब्ध है. और ये हर यात्री के लिए अनिवार्य है.

अब यात्रा पारंभ करने से पहले ये सुनिश्चित कर ले कि यात्रा कैसे शुरु करनी है. (1) पैदल (2) घोड़े की स्वारी (3) डोली में बैठकर या (4) हेलीकॉप्टर द्वारा. कटरा प्रवेश द्वार तक रिक्शा या कार द्वारा पहुंचने के बाद सुरक्षा पोस्ट पर चेकिंग करने के बाद आप चढ़ाई शुरु कर सकते है.

याद रहे वैष्णो देवी तीर्थ स्थान समुद्र तल से 5 हजार 300 फीट की ऊंचाई पर स्थित है और बेस कैंप कटरा से माता का दरबार जिसे भवन भी कहते हैं, वहां तक पहुंचने के लिए करीब 13 कि.मी. की चढ़ाई करनी पड़ती है. वहां तक पहुंचने के लिए आपको 4 से 7 घंटा लग सकता है. वरिष्ठ नागरिक के लिए घोड़ा, पालकी या हेलीकॉप्टर की स्वारी उचित रहेंगे.

घोड़े की सवारी के लिए आपको एक तरफ का भाड़ा 1650 रुपये देना होगा. एक्स्ट्रा चाय नास्ता के पैसे के बारेमें आगेसे निश्चित करना जरुरी है. ताकी पहुंचने के बाद वाद – विवाद या मच मच ना हो. घोड़ा द्वारा गंतव्य स्थान तक पहुंचने के लिए करीब साढ़े तीन घंटे का समय लगता है.

पालकी चार लोग उठाकर ले जाते है. पालकी का एक तरफ का भाड़ा 3300 रुपिया है. पालकी द्वारा पहुंचने में चार घंटे का समय लगता है. यहां भी चाय नास्ता या खाने की आगेसे बात

कर लेना उचित होगा.

चौथा पर्याय हेलीकॉप्टर का है. हेलीकॉप्टर आपको पांच – छह मिनट में उपर पहुंचा देता है. इसके लिए 1850 रुपिया भाड़ा रखा गया है. मगर इसमे दिक्कत तब आती है कि जब मौसम ठीक ना हो तो हेलीकॉप्टर की उडाने रद्द की जाती है. बारिस के मौसम में यहां अचानक बदलाव आता है. जब सेवा उपलब्ध हो तब रिटर्न भी आप हेलीकॉप्टर से आ सकते हो. ***74

वैष्णो देवी तीर्थ स्थान समुद्र तल से 5 हजार 300 फीटकी ऊंचाई पर स्थित है और बेस कैंप कटरा से माता का दरबार जिसे भवन भी कहते हैं तक पहुंचने के लिए करीब 13 किलोमीटर की चढ़ाई करनी पड़ती है.

बचपन में माता जी का नाम त्रिकुटा था. उनका जन्म भगवान विष्णु के वंश में हुआ, जिसके कारण उनका नाम श्री वैष्णवी कहलाया मान्यता है कि माता वैष्णो देवी ने त्रेता युग में माता पार्वती, सरस्वती और लक्ष्मी के रूप में मानव जाति के कल्याण के लिए अवतार लिया था. उन्होंने त्रिकुटा पर्वत पर तपस्या की थी.

वैष्णो देवी तीर्थ स्थान समुद्र तल से 5 हजार 300 फीटकी ऊंचाई पर स्थित है और बेस कैंप कटरा से माता जी का दरबार जिसे भवन भी कहते हैं तक पहुंचने के लिए करीब 13 किलोमीटर की चढ़ाई करनी पड़ती है.

माता वैष्णोदेवी जी की कटरा से भवन तक की चढ़ाई में , बिना अर्ध कुमारी दर्शन के सीधे चढते जाते हैं तब आप 4 घंटे में माता के भवन तक पहुंच सकते है. इसके बाद भीड़ के हिसाब से आपको जो दर्शन के लिए 1 से 3 घंटे तक का समय लग सकता है.

