दो बार प्रधानमंत्री रहे श्री गुलजारीलाल नंदा भाडे के मकान में रहने मजबूर था.

बहुमुखी प्रतिभा के धनी गुलजारीलाल.

आजकल राजनीति व्यापार बन गई हैं. नगर सेवक बनते ही साइकिल से फोर व्हीलर में आ जाते हैं, आमदार बनते ही महंगी कार में वीहरने लगता हैं.

सांसद बनते ही कई जन भक्षक नेता हवाई जहाज खरीदने के काबिल हो जाते हैं. मगर कुछ ऐसे भी जनसेवक हैं, जो राजनीत को जन सेवक का माध्यम समझते हैं, और देश की सेवा के लिए अपना जीवन समर्पित कर देते हैं.

आज ऐसे ही एक महान व्यक्ति की बात करनी हैं जिसने दाम नहीं काम को ही अपना मकसद बनाकर उनका जीवन देश हित में व्यतीत कर दिया. मैं बात कर रहा हूं , भारत के कार्यवाहक प्रधानमंत्री श्री गुलजारीलाल नन्दा जी की. जिन्होंने पहली बार 1964 में प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद और दूसरी बार 1966 में प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद ; वे इन दोनों अवधियों के दौरान भारत के गृह मंत्री थे और यही कारण है कि उन्हें भारत के प्रधानमंत्री के रूप में चुना गया था.

उन्होंने ईमानदारी इतनी की के अंतिम दिनों में उनको भाड़ेके मकान में रहने की नौबत आयी. जब कभी किसी पत्रकार का इस और ध्यान गया तो हलचल मच गयी और स सम्मान उसे ले जाया गया.

श्री गुलजारीलाल नन्दा जी का जन्म तारीख : 4 जुलाई 1898 के दिन सियालकोट, पंजाब, पाकिस्तान में हुआ था. वे सौ साल तक जिए थे और उनकी मृत्यु ता : 15 जनवरी 1998 के दिन हुई थी. श्री गुलजारी लाल नंदा जी की समाधि नारायण घाट स्थित हैं.

श्री गुलजारी लाल नंदा जी एक ईमानदार भारतीय राजनीतिज्ञ थे.

उनको एक स्वच्छ छवि वाले गांधीवादी राजनेता के रूप में सदैव याद किया जाता हैं. इनके पिता का नाम बुलाकी राम नंदा तथा माता का नाम श्रीमती ईश्वर देवी नंदा था. नंदा की प्राथमिक शिक्षा सियालकोट में ही सम्पन्न हुई. इसके बाद उन्होंने लाहौर के ” फ़ोरमैन क्रिश्चियन कॉलेज ” तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्ययन किया.

गुलज़ारी लाल नंदा जी ने कला संकाय में स्नातकोत्तर एवं क़ानून की स्नातक उपाधि प्राप्त की. इनका विवाह 1916 में 18 वर्ष की उम्र में ही लक्ष्मी देवी के साथ सम्पन्न हुआ था.

गुलज़ारी लाल नंदा का भारत के स्वाधीनता संग्राम में योगदान रहा. नंदा का जीवन आरम्भ से ही राष्ट्र के प्रति समर्पित था. सन 1921 में उन्होंने असहयोग आन्दोलन में भाग लिया था. नंदा बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे. उन्होंने मुम्बई के नेशनल कॉलेज में अर्थशास्त्र के व्याख्याता के रूप में अपनी सेवाएँ प्रदान कीं थी.

अहमदाबाद की टेक्सटाइल्स इंडस्ट्री में यह लेबर एसोसिएशन के सचिव भी रहे और सन 1922 से 1946 तक का लम्बा समय इन्होंने इस पद पर गुज़ारा. यह श्रमिकों की समस्याओं को लेकर सदैव जागरूक रहे और उनका निदान करने का प्रयास करते रहे. 1932 में सत्याग्रह आन्दोलन के दौरान और सन 1942 से 1944 में ” भारत छोड़ो ” आन्दोलन के समय इन्हें जेल भी जाना पड़ा.

