नल दमयंती की कथा | Nal Damyanti ki Katha

nal d

दमयंती स्वरुपवान सुंदरी थी. गोरी गोरी पान फुला सारखी छान ! उसकी सुंदरता पर देवता लोग भी फ़िदा थे. तभी तो उसके स्वयंवर मे रुप बदलकर देवता लोग भी पधारे थे. वो रूपकी रानी थी. परियोंकी मल्लिका थी. स्वर्ग की अपसरा का नूर उसके आगे फीका था. 

        नल और दमयन्ती की कथा का उल्लेख भारत के महा काव्य, महाभारत मे दीया गया है. पांडवो को जुए मे सब कुछ हार ने के बाद पत्नी द्रोपदी के साथ वनवास जाना पड़ा. तब धर्मराज युधिष्ठिर के आग्रह पर महर्षि बृहदश्व ने नल दमयंती की कहानी सुनाई थी. 

       श्री वीरसेन का पुत्र नल निषाद देश का राजा था. अति सुंदर , वीर, शस्त्र विद्या मे पारंगत, बड़ा ही सत्य वादी तथा ब्राह्मण भक्त था. दमयंती पूर्वी महाराष्ट्र विदर्भ नरेश भीष्मक की पुत्री थी. उसके सौंदर्य की प्रशंसा सुनकर नल ने एक हंस के द्वारा प्रेम का संदेश दमयंती तक पहुंचाया. दोनों के बिच प्यार के अंकुर फूटे. 

       दमयंती के तीन भाई थे, दम , दान्त, और दमन. दमयंती अति सुंदर, देवता और यक्षों मे भी ऐसी सुंदर कन्या कही नहीं थी. दमयंती स्त्रियों मे रत्न थी तो नल पुरुषो मे भूषण था. 

          दमयंती विवाह योग्य हो गयी अतः दमयंती के पिता ने अपनी पुत्री दमयंती का स्वयंवर करने का विचार किया. सब राजा ओको निमंत्रण भेजा गया.देवर्षि नारद और पर्वत के द्वारा देवताओं को भी दमयंती के स्वयंवर का समाचार पहुंच गया. पृथ्वी के अनेक राजा सहित इन्द्र, वरुण, अग्नि और यम देवता भी नल का रुप धारण करके स्वयंवर मे सामिल हुये. 

           कई नल को देखकर भी दमयंती विचलित नहीं हुई. उसने अपने गुरु को याद किया और उसके आदेश का पालन किया. देवताओं का पैर धरती के ऊपर रहता है यानि किसी भी रूप में जमीन से उनके पांवों का स्पर्श नहीं होता है. देवताओं को पसीना नहीं आता तथा उनकी परछाई नहीं बनती यानि उनका शरीर पारदर्शी होता है. इसके अतिरिक्त उनकी पलकें नहीं झपकती हैं. उपरिवर्णित चारो विशेषताओं के अलावा मनुष्य, देवता में केवल शक्ति की असमानता है. 

        इसी कारण वश दमयंती नल को पहचान गयी. और वर माला उसके गले मे डाल दी.नव-दम्पत्ति को देवताओं का आशीर्वाद मिला और दमयंती निषाद नरेश राजा श्री नल की महारानी बन गई. 

       समय बीतते गया. दमयंती 5 के गर्भ से एक पुत्र और एक कन्या का जन्म हुआ.दोनों बच्चे माता-पिता के अनुरूप ही सुन्दर रूप और गुणसे सम्पन्न थे.समय बीतता गया. नल मे एक दोष था. जुआ खेलने का. नल के एक भाई का नाम पुष्कर था. वह नल से अलग रहता था. उसने उन्हें जुए के लिए आमन्त्रित किया. खेल आरम्भ हुआ. दुर्भाग्य से नल हारने लगे, सोना, चाँदी, रथ, राजपाट सब कुछ हाथ से निकल गया. महारानी दमयंती ने प्रतिकूल समय जानकर अपने दोनों बच्चों को विदर्भ देश की राजधानी कुण्डिनपुर भेज दिया.नल ने जुए मे सर्वस्व खो दीया. 

    नर ने एक वस्त्र और दमयंती ने एक साड़ी पहनकर नर दमयंती नगर के बाहर निकल गये. जंगल मे प्रयाण किया. 

       एक दिन राजा नल ने सोने के पंख वाले कुछ पक्षी को देखे. राजा नल ने सोचा, यदि इन्हें पकड़ लिया जाय तो इनको बेचकर निर्वाह करने के लिए कुछ धन कमाया जा सकता है. ऐसा विचारकर उन्होंने अपने पहनने का वस्त्र खोलकर पक्षियों पर फेंका. पक्षी वह वस्त्र लेकर उड़ गये.अब राजा नल के पास तन ढकने के लिए भी कोई वस्त्र नही रह गया था. 

  नल अतियंत दुःखी था. एक समय का राजा आज जंगल मे भटक रहा है. एक दिन दोनों जंगल में एक वृक्ष के नीचे एक ही वस्त्र से तन छिपाये सो रहे थे.तब दमयंती को थकावट के कारण नींद आ गयी.राजा नल ने सोचा, दमयन्ती को मेरे कारण बड़ा दुःख सहन करना पड़ रहा है.यदि मैं इसे इसी अवस्था में यहीं छोड़कर चला जाता हुँ तो यह किसी तरह अपने पिताके पास पहुँच जायगी.

       यह विचारकर उन्होंने तलवार से उसकी आधी साड़ी को काट लिया और उसी से अपना तन ढककर तथा दमयन्ती को उसी अवस्था में छोड़ कर वे चल दिये. जब दमयन्ती की नींद टूटी तो बेचारी अपने को अकेला पाकर करुण विलाप करने लगी. भूख और प्यास से व्याकुल होकर रोने लगी. मगर वहां उसकी सुनने वाला कोई नहीं था. अचानक एक अजगर आया, वो निसहाय बन कर जमीन पर लेट गयी .  

        अजगर उसे निगलने लगा. दमयंती की चीख सुनकर एक व्याध ने उसे अजगर का ग्रास होने से बचा लिया किंतु व्याध स्वभाव से दुष्ट था. उसने दमयंती के सौन्दर्य पर मुग्ध होकर उसे अपनी काम-पिपासा का शिकार बनाना चाहा. दमयन्ती उसे शाप देते हुए बोली यदि मैंने अपने पति राजा नल को छोड़कर किसी अन्य पुरुष का कभी चिन्तन न किया हो तो इस पापी व्याध के जीवन का अभी अन्त हो जाय.दमयन्ती के श्राप से व्याध की मृत्यु हो गई. 

         जंगल से भटकते हुए दमयंती एक दिन चेदि नरेश सुबाहु के पास और उसके बाद अपने पिता के पास पहुँच गयी. 

   कुछ दिन बाद दमयंती के पिताने नल को ढूंढने फिरसे दमयंती का विवाह करने के लिये स्वयंवर का नाटक किया. नल को खूब दुःख हुआ. वो यहां तक आ पंहुचा. सतीत्व के प्रभाव महाराज नल के दुःखो का भी अंत हुआ. फिरसे भाई पुष्कर को जुए का निमंत्रण दीया मगर इस बार नल हर बाजी जीत गया. और राजा नल को उनका राज्य वापस मिल गया. नल दमयंती का फिरसे मिलन हुआ.

——====शिवसर्जन ====——–

About पत्रकार : सदाशिव माछी -"शिव सर्जन"

View all posts by पत्रकार : सदाशिव माछी -"शिव सर्जन" →