” आलम आरा ” हमारे देश और फ़िल्म इंडस्ट्री की प्रथम बोलती फ़िल्म है. जिसका प्रथम प्रदर्शन बंबई के मैजेस्टिक सिनेमा में ता : 14 मार्च 1931 के दिन हुआ था. आलम आरा का अर्थ होता है,” विश्व की रौशनी.” यह फ़िल्म इम्पीरियल मूवीटोन कंपनी के बैनर तले बनी थी. यह फ़िल्म दो घंटा 4 मिनट लंबी थी.
इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार के रूपमें मास्टर विट्ठल और श्री पृथ्वीराज कपूर ने भूमिका निभाई थी. इस फ़िल्म की हीरोइन थी, जुबैदा. फिल्म के निर्देशक थे अर्देशिर ईरानी. यह पहली बोलती फ़िल्म देखने बॉक्स ऑफिस पर इतनी भीड़ हुई थी की उपस्थित भीड़ को काबू में रखने के लिये पुलिस बुलानी पड़ी थी.
आलम आरा फ़िल्म के लेखक थे जोसेफ डेविड इसके संगीतकार थे फ़िरोज़शाह म. मिस्त्री. इस फिल्म का छायांकन टनर एकल प्रणाली कैमरे द्वारा किया गया था जो ध्वनि को सीधे फिल्म पर दर्ज करते थे. क्योंकि उस समय साउंडप्रूफ स्टूडियो उपलब्ध नहीं थे इसलिए दिन के शोरशराबे से बचने के लिए इसकी शूटिंग ज्यादातर रात में की जाती थी. शूटिंग के समय माइक्रोफ़ोन को अभिनेताओं के पास छिपा कर रखना पडता था.
उल्लेखनीय है की ता : 3 मई, 1913 को पहली मूक फीचर फिल्म राजा हरिश्चंद्र प्रदर्शित हुई थी, उसके 18 साल बाद देश की पहली बोलती फिल्म आलम आरा रिलीज हुई थी. इस फिल्म का मशहूर गीत ” दे दे खुदा के नाम पर ” जो भारतीय सिनेमा का भी पहला गीत था और इसे अभिनेता वज़ीर मोहम्मद खान ने गाया था, जिन्होने फिल्म में एक फकीर का चरित्र निभाया था.
उस समय भारतीय फिल्मों में पार्श्व गायन शुरु नहीं हुआ था, इसलिए इस गीत को हारमोनियम और तबले के संगीत की संगत के साथ सजीव रिकॉर्ड किया गया था.आलम आरा फिल्म ने भारतीय फिल्मों में फिल्मी संगीत की नींव भी रखी थी. यह एक सिर्फ बोलती फिल्म नहीं थी बल्कि यह बोलने और गाने वाली फिल्म थी जिसमें बोलना कम और गाना अधिक था. इस फिल्म कुल सात गीत थे.
आलम आरा फ़िल्म के लेखक जोसेफ डेविड जिन्हें प्यार से लोग जोसब दादा कहते थे.जोसेफ दादा हिंदी, उर्दू, गुजराती और मराठी में लिख सकते थे. उन्हें ग्रीक, यहूदी, मिस्त्र, ईरानी, चीनी और भारतीय साहित्य की भी अच्छी समझ और महारथ थी.
जोसेफ दादा ने आलम आरा नाम का एक नाटक लिखा था. अर्देशिर ईरानी ने जब एक बोलती फिल्म बनाने की सोची तो उन्होंने भी आलम आरा को ही चुना. जोसेफ दादा ने जब अपने नाटक का फिल्म रूपांतर किया तो उन्होंने इस बात का ध्यान रखा कि यह फिल्म हर वर्ग के दर्शकों को आसानी से समझ आ सके. यह कल्पना प्रधान फ़िल्म थी.
यह फ़िल्म दर्शकों के लिये बिलकुल नया अनुभव था. दर्शकों को यह भी नहीं मालूम होता था कि गीत-संगीत और संवादों से भरी फिल्में कैसी होती हैं. तब प्लेबैक गायकों की अवधारणा प्रचलित नहीं थी इसीलिए खुद अभिनेताओं को गायकी भी करनी पड़ती थी. फिल्म में माइक न दिखे इसके लिए बहुत सावधानी बरतनी पड़ती थी.
वो जमाने में सिनेमाघरों में जाकर फिल्में देखना कोई सामान्य बात नहीं थी लेकिन इस फिल्म को देखने के लिए इतनी भीड़ जमा हो गई थी कि पुलिस को आकर भीड़ को काबू में लेना पड़ा था. ये फिल्म सिनेमाघरों में 8 हफ्तों तक हाउस फुल रही थी.
इस फ़िल्म की दुःखद बात ये है की आज फ़िल्म इंडस्ट्रीज के पास पहली बोलती फिल्म आलमआरा की प्रिंट उपलब्ध नहीं है. न तो किसी ने इस फिल्म का प्रिंट बचा कर रखा और न कभी किसी ने आलमआरा फिल्म का दस्तावेजीकरण किया था.
