नवरात्रि की नव देवियोंमे देवी दुर्गा का सातवां स्वरूप माता कालरात्रि है. इनका रंग काला होने के कारण ही इन्हें कालरात्रि कहा जाता है. मां कालरात्रि ने असुरों के राजा रक्तबीज का वध किया था. देवी माता की पूजा शुभ और फलदायी होने के कारण इन्हें शुभंकारी भी कहते हैं. देवी के इस अवतार को देखना डरा देने जैसा है. आंखों में क्राध लिए देवी असरों का वध करने जाती हैं.
भगवान शिव जी ने माता से अनुरोध किया. इसके बाद मां पार्वती ने स्वंय शक्ति व तेज से मां कालरात्रि को उत्पन्न किया. इसके बाद जब मां दुर्गा ने दैत्य रक्तबीज का अंत किया और उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को मां कालरात्रि ने जमीन पर गिरने से पहले ही अपने मुख में भर लिया. इस रूप में मां पार्वती कालरात्रि कहलाई.
कालरात्रि को गुड़ और गुड़ से बनी चीजें पसंद है. इसलिए महा सप्तमी के दिन माता रानी को गुड़ से बनी चीजों का भोग लगाने से वे प्रसन्न होती हैं और सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं.
माता माँ को लाल रंग के वस्त्र पसंद है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां को लाल रंग पसंद है. माता काली की पूजा में लाल रंग के पुष्प चढ़ाए जाते है. गुड़हल का पुष्प इनको बहुत प्रिय हैं व मान्यता है कि इनको 108 लाल गुड़हल के फूल या माला अर्पित करने से भक्तों की मनोकामना शीघ्र पूर्ण होती है.
कालरात्रि देवी पार्वती का सबसे उग्र रूप हैं, वह अपने भक्तों को अभय और वरद मुद्रा (आशीर्वाद और सुरक्षा) का आशीर्वाद देती हैं. इनके रूप का महत्व: काला: मन से अंधकार को दूर करता है. गधा: सेवा, वफादार और दृढ़ निश्चय का प्रतीक है.
माता कालरात्रि की कथा :
कथा के अनुसार दैत्य शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज ने तीनों लोकों में हाहाकार मचा रखा था. इससे चिंतित होकर सभी देवतागण शिव जी के पास गए. शिव जी ने देवी पार्वती से राक्षसों का वध कर अपने भक्तों की रक्षा करने को कहा. शिव जी की बात मानकर पार्वती जी ने दुर्गा का रूप धारण किया और शुंभ-निशुंभ का वध कर दिया. परंतु जैसे ही दुर्गा जी ने रक्तबीज को मारा उसके शरीर से निकले रक्त से लाखों रक्तबीज उत्पन्न हो गए.
इसको देख दुर्गा जी ने अपने तेज से कालरात्रि को उत्पन्न किया. इसके बाद जब दुर्गा जी ने रक्तबीज को मारा तो उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को कालरात्रि ने अपने मुख में भर लिया और सबका गला काटते हुए रक्तबीज का वध कर दिया. इसलिए देवी के इस अवतार को कालरात्रि या काली मां कहा जाता है.
देवी कालरात्रि का अवतार काफी डरावना है. माता जी का शरीर रात के अंधकार की तरह काला है, बाल खुले और बिखरे हुए हैं. मां के गले में विधुत की माला है. इनके चार हाथ हैं जिसमें इन्होंने एक हाथ में कटार और एक हाथ में लोहे का कांटा धारण किया हुआ है. इसके अलावा इनके दो हाथ वरमुद्रा और अभय मुद्रा में है. इनके तीन नेत्र है तथा इनके श्वास से अग्नि निकलती है.कालरात्रि का वाहन गर्दभ (गधा) है. देवी ने इसी अवतार में रक्तबीज जैसे असुर का वध कर भक्तोंकी रक्षा की थी.
माना जाता है कि देवी के इस रूप में सभी राक्षस,भूत, प्रेत, पिशाच और नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश होता है, जो उनके आगमन से पलायन करते हैं. माता कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है, लेकिन ये सदैव शुभ फल ही देने वाली हैं. इसी कारण इनका एक नाम ‘शुभंकारी’ भी है. अतः इनसे भक्तों को किसी प्रकार भी भयभीत अथवा आतंकित होने की आवश्यकता नहीं है.
मान्यता है कि माता कालरात्रि की पूजा करने से मनुष्य समस्त सिद्धियों को प्राप्त कर लेता है. माता कालरात्रि पराशक्तियों (काला जादू) की साधना करने वाले जातकों की भी देवी हैं. मां की भक्ति से दुष्टों का नाश होता है और ग्रह बाधाएं दूर हो जाती हैं. देवी असुरों और बुरी शक्तियों का नाश करती हैं। इसलिए देवी कालरात्रि की पूजा सामान्य नहीं है.
नवरात्रि की सप्तमी के दिन माँ कालरात्रि की आराधना का विधान है. इनकी पूजा-अर्चना करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है व दुश्मनों का नाश होता है, तेज बढ़ता है. माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में सातवें दिन इसका जाप करना चाहिए.