नरवीर चिमाजी अप्पा का अश्वारूढ़ स्मारक | Part LVI

हर साल ता : 6 मार्च के दिन, नरवीर चिमाजी अप्पा के जन्मदिन को वसई तथा मिरा भाईंदर शहर परिसर में विजय दिवस के रूपमें मनाया जाता है. उत्तन चौक गांव धारावी स्थित नव निर्माण किया गया नरवीर श्री चिमाजी अप्पा स्मारक व पार्क का लोकार्पण होना अब भी बाकी है.

उत्तन चौक गांव स्थित सर्वे नंबर : 7. वाया डोंगरी – तारोड़ी भाईंदर (प) में नव निर्माण किया गया सेनापति नरवीर श्री चिमाजी अप्पा का ” भव्य अश्वरुद्ध स्मारक ” तथा स्थानीय शिव सेना आमदार सौ : गीता भरत जैन के आमदार निधि = 2020 – 21 से बनाया गया ओपन जिम का उद्घाटन समारोह आदरणीय श्री आदित्य जी उद्धव ठाकरे पर्यावरण और पर्यटक मंत्री के कर कमलो द्वारा किया जाने वाला था.

इस संदर्भ में मैंने स्वयं ता : 04 मार्च 2022 के दिन स्मारक स्थल का जायजा लिया तो पता चला कि उद्यान सुशोभित करण का कार्य तेजी से शुरु था. नरवीर चिमाजी अप्पा का अश्वरुद्ध स्मारक बनकर बिलकुल तैयार था तथा उद्धघाटन की राह देख रहा था.

उल्लेखनीय है कि छत्रपति शिवाजी महाराज के जन्म ( सन 1630 ) से औरंगजेब के मृत्यू ( सन 1707 ) तक के यह 77 साल के समय को इतिहास कार ” शिवकाल ” कहा जाता है.

वरिष्ठ समाज सेवक श्री रोहित एम. सुवर्णा जी जो गत कई सालो से जंजीरे धारावी किला का जीर्णोद्धार की मांग कर रहे है. और गत 5 साल से ” जंजीरे – धारावी किला जतन समिति के नव युवा कार्यकर्त्ता स्वयं श्रमदान करके साफ सफाई के काम में हर रविवार सुबह 9 बजे से शाम 4 बजे तक अपना अमूल्य योगदान दे रहे है.

धारावी किला जतन समिति के निःस्वार्थ कार्यकर्त्ता ओका कहना है कि हमें कोई भी हाल में बाकी बचे किले के अवशेषों को बचाना है ताकी हमारी नई पीढ़ी को हमारी एतिहासिक विरासत के बारेमें पता चले.

मिरा भाईंदर नगर क्षेत्र का अपना एतिहासिक महत्त्व है. इसका प्रमाण शिवकालीन घोड़बंदर का किला और धारावी चौक किला पुख्ता प्रमाण है.वीर छत्रपति शिवाजी महाराज के पूजनीय पदचिन्ह घोडबंदर किले की भूमि पर पड़े थे. उनसे पहले शिवाजी महाराज के गुरु समर्थ रामदास स्वामी जी भी देशाटन करते समय भाईंदर पधारे थे.

धारावी किला चौका स्थित स्थापित की गई नरवीर चिमाजी अप्पा जी की अश्वरुद्ध प्रतिमा का आप निरिक्षण करोंगे तो आपको पता चलेगा कि घोड़े का आगेका एक पैर उपर उठा है. ये घोड़ा हमें आखिर क्या संकेत देता है ?

एक पैर उठा हुआ घोड़ा :

” यदि किसी भी वीर पुरुष योद्धा के घोड़े का एक पैर उठा हुआ होता है तो वह यह संदेश देता है कि युद्ध में योद्धा बहुत जख्मी हो गया था और इलाज के दौरान उसकी मृत्यु हो गई या फिर युद्ध में हुए जख्म की वजह से उसकी मृत्यु का कारण हो सकता है.”

इतिहास कारो का कहना था कि सन 1720 में, मराठों ने पुर्तगालियों से कल्याण पर कब्जा कर लिया,और सन 1730 दशक के मध्य भाग तक ठाणे और साल्शेत द्वीप के किलों को एक के बाद एक करके ले लिया. इनमें अर्नाला, पारसिक, त्रंगीपारा, अर्नाला, मनोर और बेलापुर के किले और प्राचीर शामिल थे.

पुर्तगालियों ने रेवदंडा, करनाला , बांद्रा, वर्सोवा, माहिम, केल्वे , दहानु , संजन . (साओ जेन्स), अशेरीगढ़ (असेरीम), तारापुर, और वसई पर विजय प्राप्त कर लिया.

उस समय पुर्तगाल शासन ने वसई के आसपास के भागोंको बुरुज व किले बनाकर संरक्षित किये थे.तब नरवीर श्री चिमाजी अप्पा ने पालघर के उत्तरीय छोर से वजेश्वरी की ओर से कल्याण से वसई की खाड़ी से पुर्तगाल के चौकी और किले को हस्तगत करना शुरु कर दिया था.

मराठा ओने अंतिम चरण में भाईंदर की ओर से हल्ला बोल की एक योजना कार्यान्वित की. इसके लिए वसई किला जितने के लिए मराठा ओने भाईंदर के पास धारावी किला बनाने को आवश्यक समजा. और ता : 12 एप्रिल 1737 के दिन मराठा ओने धारावी के उपर हल्ला किया और धारावी को ताबेमे लेकर किला बनाना शुरु किया.

किला निर्माण के लिए कुल 2200 मजदूर कामपर रखे. उनको पांच रुपये रोज मजदूरी दी जाती थी. किले का काम आधा होनेके बाद खतरे को देखते हुए पुर्तगाल ने हल्ला करके धारावी की जगह अपने ताबे में ली, और किले का बांधकाम पुरा किया. मगर बाद में हमारे मराठा ओने फिर से आक्रमण किया और जीत हासिल कर के धारावी किला हस्तगत किया.

अर्थात ता : 6 मार्च 1739 के दिन धारावी किला पुर्तगाल से वापिस जीत लिया गया इसीलिए यहाके लोग ता : 6 मार्च के दिन को विजय दिन के रूपमें मनाते है.

मराठा ओने वसई किले पर हल्ला किया और ता : 22 मार्च 1739 के दिन वसई किला जितनेमे सफलता हासिल की.

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