त्रेता युग की हनुमान धारा – चित्रकूट| Chitrakoot.

Chitrakoot ghat

चित्रकूट एक पवित्र स्थान है जो अपने प्राकृतिक नयनरम्य दृश्यों और धार्मिक कथाओके लिए प्रसिद्ध है. श्री वाल्मिकी ने अपने ग्रंथ श्री रामायणम में इस स्थान की सुंदरता और पवित्रता के बारे में बात की थी. इस स्थान और इस क्षेत्र में रहने वाले अनेक संतों के बारे में व्यापक वर्णन है.

कहा जाता है कि श्री वाल्मिकी ने श्री राम के जन्म से पहले श्री रामायण की रचना की थी. इसलिए यह स्थान श्री राम के यहां अपने चरण रखने से पहले से ही प्रसिद्ध और पवित्र माना जाता है. संत भारद्वाज के शब्दों से वाल्मिकी इस स्थान की महिमा का वर्णन करते हैं और श्री राम को अपने वनवास के दौरान इस स्थान को अपना निवास स्थान बनाने की सलाह देते हैं.

यह स्थान पर्वतमाला के मध्यभाग में स्थित है. पहाड़ के सहारे हनुमानजी की एक विशाल मूर्ति के ठीक सिर पर दो जल के कुंड हैं, जो हमेशा जल से भरे रहते हैं और उनमें से निरंतर पानी बहता रहता है. इस पहाड़ी के शिखर के उपर स्थित हनुमान धारा में हनुमान की एक विशाल मूर्ति है. मूर्ति के सामने तालाब में झरने से पानी गिरता है. इस धारा का जल हनुमानजी को स्पर्श करता हुआ बहता है. इसीलिए इसे हनुमान धारा कहते हैं. यहां 12 महीनें भक्तों का आना जाना रहता है.

मंदिर तक जाने के लिए हमें कुल 1,050 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है. भक्तों को सीढ़ियों के जरिए श्री मंदिर पहुंचने के लिए करीब 40 से 45 मिनट का समय लगता है. चित्रकूट मंदाकिनी नदी के किनारे बसा भारत के सबसे प्राचीन तीर्थस्थलों में से एक है. भगवान श्री राम ने 14 साल वनवास के समय 11 साल चित्रकूट मे बिताये थे.

कहा जाता है कि जब हनुमान जी ने लंका में अपनी पूंछ से आग लगाई थी तब उनकी पूंछ पर भी बहुत जलन हो रही थी. तो भगवान श्री राम से हनुमान जी ने विनती की, जिससे अपनी जली हुई पूंछ का इलाज हो सके. तब श्री राम ने अपने बाण के प्रहार से इसी जगह पर एक पवित्र धारा बनाई. जो श्री हनुमान धारा के नामसे प्रसिद्ध है.

राम घाट पर प्रभु राम नित्य स्नान किया करते थे. इसी घाट पर राम भरत मिलाप मंदिर है और इसी घाट पर श्री गोस्वामी तुलसीदास जी की प्रतिमा है.

वर्तमान में यह चित्रकूट स्थान उत्तर प्रदेश के बांदा जिले की करवी (कर्वी) तहसील तथा मध्यप्रदेश के सतना जिले की सीमा पर है.चित्रकूट का मुख्य स्थल सीतापुर है जो कर्वी से आठ किलोमीटर की दूरी पर है.

चित्रकूट पर्वत श्रेणी में विराजमान भगवान श्री हनुमान जी के प्रतिमा को छूकर निकलने वाली हनुमान धारा अपने आप में अलौकिक है. यहां तक पहुंचने के लिए पहाड़ों पर सीढ़ियां चढ़कर जाना पड़ता है. इसके अलावा वर्तमान समय में यहां पर उड़न खटोले (रोपवे) की भी व्यवस्था की जा चुकी है, जिससे श्रद्धालुओं को हनुमान धारा के दर्शन आसानी से प्राप्त होते हैं.

रामघाट से 2 किलोमीटर की दूरी पर मंदाकिनी नदी के किनारे जानकी कुंड है. जनक पुत्री होने के कारण सीता को जानकी कहा जाता था. माना जाता है कि जानकी माता यहाँ स्नान करती थीं. जानकी कुंड के समीप ही श्री राम जानकी रघुवीर मंदिर और संकट मोचन मंदिर है.