वैष्णो देवी माता जी त्रिकुटा की पहाड़ियों पर स्थित एक गुफा में पिंडी के रूप में विराजित हैं, इस गुफा में माता वैष्णो देवी 3 पिंडियों के रूप में हैं जिसमे देवी माँ काली (दाएं),माँ लक्ष्मी (मध्य) और माँ सरस्वती (बाएं) पिण्डी के रूप में गुफा में विराजित हैं.

माता वैष्णो देवी की पवित्र गुफा की लंबाई 98 फीट है और इस गुफा में एक बड़ा सा चबूतरा बना हुआ है जिस पर माता का आसन है जहां देवी त्रिकुटा 3 पिंडियों के रूप में हैं विराजमान हैं.

भारत में दक्षिण के वेंकटेश्वर मंदिर के बाद माता वैष्णो देवी का मंदिर दूसरा ऐसा धार्मिक तीर्थ स्थल है जहाँ सबसे अधिक भक्त दर्शन के लिए आते हैं. पूरे संसार में शायद ही ऐसा कोई हिन्दू होगा जो माता वैष्णो देवी के नाम से परिचित न हो.

कहा जाता है कि माता रानी का भवन ठीक उसी स्थान पर है जहाँ माता ने भैरवनाथ का वध किया था. प्राचीन गुफा के ठीक सामने भैरो का शरीर है और माता के द्वारा भैरो का वध होने का बाद उसका सिर उड़कर वहां से तीन किलोमीटर दूर घाटी में चला गया जिसे भैरो घाटी कहते हैं. जिस स्थान पर भैरवनाथ का सिर गिरा था आज उसी स्थान पर ” भैरोनाथ के मंदिर ” बना हुआ है.

भैरोंनाथ का वध :

कथा के अनुसार कटरा से कुछ ही दूरी पर स्थित हंवर्षी नाम के गांव में माँ जगदम्बा के परम भक्त ब्राह्मण श्रीधर रहते थे. श्रीधर नि:संतान और निर्धन थे, मगर उसने माता के नाम पर भंडारा का आयोजव किया. एक बार नवरात्रि के दिनों में माता जी उनके स्वप्न में आकर कहा कि नवरात्रि में नौ कुंवारी कन्याओं को बुला कर पूजा करना.

माताजी का आदेश मानकर श्रीधर ने अपने घर पर कन्याओं को आमंत्रित किया गया, कन्या पूजन के समय सभी कन्या ओं के बीच माता वैष्णो देवी भी कन्या के रूप में आकर बैठ गई. पूजन के बाद अन्य सभी कन्या तो अपने घर चली गईं किन्तु माता वैष्णो देवी नहीं गईं क्योंकि उन्हें अपने भक्त की मनो कामना पूरी करनी थी.

माता वैष्णो देवी ने श्रीधर से कहा कि “ जाओ सभी को अपने घर भंडारे का निमंत्रण दे आओ ” श्रीधर ने कन्या की बात मानकर अपने गाँव और आस पास के क्षेत्रों में रहने वालो सभी लोगों को भंडारे का निमंत्रण दे दिया. गांव के लोग ये सोचने लगे कि श्रीधर कैसे और किसके कहने पर सभी को भंडारे का निमत्रणं दे रहा है , लेकिन माता जी का भंडारा था इसलिए सभी ने निमंत्रण स्वीकार किया.

भंडारे के लिए बुलाये गए सभी लोग श्रीधर के घर आने लगे तब श्रीधर ने सब को पंक्ति में बैठाया और एक सुंदर सी कन्या ने सब को स्वयं भोजन परोसना शुरु कर दिया. भंडारे भैरवनाथ भी आ गए और जब भोजन परोसते हुए वो कन्या भैरवनाथ को भोजन परोसने लगी तो भैरवनाथ ने कहा, “ मै ये सब नही खाता हूँ, मुझे तो मांस व मदिरा खाना है. ”

सुनकर वो कन्या भैरवनाथ से बोली “ ये ब्राह्मण के यहाँ हो रहा भंडारा है, इस भंडारे में ये सब नहीं मिलेगा. “

लेकिन भैरवनाथ मांस व मदिरा वाले भंडारे की हठ करने लगे. तब माता माँ कन्या के रूप में उड़ते हुए त्रिकूट पर्वत की ओर चली गईं. तब भैरवनाथ उनका पीछा करने लगे.

