” तक्षक ” सांप के बारेमें पौराणिक कथाओं में उल्लेख है कि तक्षक नागों में से एक नाग है, जो कश्यप का पुत्र था और कद्रु के गर्भ से उत्पन्न हुआ था श्रृंगी ऋषि का शाप पूरा करने के लिये राजा परीक्षित को इसी ने काटा था. इसी कारण राजा जनमेजय इससे बहुत बिगड़े और उन्होंने संसार भर के नागों का नाश करने के लिये नागयज्ञ आरंभ किया गया था.
तक्षक सबसे भयंकर नाग है. उसे भगवान शिव जी के गले में रहने वाले नागराज वासुकी का छोटा भाई माना जाता है. तक्षक ने ही राजा परीक्षित को डसा था. उसके बाद कलयुग का धरती पर आधिपत्य हो गया. बाद में परीक्षित के बेटे जनमेजय ने फिर तक्षक समेत सभी विषैले सांपों को जलाकर भस्म कर देने वाले यज्ञ किया था.
तक्षक नागराज वासुकी से छोटा और अन्य सर्पों में सबसे भयंकर सर्प है.
तक्षक को देवराज इंद्र का आश्रय प्राप्त था, इसलिए कोई उसे मार नहीं पाता था. तक्षक सांप का जिक्र महाभारत में मिलता है. यह प्रजापति कश्यप की पत्नी कद्रू से उत्पन्न हुआ था, जिन्होंने एक हजार सर्पों को जन्म दिया था.
यह पाताल लोक के आठ प्रमुख नागों में से एक है. इसे सर्पराज भी कहा जाता है. द्वापर युग में महाभारत-काल में जब पांडवों के पौत्र परीक्षित जी राज कर रहे थे तो तक्षक ने ही उनको डसा था. जिससे उनकी मौत हो गई थी.
राजा परीक्षित की मौत से गुस्सा हुए उनके बेटे जनमेजय ने फिर तक्षक समेत सभी विषैले सांपों को जलाकर भस्म कर देने वाले यज्ञ का आयोजन किया था.
कथा इस प्रकार है :
कलयुग ने जब धरती पर पैर पसारे तो राजा परीक्षित ने उसे ललकारा. कलयुग ने तब छलपूर्वक राजा के शीश-मुकुट में प्रवेश कर लिया, इससे राजा की बुद्धि भ्रष्ट हो गई थी. एक रोज राजा जंगल में शिकार खेलने गए तो वहां उन्हें मौन अवस्था में बैठे शमीक नाम के ऋषि दिखाई दिए थे.
परीक्षित उनसे बात करना चाहते थे अतः जवाब न मिलने पर वें क्रोधित हो गए. उन्होंने एक मरा हुआ सांप ऋषि के गले में डाल दिया. उसके बाद वहां से चले गए. यह बात जब ऋषिके पुत्र श्रृंगी को पता चली तो उन्होंने श्राप दिया कि आज से सात दिन बाद विषैला तक्षक नाग परीक्षित को डस लेगा, और कोई उन्हें बचा नहीं पाएगा.
परीक्षित की तक्षक के द्वारा डसे जाने पर मौत हो गई. परीक्षित के बेटे जनमेजय ने सिंहासन संभाला. ऋषियों के बताए अनुसार, जनमेजय ने अपने पिता की मौत का बदला लेनेका फैसला किया. हालांकि, तक्षक को देवराज इंद्र का आश्रय प्राप्त था. इसलिए जनमेजय उसे तब मार नहीं पाए.
फिर ऋषियों ने जनमेजय के लिए एक विशेष यज्ञ शुरू किया. जनमेजय ने कहा , संसार भर के सांप इसमें जल मरें और यदि इंद्र भी तक्षक के साथ हों तो वो भी यहां खिंचे चले आएं और भस्म हो जाएं.
जनमेजय की आज्ञा से ऋत्विजों के मंत्र पढ़ने पर इंद्र भी खिंचने लगे, तब इंद्र ने डरकर तक्षक को छोड़ दिया.
जब तक्षक अग्निकुण्ड के समीप पहुँचा, तब आस्तीक ऋषि की प्रार्थना पर यज्ञ बंद हुआ और तक्षक के प्राण बचे. यह नाग ज्येष्ठ मास के अन्य गणों के साथ सूर्य रथ पर अधिष्ठित रहता है. ये थी तक्षक की कहानी.
श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी को नागपंचमी का त्योहार मनाया जाता हैं. माना जाता है कि , तक्षक का राज तक्षशिला में था. राजा जनमेजय द्वारा किया गया नाग यज्ञ की वजह से आज भी अवन्तिकापुरी में नहीं काटते है.
यदि किसी को काट लिया तो वो व्यक्ति यहां बने सरोवर में स्नान करता है तो उसे जहर नहीं चढ़ता है. यही नहीं यदि कोई विषैला सर्प रास्तेमें आते जाते किसी व्यक्ति को मिल जाता है तो वो सिर्फ राजा जनमेजय का नाम ले लेता है तो वो विषैला सर्प रास्ता बदल देता है. इसीलिए लोग यहां साल में एक बार आकर सरोवर में स्नान कर लेते है.
यहां का सरोवर पुरे 84 बीघा में फैला हुआ है. पूर्व काल में ये यज्ञ भूमि थी, जिस में राजा जनमेजय ने सर्प विनाश के लिए एक विशाल यज्ञ कराया था. यहां कार्तिक पूर्णिमा के दिन भव्य मेला लगता है.
आप लोगोंकी जानकारी के लिए हम बता रहे है कि सांपों को घर से दूर भगाने के लिए सर्पगंधा नामक वनस्पति का प्रयोग किया जाता है. यह पौधा सांपों का दुश्मन माना जाता है और इसके आसपास भी सांप नहीं आते. अगर घर के आसपास इस पौधे को लगाया जाए तो सांप कभी नहीं आएंगे और सर्पदंश का भय भी नहीं रहेगा. इस पौधे न केवल सांप बल्कि अन्य विषैले जीव-जंतु भी प्रवेश नहीं करते.
सर्पगंधा केवल सांपों को भगाने के लिए ही नहीं बल्कि यह हाई ब्लड प्रेशर, अनिद्रा, पागलपनव व उन्माद दैसे रोगों की अचूक दवा है पहले इस पागलों की दवा भी कहा जाता था, क्योंकि इसके प्रयोग से पागलपन ठीक किया जा सकता है. साथ ही यह कफ और वात को भी शांत करता है. इसके प्रयोग से पित्त बढ़ता है और भोजन में रुचि पैदा होती है. सर्पगंधा के पौधे का वर्णन चरक ने संस्कृत नाम सर्पगंधा के तहत सर्पदंश तथा कीटदंश के उपचार हेतु लाभप्रद विषनाशक के रूप में किया है.