दुनिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर.

” तुंगनाथ मंदिर ” जिसे भगवान तुंगनाथ महादेव के नाम से भी जाना जाता है. यह 1000 साल से अधिक पुराना है. बताया जाता है कि इस मंदिर की खोज आदि शंकराचार्य ने की थी. यह प्रसिद्ध मंदिर भगवान शिव जी का निवास स्थान है और इसमें उनकी सुंदर मूर्ति है.

इस मंदिर के निकट ही देवी पार्वती और कई अन्य देवताओं की मूर्तियाँ भी स्थापित हैं. कठोर सर्दियों के कारण, सर्दियों के मौसम में भगवान शिव की मूर्ति को उनके नजदीकी शीतकालीन निवास, मुक्कुमठ मंदिर में ले जाया जाता है.

शिव जी के तुंगनाथ मंदिर का नयन रम्य प्राकृतिक नजारा देखने आने वाले भाविक भक्त यहांकी सुंदर कलात्मक वास्तुकला से रोमांचित हो जाते है.

तुंगनाथ चंद्रशिला उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्र में स्थित है. चंद्रशिला को मूनरॉक (Moon Rock) भी कहा जाता है. तुंगनाथ मंदिर दर्शन के साथ साथ ट्रेक के लिए जाने वाले लोगोंको देवरियाताल, चोपता, तुंगनाथ शिव मंदिर, चंद्रशिला चोटी (4000 मीटर) जैसे कई खूबसूरत स्थान उपलब्ध हैं. चोपता उत्तराखंड का एक छोटा सा हिल स्टेशन है जिसमें घास के मैदान और सदाबहार जंगल हैं जिनमें ट्रेक और कैंपिंग होती हैं. चोपता अपने खूबसूरत सनसेट के लिए जाना जाता है.

समुद्र तल से कुल 3680 मीटर की आश्चर्यजनक ऊंचाई पर स्थित तुंगनाथ मंदिर दुनिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर है. चंद्रशिला जिसे मून पीक के रूप में भी जाना जाता है, वह समुद्र तलसे कुल 4000 मीटर की ऊंचाई पर तुंगनाथ मंदिर के ऊपर स्थित चोटी है. चंद्रशिला चोटी के समिट प्वाइंट से शक्तिशाली हिमालय की चोटिया जैसे माउंट नंदा देवी, बंदर पूंछ, चौखंभा पर्वत, केदार गुंबद आदि देखा जा सकता है.

तुंगनाथ ट्रेकिंग अन्य हिमालय की ट्रेक की तुलना में आसान है. हर आयु वर्ग और लोगों के लिए उपयुक्त है. उत्तराखंड की अन्य समिट ट्रेक्स की तुलना में, यह सबसे आसानी से पहुँची जा सकने वाली ट्रेक है. यह आपको दुनियाके सबसे ऊंचे शिव मंदिर तुंगनाथ तक पहुंचाती है.

यह ट्रेक शक्तिशाली हिमालय की चोटियों का संपूर्ण 360-डिग्री दृश्य प्रस्तुत करती है. बिना ज्यादा दबाव के 4000 मीटर की हिमालय की चोटी को फतह करना आसान है.

कहा जाता है कि तुंगनाथ मंदिर का निर्माण पांडवों द्वारा किया गया था. महाभारत के युद्ध के बाद पांडव अपने भाइयों की हत्या के पाप से मुक्त होने के लिए भगवान शिव से क्षमा याचना के लिए गए. इसी प्रयास में पांडवों द्वारा भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए तुंगनाथ मंदिर का निर्माण किया गया.

पौराणिक मान्यता है कि रावण द्वारा भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए इसी स्थान पर तपस्या की गई थी.

एक अन्य मान्यता के अनुसार भगवान श्रीराम ने रावण के वध करने के बाद इसी स्थान पर रावण शिला में भगवान शिव की स्तुति की थी और उन्हें खुद को पाप से मुक्त करनेके लिए आग्रह किया. भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें इस पाप से मुक्ति दी थी.

तुंगनाथ मन्दिर से जुड़ी एक मान्यता यह भी है, कि माता पार्वती ने विवाह से पूर्व भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए इसी स्थान पर कठोर तपस्या की थी.

कहा जाता है कि एक बार राजा दक्ष ने चंद्रमा को क्षय रोग का श्राप दे दिया था, उसके बाद चंद्रशिला में चंद्रमा ने भगवान शिव का ध्यान किया था और भगवान शिव ने ही उन्हें दक्ष के श्राप से मुक्ति दिलाई थी.