आज न तो आलमआरा की धुन किसी को याद है. फ़िल्म के संगीत में केवल तबला, हारमोनियम और वॉयलिन का ही प्रयोग किया गया था. फिल्म का संगीत फिरोजशाह मिस्त्री और बेहराम ईरानी ने तैयार किया था. डब्ल्यू. एम. खान ने फकीर की भूमिका निभाते हुए ” दे दे खुदा के नाम पर ” गीत स्वयं गाया था. पूना स्थित फिल्म पुरातत्व विभाग आलम आरा के अवशेषों की खोज में लगा है, पर किसी को फिल्म का एक भी फ्रेम मिलने की उम्मीद नहीं है.
आलम आरा फ़िल्म रिलीज़ हुई तब मूक फ़िल्मों का जमाना था. आगे निर्माता बोलती फ़िल्म बनाने में लगे थे. तमाम प्रमुख निर्माता कंपनियों में होड़ लगी थी कि पहली बोलती फ़िल्म बनाने का श्रेय किसे मिलेगा ? मगर आलम आरा फ़िल्म सबसे पहले रिलीज हो गई. उसके बाद रिलीज हुई फ़िल्म ” शिरीन फरहाद ” दूसरे स्थान पर रही थी.
आलम आरा फ़िल्म के पोस्टर्स पर ” All TALKING, SINGING AND DANCING All ” टैगलाइन लिखी गयी थी, जिसके लिए हिंदी फ़िल्में दुनियाभर में लोकप्रिय फ़िल्म की कहानी जोसेफ़ डेविड के पारसी प्ले पर आधारित थी, जिसके केंद्र में एक राजकुमार और आदिवासी लड़की की प्रेम कहानी थी. आलम आरा बहुत बड़ी हिट फ़िल्म थी.तथा इसका संगीत भी खूब लोकप्रिय हुआ था.
फ़िल्म का गाना ” दे दे ख़ुदा के नाम पर ” को भारतीय सिनेमा का पहला गाना माना जाता है. ” आलम आरा ” के निर्देशक ईरानी को भारत की पहली बोलती फ़िल्म बनाने की प्रेरणा एक अमेरिकन फ़िल्म ” शो बोट ” से मिली थी, जो सन 1929 में रिलीज़ हुई थी. हालांकि ये भी पूरी तरह साउंड फ़िल्म नहीं थी. भारतीय सिनेमा उस वक़्त तकनीकी रूप से ज़्यादा विकसित नहीं था.
ईरानी ने आलम आरा बनाने के लिए टैनर सिंगल सिस्टम कैमरा से शूट किया गया था, जो फ़िल्म पर ध्वनि को भी रिकॉर्ड कर सकता था. स्टूडियो के पास में ही रेलवे ट्रैक था, इसीलिए वातावरण और आस-पास के शोर से बचने के लिए आलम आरा का अधिकांश हिस्सा रात में 1 से 4 बजे के बीच शूट किया गया था. एक्टर्स के संवाद रिकॉर्ड करने के लिए उनके पास गुप्त माइक्रोफोन लगाये गये थे.
भारत में थियेटर के जनक कहलाने वाले श्री पृथ्वीराज कपूर, आलम आरा में काम करने से पहले 9 फिल्मों में काम कर चुके थे. पृथ्वीराज कपूर के तीन लड़के राज कपुर, शम्मी कपूर, शशिकपूर से तो आप सभी परिचित हो ही.
” आलम आरा ” फ़िल्म के लिये ऐसे कलाकार को चुना गया था, जो हिंदुस्तानी या उर्दू भाषा बोलना जानते हों. रूबी को हिंदुस्तानी भाषा नही आती थी. इसीलिए इराक़ी पारसी एक्ट्रेस रूबी मायर्स को बदल दिया गया था. और ज़ुबैदा को लीडिंग रोल मिला था.
लीड रोल के लिए पहले महबूब ख़ान को चुना गया था, जिन्होंने बाद में मदर इंडिया जैसी क्लासिक फ़िल्म बनायी थी. मगर, महबूब को इसलिए नहीं लिया गया, क्योंकि फ़िल्म के लिए अधिक लोकप्रिय कलाकार की जरुरत थी. इसीलिए अभिनेता और स्टंटमैन मास्टर विट्ठल को मुख्य किरदार के लिए अंतिम रूप से चुना गया था.
आज भारत देश में हिंदी, मराठी, गुजराती, अंग्रेजी, मलियालम, तमिल, तेलगू, भोजपुरी, बांग्ला, सिंधी जैसी विविध भाषाओंमे लाखों फ़िल्म अब तक बन चुकी है, मगर फ़िल्म इंडस्ट्रीज के लिये दुर्भाग्य की बात है , कि नेशनल आर्काइव ऑफ इंडिया के पास इस फिल्म का एक भी प्रिंट मौजूद नहीं है.
——=== शिवसर्जन ===——