” नमस्ते” सम्पूर्ण भारत देश का सर्वाधिक उपयोग में लिया जाने वाला लोकप्रिय अभिवादन है. अधिकतर समय, जैसे ही लोगों को भारतीय होने की जानकारी प्राप्त होती है, वे अपने हाथ जोड़कर, नमस्ते द्वारा अभिवादन करते हैं.
भारत में विविध जाती और धर्म के लोग वास्तव्य करते है. मगर हम लोग जब एक दूसरे से मिलते हैं तो दोनों हाथ मिलाकर नमस्ते बोलकर सिर झुकाते हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि नमस्ते का क्या मतलब होता है ?
नमस्ते या नमस्कार को संस्कृत में विच्छेद करें तो हमें पता चलता है कि नमस्ते दो शब्दों से बना है नमः + अस्ते. नमः का मतलब होता है झुक गया और असते मतलब सर. (अहंकार या फिर अभिमान से भरा) यानि मेरा अहंकार से भरा सिर आपके सामने झुक गया.
प्रणाम” और “नमस्ते” में अंतर देखा जाय तो नमस्ते सलाम करने का एक सामान्य तरीका है, लेकिन जब आप अपनी पूर्ण श्रद्धाके साथ किसी को सम्मान देते हैं तो हम उसे प्रणाम कहेंगे. हालांकि दोनों ही मुद्रा में मुद्रा समान ही रहेगा.
साष्टांग प्रणाम ( = स + अष्ट + अंग प्रणाम = आठ अंगों के द्वारा प्रणाम) में (1) सिर, (2) हाथ, (3) पैर, (4) हृदय, (5) आँख, (6) घुटने, (7) वचन और (8) मन इन आठों से युक्त होकर और जमीन पर सीधा लेटा जाता है.
नमस्ते और नमस्कार शब्द के अर्थ में कोई अंतर नहीं है. वैसे नमस्ते अपने बराबर वाले व्यक्ति को किया जाता है जबकि नमस्कार अपने से बड़े व्यक्ति को किया जाता है. ” नमस्ते ” और ” नमस्कार “शब्द पर्याय होते हुए भी उन दोनों के बीच आध्यात्मिक अंतर है. नमस्कार शब्द नमस्ते से अधिक सात्त्विक है.
शास्त्रों में पांच प्रकार के अभिवादन बताए गए हैं, जिनमें से एक प्रकार है “नमस्ते” और “नमस्कार”. संस्कृत में इसे विच्छेद करने पर आप पाएंगे कि यह दो शब्द ” नमः और असते ” से मिलकर बना है.
पांच प्रकार के अभिवादन :
(1) प्रत्युथान : किसी के स्वागत में उठकर खड़े होना.
(2) नमस्कार : हाथ जोड़कर सत्कार करना.
(3) उपसंग्रहण : बड़े, बुजुर्ग, शिक्षक के पांव छूना.
(4) साष्टांग : पांव, घुटने, पेट, सिर और हाथ के बल जमीन पर लेटकर सम्मान करना.
(5) प्रत्याभिवादन : अभिनन्दन का अभिनन्दन से जवाब देना.
नमस्कार करने के फायदे :
हाथ जोड़कर नमस्कार करने के पीछे वैज्ञानिक कारण भी माना जाता है. इससे हृदयचक्र व आज्ञाचक्र सक्रिय होता है और शरीर में सकारात्मक उर्जा का तेजी से संचार होता है जो मानसिक शांति मिलती है और आत्मबल प्राप्त होता है. इससे क्रोध पर नियंत्रण बढ़ता है और स्वभाव में विनम्रता आती है.
इसलिए हाय-हेलो की बजाय नमस्कार को हर तरह से फायदेमंद बताया गया है. भारत के अनेक राज्यों में सही ढंग से नमस्ते या नमस्कार बोलने के लिए अपने दोनों हाथों को एक साथ जोड़कर सामने वाले वेक्ति को अभिवादन और विनम्रता प्रदर्शित करनी चाहिए. हमें
नमस्ते बोलते वक्त हमारे चेहरे के उपर मुस्कान होनी चाहिए इससे सामने वाले वेक्ति पर अच्छा प्रभाव पड़ता है.
एक दूसरे को मिलने पर हमेशा मुस्कुराएं और स्पष्ट रूप से बोलें. यदि आप उस व्यक्ति का नाम नहीं जानते हैं, तो कहिए “ आपसे मिलकर अच्छा लगा ” या “ आपको फिर से देख कर अच्छा लगा.” यदि आप एक वयस्क का अभिवादन कर रहे हैं, तो विनम्रता से मुस्कुराएं और नमस्ते कहें.