कहते हैं कि सतयुग में राजा दक्ष की कई पुत्रियां थी. इनमें से सती का विवाह भगवान शिव से हुआ था एवं अन्य 27 कन्याओं का विवाह चंद्रमा से हुआ था. किंतु चंद्रमा का स्नेह केवल रोहिणी के साथ था, राजा दक्ष की 26 पुत्रियों ने इस बात की शिकायत राजा दक्ष से की.

तुंगनाथ मन्दिर से जुड़ी एक मान्यता यह भी है, कि माता पार्वती ने विवाह से पूर्व भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए इसी स्थान पर तपस्या की थी.

तुंगनाथ और चंद्रशिला की राह पर आप कुछ महान हिमालय के पक्षियों को आसानी से देख सकते हैं, विशेष रूप से नेपाल का राष्ट्रीय पक्षी मोनाल. अगर आप भाग्यशाली हैं तो हिमालयन तहर को भी कभी-कभी देखा जा सकता है. याद रहे दिसंबर से फरवरी तक इस क्षेत्र में भारी बर्फबारी के कारण ट्रेक थोड़ी कठिन हो जाती है.

चोपता, तुंगनाथ चंद्रशिला जाने का सबसे अच्छा समय रोडोडेंड्रोन फूल देखने के लिए मार्च, अप्रैल, और मई की शुरुआत है. मौसम के पूर्वानुमान और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए जून से अगस्त तक के मानसून के महीनों को भी इस ट्रेक के लिए अच्छा माना जाता है. हिमालय पर्वत श्रृंखलाओं के स्पष्ट दृश्यों के लिए तुंगनाथ और चंद्रशिला की यात्रा के लिए सितंबर से नवंबर सबसे अच्छे महीने माने जाते हैं.

इस दौरान बर्फीली चोटियों के नजारे साफ होते हैं. बेहद फिट ट्रेकर्स दिसंबर से फरवरी तक तुंगनाथ पहुंच सकते हैं, जहां गांव के गेस्ट हाउस के रूप में साधारण रहने के विकल्प होते हैं. चंद्रशिला टॉप से सूर्योदय के नजारे पौराणिक माने जाते हैं. तुंगनाथ में रहने पर व्यक्ति सूर्योदय से पहले चंद्रशिला टॉप पर पहुंच सकता है,अन्यथा चोपता से ट्रेक शुरू करना और सूर्योदय के लिए चंद्रशिला पहुंचने की उम्मीद करना एक मुश्किल स्थिति बन सकती है.

तुंगनाथ ट्रेक के लिए चोपता पहुंचने के लिए उत्तराखंड के प्रवेश शहरों जैसे देहरादून, कोटद्वार, हरिद्वार या तो फिर ऋषिकेश तक पहुंचना पड़ता है.दिल्ली, फरीदाबाद, गुड़गांव नोएडा, गुरुग्राम या गाजियाबाद में रहने वाले दिल्ली NCR के लोगों के लिए चोपता सबसे अच्छा वीकेंड प्लेस है.

दिल्ली, गाजियाबाद, फरीदाबाद, गुड़गांव या गुरुग्राम और नोएडा से चोपता के लिए सीधी बसें उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन आप ऊखीमठ, गुप्तकाशी और गोपेश्वर तक बसें ले सकते हैं.

दिल्ली से, यदि उपलब्ध हो तो आप ऊखीमठ या रुद्रप्रयाग के लिए सीधी बस ले सकते हैं. अन्यथा, आप दिल्ली आईएसबीटी से ऋषिकेश, हरिद्वार या देहरादून के लिए बस ले सकते हैं. वहां से आप ऊखीमठ के लिए बस ले सकते हैं. ऊखीमठ से चोपता पहुंचने के लिए आपको टैक्सी लेनी होगी. ऊखीमठ से चोपता की दूरी करीब 29 कि.मी. है.

आप दिल्ली NCR से कैब किराए पर ले सकते हैं या चोपता पहुंचने के लिए अपनी कार चला सकते हैं.

चोपता से तुंगनाथ मंदिर ट्रेक की दूरी लगभग 5 किमी है और तुंगनाथ मंदिर से चंद्रशिला चोटी तक लगभग 1 किमी है. चोपता में बिजली और मोबाइल सिग्नल नहीं हैं और न ही कोई एटीएम है. यह वह जगह है जहाँ आप अपने आप को दैनिक जीवन की नीरसता से दूर करना चाहते हैं. यह पंच केदार के सबसे ऊंचे तुंगनाथ तक ट्रेकिंग का बेस है.

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