जानकी कुंड से कुछ दूरी पर ही मंदाकिनी नदी के किनारे एक शिला है. माना जाता है कि इस शिला पर सीता के पैरों के निशान अंकित हैं. कहा जाता है कि जब वह इस शिला पर खड़ी थीं तो जयंत ने काक रूप धारण कर उन्हें चोंच मारी थी. इस शिला पर राम और सीता बैठकर चित्रकूट की सुन्दरता निहारते थे.

शिला से लगभग 4 किलोमीटर की दूरी पर घने वनों से घिरा एक एकान्त आश्रम है. इस आश्रम में अत्रि मुनी, अनुसुइया, दत्तात्रेय और दुर्वासा मुनि की प्रतिमा स्थापित हैं.

रामघाट और सिता घाट :

कहा जाता है जब यह क्षेत्र सूखे से पीड़ित था, तब संत अत्रि की पत्नी सती अनुसूया ने गहन तपस्या की और मंदाकिनी नदी को धरती पर लाई थी. जिससे यह क्षेत्र हरियाली और जंगलों से समृद्ध हुआ. श्री राम और सीता देवी ने संत अत्रि और अनुसूया के आश्रम में समय बिताया था और मंदाकिनी नदी में स्नान किया था. जिन घाटों पर श्री राम, श्री सीता नदी में स्नान करते थे, उन्हें अब क्रमशः रामघाट और सीता घाट के नाम से जाना जाता है.

कहा जाता है कि भगवान राम के राज्याभिषेक के लिए भरत ने भारत की सभी नदियों से जल एकत्रित कर यहाँ रखा था. अत्रि मुनि के परामर्श पर भरत ने जल एक कूप में रख दिया था. इसी कूप को भरत कूप के नाम से जाना जाता है. भगवान राम को समर्पित यहाँ एक मंदिर भी है. जब श्री राम 14 वर्ष के लिए वनवास आए थे तब भरत को अपने माता कैकेयी के व्यवहार पर काफ़ी दुख हुआ था.

वे आयोध्या वासीयों को साथ लेकर श्रीराम को मनाने चित्रकूट आए थे, साथ में भगवान राम का राज्याभिषेक करने के लिए समस्त तीर्थों का जल भी लाये थे. लेकिन भगवान राम 14 वर्ष वनवास के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ थे. इस पर भरत काफ़ी दुखी हुए और अपने साथ लाये समस्त तीर्थों के जल को वहीं के कुए में डाल दिया. तभी से इस स्थल का नाम भरत कूप पड़ा.

वहां तक कैसे पहुचे :

वायु मार्ग से :

चित्रकूट का नजदीकी हवाई अड्डा प्रयागराज है. खजुराहो चित्रकूट से 185 किलोमीटर दूर है. चित्रकूट में भी हवाई पट्टी बनकर तैयार है लेकिन यहाँ से उड़ानें अभी शुरू नहीं हुई .लखनऊ और प्रयागराज हवाई अड्डों से भी आप चित्रकूट पहुँच सकते है.

रेल मार्ग से :

चित्रकूट से 8 किलोमीटर की दूर चित्रकूट निकटतम रेलवे स्टेशन है. प्रयागराज, जबलपुर, बांदा, दिल्ली, झांसी, हावड़ा, आगरा, मथुरा, झांसी, लखनऊ, कानपुर, ग्वालियर, रायपुर, कटनी, मुगलसराय, वाराणसी बांदा आदि शहरों से यहाँ के लिए रेलगाड़ियाँ चलती हैं. इसके अलावा शिवरामपुर रेलवे स्टेशन पर उतकर भी बसें और टू व्हीलर लिए जा सकते हैं. शिवरामपुर रेलवे स्टेशन की चित्रकूट से दूरी ठीक 4 किलोमीटर है.

सड़क मार्ग से :

चित्रकूट के लिए प्रयागराज, बांदा, झांसी, महोबा, कानपुर, छतरपुर,सतना, अयोध्या, लखनऊ, मैहर आदि शहरों से नियमित बस सेवाएँ हैं. दिल्ली से भी चित्रकूट के लिए बस सेवा उपलब्ध है. शिवरामपुर से भी बसें और टू व्हीलर उपलब्ध हैं यहाँ से चित्रकूट की दूरी 4 किलोमीटर है.

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