कई लोग राम-राम, जय श्रीकृष्ण, जय गुरुदेव, हरिओम, जय गणेश, जय शिव, जय माता दी, सांईंराम या अन्य तरह से अभिवादन करते हैं. दफ्तरों में नमस्कार की जगह गुड मॉर्निंग, हलो, हाय का प्रचलन बढ़ गया है तो जाते वक्त नमस्ते की जगह टाटा, बाय-बाय, सी यू का प्रचलन बढ़ा है.
यही नमस्ते केरल में नमस्कारम बन जाता है तो कर्नाटक में यह नमस्कारा तथा आंध्र में नमस्कारमु बन जाता है. नेपाल के निवासी भी इसी अभिवादन, नमस्कार का प्रयोग करते हैं.
“राम राम” शब्द भारत के हिन्दी भाषी क्षेत्रोंमें नमस्ते के पश्चात सर्वाधिक प्रचलित अभिवादन है. अवध एवं मिथिला में सीता – राम तथा बिहार एवं झारखंड में जय सिया-राम कहा जाता है. हरियाणा में ” राम राम ” द्वारा ही अभिवादन किया जाता है.
इन सभी अभिवादनोंका पृष्ठभागीय ध्येय है विष्णु के 7वें अवतार, श्री राम का नाम स्मरण करना. श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम भी कहा जाता है. कदाचित इस अभिवादन द्वारा हम स्वयं को एवं एक दूसरे को राम के आचरण को आत्मसात करने के लिए प्रेरित करते हैं.
गुजरात में जय श्रीकृष्ण :
द्वारका – गुजरात के राजा श्रीकृष्ण है. गुजराती परिवारों एक दूसरे का अभिनंदन “जय श्री कृष्ण” द्वारा किया जाता हैं. भगवान श्री कृष्ण ने द्वारका को अपनी ” स्वर्ण नगरी ” बनायी थी. उन्होंने वहाँ से विश्व का संचालन किया था. गुजरात के निवासियों के हृदय पर वें आज भी राज करते हैं. इसीलिए द्वारका में यह अभिवादन और विशेष होकर जय द्वारकाधीश बन जाता है.
ब्रज भूमि में राधे राधे :
ब्रज में राधारानी राज करती हैं. वे यहाँ की रानी भी हैं और गोपिका भी. प्रभु श्रीकृष्ण तक पहुँचने के लिए भी आपको राधा का ही सहारा लेना पड़ता है. आपको उनके विषय में कुछ अधिक पढ़ने अथवा जानने की आवश्यकता नहीं है. ब्रज में जहां भी जाएंगे राधे राधे की गूंज सर्वत्र सुनायी देगी. ब्रज भूमि में राधे राधे का प्रयोग कई प्रकार से किया जाता है, जैसे अभिवादन, क्षमा करें, रास्ता दीजिए इत्यादि. ब्रज के मंदिरों में कभी कभी आप जय श्री राधे भी सुनेंगे.
पंजाब में सत् श्री अकाल :
पंजाबी भाषी एवं सिख समुदाय के लोगों में अधिकांश सत् श्री अकाल द्वारा अभिवादन किया जाता है. सत् का अर्थ है सत्य, श्री एक आदरणीय सम्बोधन है तथा अकाल का अर्थ है अनंत अथवा शाश्वत. अतः इस अभिवादन द्वारा आप शाश्वत सत्य का स्मरण करते हैं. आप यह स्वीकार कर रहे हैं कि सत्य शाश्वत है तथा हम सब के भीतर निवास करता है. सत् श्री अकाल गुरु गोबिन्द सिंह द्वारा दिया गया आव्हान है…. जो बोले सो निहाल, सत् श्री अकाल.
एक अन्य अभिवादन है, ” वाहे गुरु जी का खालसा, वाहे गुरु जी की फतह” यह स्मरण कराता है कि हम सब एक परम आत्मा से उत्पन्न हुए हैं जो अत्यन्त पवित्र तथा नश्वर है.
वणक्कम – तमिल नाडु :
तमिल भाषी लोग विश्व में जहां भी रहें, वे आपस में एक दूसरे को वणक्कम द्वारा ही प्रणाम करते हैं. अनिवार्य रूप से इसका अर्थ नमस्ते ही है. आपके भीतर वास करते दिव्य स्वरूप के समक्ष नतमस्तक होना तथा उसका आदर करना. इस शब्द कि व्युत्पत्ति हुई है एक अन्य तमिल शब्द, वणगु से जिसका अर्थ है नतमस्तक होना अथवा झुकना. कुछ शास्त्रों के अनुसार वणक्कम विशेषतः आपके भौंहों के मध्य स्थित तीसरी आँख को संबोधित करता है.