श्री गुलजारी लाल नंदा 1937 में बम्बई विधान सभा के लिए चुने गए एवं 1937 से 1939 तक वे बंबई सरकार के संसदीय सचिव (श्रम एवं उत्पाद शुल्क) रहे. बाद में, बंबई सरकार के श्रम मंत्री (1946 से 1950 तक) के रूप में उन्होंने राज्य विधानसभा में सफलतापूर्वक श्रम विवाद विधेयक पेश किया. उन्होंने कस्तूरबा मेमोरियल ट्रस्ट में न्यासी के रूप में, हिंदुस्तान मजदूर सेवक संघ में सचिव के रूप में एवं बाम्बे आवास बोर्ड में अध्यक्ष के रूप में कार्य किया. वे राष्ट्रीय योजना समिति के सदस्य भी रहे. राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस के आयोजन में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और बाद में इसके अध्यक्ष भी बने थे.

सन 1947 में उन्होंने जेनेवा में हुए अंतरराष्ट्रीय श्रम सम्मेलन में सरकारी प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया. उन्होंने सम्मेलन द्वारा नियुक्त ‘द फ्रीडम ऑफ़ एसोसिएशन कमेटी’ पर कार्य किया एवं स्वीडन, फ्रांस, स्विट्जरलैंड, बेल्जियम एवं इंग्लैंड का दौरा किया ताकि वे उन देशों में श्रम एवं आवास की स्थिति का अध्ययन कर सकें.

मार्च 1950 में वे योजना आयोग में इसके उपाध्यक्ष के रूप में शामिल हुए. अगले वर्ष सितंबर में केंद्र सरकार में योजना मंत्री बने. इसके अलावा उन्हें सिंचाई एवं बिजली विभागों का प्रभार भी दिया गया. वे 1952 के आम चुनाव में मुंबई से लोक सभा के लिए चुने गए एवं फिर से योजना, सिंचाई एवं बिजली मंत्री के रूप में नियुक्त हुए. उन्होंने सन 1955 में सिंगापुर में आयोजित योजना सलाहकार समिति एवं 1959 में जेनेवा में आयोजित अंतरराष्ट्रीय श्रम सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया.

सन 1962 के आम चुनाव में वे गुजरात के साबरकांठा निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा के लिए पुन: निर्वाचित हुए. उन्होंने 1962 में समाजवादी लड़ाई के लिए कांग्रेस फोरम की शुरूआत की. वे 1962 एवं 1963 में केन्द्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्री एवं 1963 से 1966 तक गृह मंत्री रहे.

पंडित नेहरू की मृत्यु के बाद उन्होंने 27 मई 1964 को भारत के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली. ताशकंद में श्री लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद फिर से 11 जनवरी 1966 को उन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली थी.

श्री गुलजारीलाल नंदाजी ने एक लेखक के रुपमें कई पुस्तकों की रचना की. जिनके नाम इस प्रकार हैं : सम आस्पेक्ट्स ऑफ़ खादी, अप्रोच टू द सेकंड फ़ाइव इयर प्लान, गुरु तेगबहादुर, संत एंड सेवियर, हिस्ट्री ऑफ़ एडजस्टमेंट इन द अहमदाबाद टेक्सटाल्स, फॉर ए मौरल रिवोल्युशन तथा सम बेसिक कंसीड्रेशन आदि.

गुलज़ारीलाल नन्दा को देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न (1997) और दूसरा सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान पद्म विभूषण प्रदान किया गया हैं.

श्री नंदा जी ने प्रिय भगवान श्री कृष्ण जी के गीता ज्ञान तपोभूमि कुरु क्षेत्र के काया कल्प करने में पुरे 22 साल दिए थे.

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