दुनिया मे कितने लोग संतुष्ट है ?

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एक दिन एक भिखारी रोड के किनारे भिक्षा मांग रहा था. वो मन ही मन सोचने लगा, ये कोई ज़िंदगी है ? सुबह से शाम तक कटोरा पकडे किसी से, कुछ मांगते रहो. वहां नजदीक एक सब्जी वाला ठेला लेकर सब्जी बेच रहा था. भिखारी उस सब्जी वाले के पास गया और बोला कि आप कितना सुखी हो. आपको किसीके पास जाना नहीं. ग्राहक खुद आपके पास चले आते है. पैसा देकर सब्जी लेकर चले जाते है.

इस बात पर सब्जी वाला बोला, ये क्या जिंदगी है. सुबह से शाम तक खड़े रहकर पैसा कमाओ और रात तक खाने पिने में पैसा खर्चा कर दो. मुझसे तो वो होटल वाला देखो, नौकर काम कर रहे है और खुद काउंटर पर आराम से बैठे पैसा गिन रहा है.

अब भिखारी ने नये कपडे पहने. उस होटल मे गया. एक चाय मंगवाई और पैसे का भुकतान करते समय होटल मालिक को बोला, आप कितना सुखी हो. आराम से कुर्सी पर बैठे बैठे पैसा कमाते रहो. इसपर होटल मालिक बोला, ये कोई खाक जिंदगी है ? माल बनवावो, लोगोंके जूठे बर्तन साफ करो. खाना नहीं बिका तो धंदा नुकसानी में, इससे तो वो सेल्समेन आ रहा है उसको देखो. सब जगह से ऑर्डर लो. होलसेल मार्किट से खरीद करो और माल सप्लाई कर दो.फिर सिर्फ माल इधर उधर करके पैसा कमाओ.

भिखारी सेल्समेन से मिला, और बोला, सही मे तू कितना सुखी है. इस पर सेल्स मेन बोला, ये कोई जिंदगी है ?वो व्यापारी धनीराम को देखो, कितना सुखी है. खुदका बंगला, गाडी, सब कुछ तो है. वो भिखारी व्यापारी धनीराम के पास गया तो, वो अपनी व्यथा सुनाते बोला कि इस साल शेर बाजार मे बडी गिरावट आनेसे मुजे लाखों का नुकसान हुआ है. ऐसा ही रहा तो एक दिन ये बंगला, गाडी भी बिक जायेगी.

मुजसे तो उद्योग पति रुपेश बदानी कितना सुखी है. विश्व के अमीर लोगों मे उनकी गिनती होती है. भिखारी सोचने लगा उस उद्योग पति तक कैसे पहुंचा जाय. वो एक अकाउंटेंट के पास गया. जिसको उस उद्योग पति के बारेमे सभी जानकारी पता थी.

उस जानकर अकाउंटेंट ने बताया कि वो उद्योपति खुद अपने बिज़नेस से दुःखी है. उसने बैंकों से करोड़ों की लोन लेकर रखी है. उसे चुकाने के चक्कर मे उसको रात नींद तक नहीं आती. सारी आमदनी उसे ऋण चुकाने मे चली जा रही है.

उन लोगोंकी ऐसी बातें सुनकर भिखारी निराश होकर घर वापस लोटा, और सोचने लगा, यहां कोई भी संतुष्ट नहीं है. वैसे देखा जाय तो सबसे अच्छा धंदा भीख मांगने का है. कटोरी लो बैठ जाओ. ईश्वर के नाम पर मांगते रहो. जो मिला 100 % फायदा ही फायदा. ना टेक्स की चिंता, ना किसीको कमीशन देनेकी चिंता.

मित्रो, यह छोटीसी कहानी हमें बहुत कुछ कह जाती है. हर किसीको दूसरों की थाली मे लड्डू बड़ा दिखाई देता है. हर कोई धंदा करने वाला संतुष्ट नहीं है. छोटे को छोटी चिंता बड़ोंको बडी चिंता. इस दुनिया के कई देश भी अन्य समृद्ध देशों से लोन लेकर देश चला रहे है. वो भी तो कोई संतुष्ट नहीं है.

संतुष्टि संतों मे पायी जाती है. दे उसका भी भला, ना दे उसका भी भला. जोला उठाया चल पड़े. उनको भौतिक दुनिया से कोई लेना देना नहीं होता है. हम लोग चटपटा खाने के लिए जीते है, साधु संन्यासी जीनेके लिए खाते है. वें विश्व शांति और जगत के कल्याण हेतु जीते है, इसका प्रमाण हमें हमारे वेद पुराण तथा स्मृतियों से मिलता है जो उन लोगों की हजारों बरसों की खोज और तपस्चर्या का फल है.

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