मार्ग में एक गुफा थी जिसमे माता भैरवनाथ से बचने के लिए छुप गयी और वहीँ पर कन्या रूप में ही माता ने नौ माह तक तप किया. भैरवनाथ भी उस कन्या की खोज में वहां तक आ गए तब वहाँ खड़े एक साधु ने भैरवनाथ से कहा, कि “ जिसे तू साधारण कन्या समझ रहा है, वह आदि शक्ति माता जगदम्बा हैं.” भैरवनाथने उस साधुकी बात नहीं मानी. आज इसी गुफा को हम अर्द्धकुमारी या आदिकुमारी के नाम से जानते हैं.

अर्द्धकुमारी के पहले माता जी की चरण पादुका है. जोकि वो स्थान है जहां पर माता जी ने भागते हुए पीछे मुड़कर भैरवनाथ को देखा था. गुफा से बाहर निकल कर कन्या रुपी माता वैष्णोदेवी ने भैरवनाथ से लौट जाने को कहा और दुबारा गुफा के अंदर चली गईं, लेकिन भैरवनाथ नहीं माना और गुफा में प्रवेश करने लगा तब माता की गुफा के बाहर पहरा दे रहे हनुमानजी ने भैरवनाथ को युद्ध के लिए ललकारा.

जिसके बाद दोनों के बिच भीषण युद्ध होने लगा, तब तक माता वैष्णो देवी उस गुफा की दूसरी ओर से बाहर निकल कर चली गयीं लेकिन युद्ध का कोई अंत न होता देखकर माता वैष्णवी ने लौटकर चंडी रूप धारण कर लिया. और भैरवनाथ का वध कर दिया.

भैरवनाथ का सिर धड़ से अलग होकर 3 किमी की दूरी पर निचे घाटी में जाकर गिरा जिसे भैरों घाटी नाम से जाना जाता है और आज वहां भैरवनाथ का मंदिर बना हुआ है. मरने से पहले भैरोनाथ ने माता वैष्णो देवी से क्षमा मांगी तब माता ने उसे क्षमा करते हुए ये वरदान दिया कि जो व्यक्ति मेरे दर्शन के लिए यहाँ आएगा उसे बादमे तेरे दर्शन भी करने होंगे तभी उसे मेरे दर्शान का पुरा लाभ मिलेगा अन्यथा उसकी यात्रा अधूरी मानी जायेगी.

माता वैष्णो देवी जानती थीं कि भैरवनाथ ने ये सब मोक्ष प्राप्त करने के लिए किया है. इसलिए माता वैष्णोदेवी ने भैरवनाथ को पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त होने का आशीर्वाद दिया.

भवन से भैरो घाटी की दूरी 1.5 किलोमीटर है. ऊंची चढ़ाई के कारण सभी श्रद्धालुओं के लिए भैरो घाटी तक पहुंचना संभव नहीं होता था. माता के दर्शन के बाद भौरोनाथ मंदिर तक जाना थोडा कठिन माना जाता था क्योंकि माता वैष्णो देवी के भवन आते आते भक्त थक जाते है लेकिन अब भवन से भौरोनाथ मंदिर तक जाना बहुत सरल हो गया है. अब आप रोपवे ( ट्रॉली ) के द्वारा माता जी के भवन से भैरोनाथ मंदिर मात्र 10 मिनट में पहुंच सकते हैं. जिसका किराया एक तरफा 100 रुपिया है.

हनुमानजी मां की रक्षा के लिए मां वैष्णोदेवी के साथ ही थे. हनुमानजी को प्यास लगने पर माता ने उनके आग्रह पर धनुष से पहाड़ पर एक बाण चलाया जिससे जलधारा निकली और उस जल में अपने केश धोए. आज यह पवित्र जलधारा ” बाणगंगा ” के नाम से जानी जाती है जिसके पवित्र जल का पान करने या इससे स्नान करने से भक्तों की सारी व्याधियां दूर हो जाती हैं.

