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रामायण की बात आते ही हमें , ” राम, लक्ष्मण, जानकी जय बोलो हनुमान जी ” की याद आती है. मगर आज मुजे अयोध्या के राजा दशरथ के चौथे पुत्र और श्री राम के जी के छोटे भाई शत्रुध्न जी की बात करनी है. वाल्मीकि रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन रानीयाँ थी , कौशल्या, सुमित्रा, और कैकई. कौशल्या से राम, कैकई से भरत और सुमित्रा से लक्ष्मण एवं शत्रुघ्न का जन्म हुआ था.
राजा शत्रुघ्न ने मधुपुरी (आधुनिक मथुरा) के शासक लवणासुर को मारकर मधुपुरी को फिर से बसाया था. शत्रुघ्न करीब बारह वर्ष तक मधुपुरी नगरी के शासक रहे थे. शत्रुध्न सत्यवादी , सदाचारी तथा भगवान राम जी के दासानुदास थे. श्री राम जी के वनवास गमन के बाद शत्रुध्न ने भरत का साथ निभाकर मिसाल हासिल की थी.
भरत के मामा युधाजित भरत को अपने साथ ले गये थे, तब शत्रुघ्न भी उनके साथ ननिहाल चले गये थे. इन्होंने भी माता, पिता, भाई, नव विवाहिता पत्नी सबका मोह छोड़कर भरत के साथ रहना और उनकी सेवा करना ही अपना परम कर्तव्य मान लिया था.
शत्रुध्न राम को बहुत प्यार करते थे. जब भरत के साथ ननिहाल से लौटने पर उन्हें पिता के मरण और लक्ष्मण, सीता सहित श्री राम के वनवास का समाचार मिला, तब इनका हृदय दु:ख और शोक से व्याकुल हो गया था. जब उनको सूचना मिली कि क्रूरा और पापिनी मंथरा के षड्यन्त्र से श्री राम जी को वनवास हुआ है. तो वो आग बबूला हो गये थे.
उसने क्रोधावेश मे मन्थरा की चोटी पकड़कर उसे आंगन में घसीटा था. और एक लात मारी थी. लात के प्रहार से उसका कूबर टूट गया था. तथा सिर फट गया था. मगर वहां उपस्थित भरत ने उसकी दशा देख कर छुड़वा दीया था. इस प्रसंग से पता चलता है की शत्रुध्न रामजी के प्रति कितनी आस्था और श्रद्धा रखते थे.
भगवान रामजी को पता था की शत्रुध्न का स्वभाव तेज है तो चित्रकूट से श्री राम की पादुकाएँ लेकर लौटते समय श्री रामजी ने शत्रुघ्न को बोला था कि शत्रुघ्न, तुझे मेरी और सीता की शपथ है कि तुम माता कैकेयी की सेवा करना, उन पर क्रोध बिलकुल नहीं करना.
शत्रुध्न बड़ा शूरवीर था. एक दिन ऋषि मुनि ओने भगवान श्री राम की सभा में उपस्थित होकर लवणासुर के अत्याचारों का वर्णन किया और उसका वध करके उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की तो प्रभु राम जी ने इसकी जिम्मेदारी शत्रुघ्न को दी थी.
भगवान श्री राम जी की आज्ञा से वहाँ जाकर शत्रुध्न ने प्रबल पराक्रमी लवणासुर का वध किया और मधुपुरी नगरी बसाकर वहाँ बहुत दिनों तक शासन किया. जो आज मथुरा के नामसे जानी जाती है. लवणासुर मथुरा से लगभग साढ़े तीन मील दक्षिण-पश्चिम की ओर स्थित रामायण में वर्णित मधुपुरी का राजा था जिसे मधुवन ग्राम कहते हैं. यहां पर लवणासुर की गुफा है. लवणासुर का वध करके शत्रुघ्न ने मधुपुरी के स्थान पर नई मथुरा नगरी बसाई थी.
भगवान श्री राम के परमधाम पधारने के समय मथुरा में अपने पुत्रों का राज्यभिषेक करके शत्रुघ्न अयोध्या पहुँचे थे
भगवान श्री राम जी राजा दशरथ के चार पुत्रों में सबसे बड़े पुत्र थे. दशरथ की तीन पत्नीयां थी (1) कौशल्या, (2) सुमीत्रा और (3) कैकयी. राम के तीन भाई थे. लक्ष्मण, भरत और शत्रुध्न. राम कौशल्या के पुत्र थे. सुमीत्रा के लक्ष्मण और शत्रुध्न दो पुत्र थे. कैकयी के पुत्र का नाम भरत था. शत्रुघ्न सबसे छोटा पुत्र था . दसरथ पुत्र श्रीराम की एक बहन भी थी, जिसका नाम शांता था.
शत्रुध्न की पत्नी का नाम श्रुतकीर्ति था. जो जनक के भाई कुशध्वज की पुत्री थीं. शत्रुध्न के दो पुत्र थे सुबाहु और शत्रुघाती. सुबाहु का मथुरा मे शासन था तथा शत्रुघाती का भेलसा (विदिशा) में शासन था.
शत्रुध्न के वंशजों का राज्य यहां पर अधिक दिन तक नहीं रहा था. भीमरथ यादव ने रघुवंशियों से मथुरा का राज्य छीन लिया था. प्राचीन काल में यह शूरसेन देश की राजधानी थी.
कम लोगोंको पता होगा की श्री शत्रुध्न का दूसरा नाम रिपुसूदन था. उल्लेखनीय है की दशरथ वाल्मीकि रामायण के अनुसार अयोध्या के रघुवंशी (सूर्यवंशी) पराक्रमी राजा थे. वह इक्ष्वाकु कुल के थे. प्रभु श्रीराम, जो भगवान श्री विष्णु का सातवा अवतार थे. दशरथ के चरित्र में आदर्श महाराजा, पुत्रों को प्रेम करने वाले पिता और अपने वचनों के प्रति पूर्ण समर्पित व्यक्ति दर्शाया गया है. उनकी तीन पत्नियाँ थीं कौशल्या, सुमित्रा तथा कैकेयी.
मुगल बादशाह अकबर द्वारा रामायण का फारसी अनुवाद करवाया था. उसके बाद हमीदाबानू बेगम, रहीम और जहाँगीर ने भी अपने खुद के लिये रामायण का अनुवाद करवाया था.
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