खम्मा घणी – राजस्थान :
खम्मा घणी, यह अभिवादन सर्वप्रथम राजस्थानी परिवेश में चित्रित कुछ हिन्दी चलचित्रोंमें है. खम्मा संस्कृत शब्द क्षमासे उत्पन्न प्रतीत होता है. घणी का अर्थ है बहुत. अतः खम्मा घणी, इस अभिवादन का अर्थ है, आपके आतिथ्य सत्कार में मेरे द्वारा किसी भी प्रकार की चूक अथवा अनादर हुआ हो तो उसके लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूँ.
दूसरा अनुमान 8वीं शताब्दी में 3 उत्तरोत्तर मेवाड़ी सम्राटों के नामों में खम्मन, इस शब्द का समन्वय था. ये तीनों सम्राट अरबी सेना के आक्रमणों को सफलता पूर्वक टालने में सफल हुए थे. इन सम्राटों के राज में उनकी प्रजा ने आगामी 1000 वर्षों तक सुरक्षित एवं सुखपूर्वत जीवन व्यतीत किया थ. अतः लोगों ने एक दूसरे का अभिवादन खम्मा घणी द्वारा करना आरंभ किया जिसका अर्थ है.. हमें इसी प्रकार के कई खम्मनों का वरदान प्राप्त हो.बड़ों को अभिवादन करते समय आदर प्रदान करने के लिए “सा” शब्द जोड़ा जाता है, जैसे खम्मा घणी सा.
लद्दाख का जूले :
आप हिमाचल में लाहौल स्पीति घाटी का भ्रमण कर रहे हैं अथवा लद्दाख में सड़क यात्रा पर निकले हैं तो आपको कोई ना कोई जूले शब्द से नमस्ते अवश्य करेगा. इस अभिवादन का प्रयोग अधिकतर हिमालय की घाटियों के बौद्ध बहुल क्षेत्रों में किया जाता है. इसका अर्थ कदाचित आदर होता है. राधे राधे के समान जूले का अर्थ भी लद्दाख में कई हो सकते हैं, जैसे अभिवादन, धन्यवाद, कृपया, क्षमा करें इत्यादि. लद्दाख के कुछ क्षेत्रों में ताशी देलेक का भी प्रयोग किया जाता है.
भारत के जैनियों का जय जिनेन्द्र :
जय जिनेन्द्र, इस अभिवादन का प्रयोग जैन धर्म के सभी अनुयायी एक दूसरे को संबोधित करने के लिए करते हैं. दैनिक जीवन में हमारा सामना इस शब्द से अधिक नहीं होता क्योंकि भारत में तथा भारत के बाहर भी जैन समुदाय के लोग अल्प संख्या में हैं. वे अधिकतर आपस में ही इस अभिवादन का प्रयोग करते हैं.
जय जिनेन्द्र का अर्थ है जिनेन्द्र अथवा तीर्थंकर की जीत. तीर्थंकर का अर्थ है ऐसी दिव्य आत्मा जिसने अपनी सभी इंद्रियों पर विजय पा ली हो तथा परम ज्ञान प्राप्त कर लिया हो. यह अभिवादन वास्तविक ज्ञान प्राप्त लोगों के समक्ष नतमस्तक होने के समान है.
आयप्पा अनुयायियों का स्वामी शरणं :
स्वामी शरणं अथवा स्वामी शरणं आयप्पा वास्तव में एक मंत्रोच्चारण है जिसका प्रयोग आयप्पा के अनुयायी एक दूसरे से मिलने पर अभिवादन के रूप में करते हैं. वे किसी भी वार्तालाप का आरंभ तथा अंत मंत्र के उच्चारण द्वारा करते हैं. केरल तथा अन्य दक्षिण भारतीय राज्यों में आयप्पा के कई अनुयायी हैं.
आदाब :
( मुस्लिम समुदाय का अभिवादन )
मुस्लिम समुदाय के लोग तथा उन क्षेत्रों के लोग जहां उर्दू भाषा का चलन हो, आदाब द्वारा एक दूसरे का अभिवादन करते हैं.
हिमाचल का ढाल करू :
यह हिमाचली क्षेत्रों के लोगों के अभिवादन का एक प्रकार है. यह हिमाचल के कुल्लू तथा मनाली क्षेत्र में अभिवादन के लिए प्रयोग किया जाता है. संभवतः इसका अर्थ भी नमस्ते के समान है.
