भारत को कृषिप्रधान देश कहा जाता है. देश की अर्थव्यवस्था काफी हद तक खेती पर निर्भर करती है. सन 2011 की जनगणना के अनुसार देश में 649,481 गांव हैं. देश की हालत भी गांव की स्थिति पर निर्भर करती है.
आज मुजे बात करनी है, दक्षिण एशिया का सबसे धनी गांव की. ये गांव गुजरात में स्थित है, इसका नाम है ” माधापर.” इस गांव के ज्यादा वाशिंदे विदेशों में रहते हैं लेकिन वहां से रुपिया अपने गांव के बैंकों में भेजते हैं. वर्तमान में इस गांवमें कुल 17 बैंक हैं.
गुजरात के कच्छ जिले का माधापार गांव के लोग बैंकिंग जानते हैं. लगभग 7,600 आवासीय प्रतिष्ठानों और 92,000 लोगों वाले इस गांव में इन बैंकों में संचयी रूप से 5,000 करोड़ रुपये जमा हैं. एक अनुमान के गांव में प्रति व्यक्ति औसत जमा राशि करीब 15 लाख रुपये है. यह माधापार गांव को भारत ही नहीं, संभवतः दुनिया का सबसे अमीर गांव बनाता है.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, गांव में, परिवार के अधिकांश सदस्य और रिश्तेदार यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, अफ्रीका और खाड़ी देशों जैसे विदेशी देशों में रहते हैं और काम करते हैं.
इसकी शुरुआत 1968 में लंदन में कच्छ माधापर कार्यालय या माधापार ग्राम एसोसिएशन की स्थापना के साथ हुई थी, जिसका उद्देश्य इस क्षेत्र के उन लोगों को जोड़ना था जो भारत के बाहर रहते हैं. इसके बाद समुदाय कुछ ऐसा बन गया जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था और गांव एक आदर्श गांव बन गया था.
आज गांव में स्कूल, कॉलेज, बांध, स्वास्थ्य केंद्र, मंदिर, हरियाली और झीलें हैं, यह सब उन लोगों की बदौलत हुआ जो अपनी जड़ों से जुड़े रहे. भारत के गुजरात राज्य के कच्छ जिले में स्थित यह गाँव बैंक जमा के मामले में यह भारत के सबसे अमीर गांवों में से एक बन गया है.
माधापार कच्छ के मिस्त्रियों द्वारा स्थापित 18 गांवों में से एक है. 12वीं शताब्दी में, इस समुदाय के कई लोग जिन्हें कच्छ गुर्जर क्षत्रिय भी कहा जाता है, धनेटी नामक गांव में चले गए और बाद में अंजार और भुज के बीच बस गए. माधापार का नाम माधा कांजी सोलंकी के नाम पर रखा गया है, जो वर्ष 1473-1474 (वि.सं. 1529) में धनेटी गांव से माधापार चले गए थे.
माधा कांजी गुजरात के सोलंकी वंश के हेमराज हरदास की तीसरी पीढ़ी थे, जो हलार क्षेत्र से धनेती और फिर माधापार चले गए. प्रारंभिक माधापार आज जूनावास (पुराना निवास) के नाम से जाना जाता है. इन योद्धा क्षत्रियों को बाद में मुख्य रूप से उनके व्यवसाय के कारण मिस्त्री द्वारा जाना जाने लगा. इन मिस्त्रियों ने जूनावास की स्थापना की और गांव के सभी प्रारंभिक बुनियादी ढांचे, मंदिरों के विकास और कच्छ के अन्य वास्तुकारों के निर्माण में बहुत योगदान दिया.
पटेल कन्बी समुदाय 1576 ई. (वि.सं. 1633) के आसपास गाँव में आ गया. नया निवास सन 1857 के आसपास शुरू किया गया था, उस समय तक माधापार भीड़भाड़ वाला हो गया था और कनबी जैसे अन्य समुदाय भी बढ़ गए थे और समृद्ध हो गए थे.
यह गाँव 2001 के गुजरात भूकंप से बहुत अधिक प्रभावित नहीं हुआ था , जिससे इस क्षेत्र में गंभीर क्षति हुई थी. हालाँकि, अद्वितीय वास्तुकार के साथ जूना वास (पुराना निवास) में मिस्त्रियों के कुछ सदी पुराने घर 26 जनवरी 2001 के भूकंप में क्षतिग्रस्त हो गए थे.
पहला सरकारी लड़कों का स्कूल 1884 में शुरू किया गया था. मिस्त्री समुदाय के भीमजी देवजी राठौड़ ने 1900 में माधापार में पहला लड़कियों का स्कूल बनाया और शुरू किया था. पहला हाई स्कूल, माधापार सरस्वती विद्यालय हाई स्कूल,1968 में स्थापित किया गया था.
माधापार गांव कच्छ (गुजरात) प्रांत के मुख्य शहर भुज से लगभग 3 किमी की दूरी पर है. हाल ही में, नई झीलों, चेक डैम और गहरे बोर वाले आर्टेशियन कुओं के कारण शहर हरा-भरा हो गया है, जो पूरे साल ताजा पानी उपलब्ध कराते हैं. इसमें नए स्वास्थ्य केंद्र, खेल के मैदान, पार्क और मंदिर हैं.
माधापार में दो बड़ी झीलें हैं. एक को जगसागर कहा जाता है और इसे मिस्त्री रेलवे ठेकेदार जगमल भीमा राठौड़ ने सन 1900 के आसपास बनाया था. इसका नाम उन्हीं के नाम पर रखा गया है. उनके भाई, करसन भीम राठौड़ ने सुरलभीत मंदिर के पास सीढ़ियों वाली एक कृत्रिम झील भी बनवाई , जिसे आज करसन भीमजी के तालाब के नाम से जाना जाता है. दूसरे को मेघराजजी झील कहा जाता है, जिसका नाम कच्छ राज्य के अंतिम शासक मेघराजजी के नाम पर रखा गया है.
माधापार में सनातन ठाकोर मंदिर, महादेव मंदिर, बारला मंदिर और श्री स्वामीनारायण मंदिर (1949) हैं. यहां सोलंकी , राठौड़ों की कुलदेवी मोमाई माता के मंदिर भी हैं.
इस क्षेत्र की समृद्धि में कृषि ने एक बड़ी भूमिका निभाई है, और अधिकांश कृषि सामान मुंबई को निर्यात किया जाता है. इनमें मुख्य रूप से मक्का , आम और गन्ना शामिल हैं.
सन 1990 के दशक में जब देशमें तकनीक का ज़माना आया तो माधापार देश के सबसे पहले हाइटेक गांव की शक्ल ले चुका था. माधपार गांव में एक अत्याधुनिक गौशाला भी है. माधापार गांव में ज्यादातर आबादी पटेल की है. इनमें से 65 प्रतिशत से ज्यादा लोग NRI हैं. ये देश के बाहर रहकर काम धंधा करते हैं और अपने परिवारों को पैसे भेजते हैं.
गांव में प्ले स्कूल से लेकर कॉलेज तक की पढ़ाई होती है. इस गांव में प्ले स्कूल से लेकर इंटर कॉलेज की पढ़ाई हिंदी और इंग्लिश दोनों माध्यमों में होती है. गांव के लोगों सभी सामान एक जगह पर मिल सके, इसके लिए गांव में ही एक शॉपिंग मॉल बनवाया गया है.
साथ ही अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त एक हेल्थ सेंटर भी बनाया गया है. गांव के पोस्ट ऑफिस में 200 करोड़ रुपए डिपॉजिट है.