श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड इस पवित्र धर्म स्थल का सुचारु रूपसे संचालन करती है. माता वैष्णो देवी के दर्शन करने देश विदेश से लोग आते है ,जैसे जैसे माता वैष्णो देवी के भक्तों की संख्या बढ़ने लगी वैसे वैसे माता के भक्तो को इस यात्रा में अनेक प्रकार की कठिनाईयों का सामना होने लगा था, जैसे उनके रुकने , खाने पीने , स्नानादि की सुविधा, यात्रा में घायल हो जाने पर उपचार आदि में कठिनाई उत्पन्न होने लगी थी.

अस्सी के दशक में तो यहाँ लोग यात्रिओं को खान पान, रहने आदि की सुविधा दिलाने का नाम पर ठगी होने लगी तब यात्रियों की समस्या के संपूर्ण समाधान और यात्रियों की सुविधा के लिए श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड का गठन किया गया.

जम्मू और कश्मीर के राज्यपाल महोदय इस बोर्ड के चेयरमैन होते हैं. आज बोर्ड में हजारों अधिकारी और कर्मचारी यात्रिओंकी विभिन्न जरुरुआत जैसे उनके रुकने, खाने पीने, स्नानादि की सुविधा, यात्रा में घायल हो जाने पर उपचार आदि विविध व्यवस्थाओं का सुचारू रूप से संचालन करती हैं. श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड सरकार के नियत्रणमें कार्य करनेवाली एक सरकारी संस्था है.

कुछ लोग श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड में श्राइन शब्द को उर्दू या अरबी शब्द समझते हैं श्राइन शब्द उर्दू या अरबी शब्द नही है बल्कि ये एक इंग्लिश भाषा का शब्द है जिसका अर्थ पुण्य स्थल या तीर्थ स्थल या देवी देवता का मंदिर और मंदिर जैसा पवित्र स्थल होता है.

श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड के द्वारा यहाँ आपको रुकने की साफ सुथरी और बहुत ही सस्ती दर पर रहने की सुविधा मिल जाएगी. आप यहाँ श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड के द्वारा संचालित जम्मू रेलवे स्टेशन पर स्थित वैष्णवी धाम, सरस्वती धाम या कटरा आने के बाद निहारिका कटरा और बस स्टैंड कटरा पर स्थित शक्ति धाम में रुक सकते हैं. यदि आप यहाँ न रुकना चाहे तो अद्धकुआरी, सांझी छत और मुख्य भवन में भी ठहरने की सुविधा उपलब्ध है. जहाँ बड़ी संख्यामें रुकने की सुविधा उपलब्ध है.

त्रिकूट पर्वत पर गुफा में विराजित मां वैष्णोदेवी का स्थान हिन्दुओं का एक प्रमुख तीर्थस्थल है, जहां पर दूर-दूर से लाखों श्रद्धालु मां के दर्शन को आते हैं. रास्ते में आपको हजारों लोग आते जाते नजर आएंगे. यहां माता माँ वैष्णोदेवी साक्षात् बिराजमान है. ये भक्तोंकी सभी

मन्नत पुरी करती है.

यह तीर्थ की एक खास बात है कि यहां सिर्फ माता रानी का राज चलता है उनकी इच्छा के बीना वहां कोई पहुंच नहीं सकता. आप आगेसे कितना भी प्लान बना लो. होगा वो जो माता जी चाहती है. आप यदि चाहो तो कटरा से 80 किलोमीटर की दूरीपर हिमालय की घाटी में विध्यमान शिवखोरी गुहा के दर्शन के लिए जा सकते है. ये तीर्थ भी काफ़ी ऊंचाई पर है.

खास बात : 👇

जम्मू कश्मीर में प्रिपेड मोबाइल का नेटवर्क पकड़ता नहीं है. यदि आपका मोबाइल पोस्ट पेड है – बिलिंग है तो नेटवर्क का कोई प्रॉब्लम नहीं है. यदि आप वहाके मोबाइल स्टोर से यात्री सिम कार्ड खरीदना चाहे तो मील सकता है.

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