नर्मदा के तट पर नर्मदे हर :
नर्मदा नदी के तीर जब आप चलेंगे, तब सबके मुख से आप केवल एक ही अभिवादन सुनेंगे, नर्मदे हर. इसका अर्थ है, नर्मदा देवी हमारे सभी दुख एवं कष्ट हर ले. हर हर गंगे ऐसा ही अभिवादन है जो आप ऋषिकेश, प्रयागराज तथा वाराणसी जैसे स्थानों में अवश्य सुनेंगे. किन्तु वहाँ इसका प्रयोग इतना आम नहीं है जितना कि नर्मदा के निकट नर्मदे हर का है.
बीकानेर में जय जय :
बीकानेर में लोग “जय जय” द्वारा अभिवादन करते है. बीकानेर के लोग इसी प्रकार एक दूसरे का अभिवादन करते हैं. यह अतियंत मधुर, राजसी तथा वीर रस से ओतप्रोत प्रतीत होता है. यह सम्पूर्ण भारत में छोटों द्वारा बड़ों के अभिवादन स्वरूप प्रयोग में लाया जाता है. अधिकांशतः इसके साथ चरण स्पर्श भी किए जाते हैं.
विभिन्न क्षेत्रों में इसके स्वरूप में भिन्नता आ जाती है किन्तु इसका अर्थ परिवर्तित नहीं होता. जैसे पंजाब में पैरी पौना अथवा मत्था टेकदा, हिन्दी भाषी क्षेत्रों में पाय लागूँ इत्यादि. इन सबका अर्थ एक ही है, मैं आपके चरण स्पर्श करती अथवा करता हूँ, आप मुझे आशीर्वाद देने की कृपया करें.
वाराणसी में जय भोले नाथ :
वाराणसी को शिव नगरी कहा जाता है. अतः अभिवादन में शिव का नाम लिया जाना स्वाभाविक है.
जय जगन्नाथ : पुरी तथा उड़ीसा के आसपास के क्षेत्रों में बोला जाता है.
हरी ॐ : चिन्मय मिशन के सदस्य तथा अनुयायी इस प्रकार का एक दूसरे को अभिवादन करते हैं. वे इसका प्रयोग वार्तालाप के आरंभ तथा अंत में, किसी को पुकारने में तथा जहां कहीं भी संभव हो, करते हैं.
जय श्री महँकाल : उज्जैन में बोलते है.
जय स्वामीनारायण : स्वामीनारायण के अनुयायी इस प्रकार नमस्कार कहते हैं.
हैलो :
हैलो भारतीय अभिवादन नहीं है. दुर्भाग्य से भारत में अभिवादन के रूप में इसका प्रयोग सर्वाधिक रूप से हो रहा है. खास करके शहरी क्षेत्रों में तथा दूरभाष का प्रयोग करते समय किया जाता है. यद्यपि हम सब इस शब्द का प्रयोग दिन में अनेक बार करते हैं. यह शब्द अभिवादन कदापि नहीं है, अपितु किसी का ध्यान खींचने के लिए इसका प्रयोग किया जाता था.
हैलो का संक्षिप्त इतिहास :
हैलो को संक्षिप्त कर हाय भी कहा जाता है. ” गुड मॉर्निंग” अर्थात “सुप्रभात” गुड मॉर्निंग, गुड आफटरनून, गुड इवनिंग तथा गुड नाइट एक दूसरे का अभिवादन करने का निष्पक्ष तथा धर्मनिरपेक्ष साधन है. गुड मॉर्निंग अब मॉर्निंग में ही सिमट गया है.
जय झूलेलाल :
जय झूलेलाल का प्रयोग सिन्धी समाज के लोग करते हैं. झूलेलाल को समुद्र देवता वरुण का अवतार माना जाता है.
जय माता दी :
देवी माँ के भक्तगण नमस्कार स्वरूप इसका प्रयोग करते हैं. यहाँ पर माता का अर्थ जगदंबा है. अर्थात माता जो जन्मदायिनी है, पालनकर्ता है तथा ब्रम्हांड में स्थित प्रत्येक चल-अचल तथा जीव-निर्जीव की नाशक भी है.
श्री लंका में आयुबोवन :
श्री लंका का आयुबोवन संस्कृत भाषा से उत्पन्न हुआ है. यह आयुष्मान भव, इस शब्द से संबंधित है. इसका अर्थ है, आप दीर्घायु हों या आपकी आयु लंबी हो.
थायलैंड का सवत्दी :
सवत्दी थायलैंड का देशव्यापी अभिवादन है. वहाँ भी इसे हाथ जोड़कर कहा जाता है. स्वस्ति से उत्पन्न इस शब्द का अर्थ शुभेच्छा.