इंसान चाँद की धरती पर उतरा, अब मंगल ग्रह के रहस्य को ढूंढने निकला है. मगर पृथ्वी पर ऐसी कई रहस्य भरी बातें है, जो आज तक नहीं जान पा रहा . ऐसी ही एक रहस्यमय बात है जहां भगवान श्री कृष्ण आज भी रास लीला करने रोज आते है. जिसको समज पाना आधुनिक विज्ञान के बस की बात नहीं है.
मेरा मतलब वृंदावन मे स्थित निधिवन है. जहां आधी रात को भगवान श्री कृष्ण, राधारानी और गोपियां रास-लीला रचाते हैं. कहां जाता है की इस रास लीला को जो भी मनुष्य देखता है वो अपने नेत्रों की ज्योति खो बैठता है, या तो फिर पागल हो जाता है.
निधिवन मे तुलसी के असंख्य पेड़ लगे हुए है और यहां तुलसी का हर पौधा जोड़े में है. लोगो की मान्यता के अनुसार जब श्रीकृष्ण और राधारानी रासलीला करते हैं , तो ये तुलसी के पौधे गोपियां बन जाती हैं और सुबह होने पर तुलसी के पौधे में परिवर्तित हो जाती हैं.
वहाके लोगोंका कहना है कि शाम के बाद कोई इस वन की तरफ नहीं देखता. जिन लोगों ने जानेका का प्रयास किया , वे अंधे हो जाते है या पागल हो जाते है. शाम को सात बजे मंदिर की आरती के बाद मंदिर के दरवाजे बंद कर दिये जाते है. इसके बाद यहां कोई नहीं रहता है. ताजुब की बात तो ये है कि सब पशु-पक्षी भी शाम होते ही निधि वन को छोड़कर चले जाते हैं.
मंदिर के महंत का कहना है कि हर रात भगवान श्री कृष्ण के कक्ष में उनका बिस्तर सजाया जाता है, दातून और पानी का लोटा रखा जाता हैं. वृंदावन को धार्मिक नगरी कहां जाता है मान्यता के मुताबिक निधिवन में भगवान श्री कृष्ण एवं राधारानी आज भी अर्ध रात्रि के बाद रास रचाते हैं. रास के बाद निधिवन परिसर में स्थापित रंग महल में शयन करते हैं. रंग महल में आज भी प्रसाद मे माखन, मिश्री को प्रतिदिन रखा जाता है.
प्रभु के रात्रि विश्राम के लिए जो पलंग लगाया जाता है. सुबह बिस्तरों के देखने से पता चलता है कि यहां भगवान रात्रि विश्राम करने आया था, तथा प्रसाद भी ग्रहण किया था.
करीब दो – ढ़ाई एकड़ क्षेत्रफल में फैले निधिवन के वृक्षों की विशिष्टता यह है कि इनमें से किसी भी वृक्ष के तने सीधे नहीं होते तथा इन वृक्षों की सभी डालियां नीचे की ओर झुककर आपस में गुंथी हुई प्रतीत होती हैं. जो की प्यार का प्रतिक है.
निधिवन के आजुबाजु में ही संगीत सम्राट एवं धुपद के जनक श्री स्वामी हरिदास जी की जीवित समाधि है. रंग महल, बांके बिहारी जी का प्राकट्य स्थल, राधारानी बंशी चोर आदि दर्शनीय स्थल है.
इस संबंध मे कुछ जानकारों का कहना है कि यहाके पुजारियों ने अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए लोगोंमे भ्रम फैलाया है. उन लोगोंके अनुसार इतनी छोटी सी जगह मे 1600 पौधें होना मुश्किल है तो 16000 पौधें कैसे समा सकते है. पशु पक्षियों के निवास के बारेंमे उन लोगोंका कहना है कि कई पौधें की शाखाएं इतनी मोटी एवं मजबूत भी नहीं है कि दिन में दिखाई देने वाले बंदर रात्रि में इन पर विश्राम कर सकें इसी कारण वह रात्रि को यहाँ से चले जाते हैं.
निधिवन के भीतर करीब 15 से 20 समाधियां बनी हैं. इसमे स्वामी हरिदास जी और आचार्यों की समाधियां हैं. उसपर उनके नाम और मृत्यु की तारीख के शिलालेख बनाये गये है. यह उल्लेख निधिवन में लगे यू पी पर्यटन विभाग के शिलालेख पर भी अंकित है.
कई लोगो का कहना है कि गाईड यह भम्र फैलाते है कि जो रासलीला देख लेता है, उनकी मृत्यु हो जाती है.
यहां पर जो वृक्ष आपस में लपेटे हैं, इसी प्रकार के वृक्ष वृन्दावन में सेवाकुंज एवं यमुना के तटीय स्थानों पर भी पाये जाते है. निधिवन वृन्दावन नगर के उत्तरी भाग में स्थित है , जहां से यमुना नदी लगभग 300 मीटर दूरी पर बहती है.
यहाँ विशाल तुलसी के वृक्ष है, बिना जल स्रोत एवं जड़ के यह बृक्ष मानों ऐक दूसरे का हाथ पकड़ नृत्य कर रहे हो कहा जाता है कि कृ्ष्ण की सखियां ही तुलसी बृक्ष है इतना विशाल तुलसी वन अन्यत्र कहीं भी नहीं है.
क्या प्रभु श्री कृष्ण सच मे रास रचाने आते है ? आजतक निधिवन की चमत्कारिक बातोंको जानने और समजने के लिए कई न्यूज़ चैनलोने प्रयत्न किया है. मगर उनको आस्था की जीत होती नजर आयी है.
आज भी श्री कृष्ण अपने शयनखंड मे आते है और रात बिताते है. इस बात की सच या झूठ की पड़ताल करने के लिए एक न्यूज़ चैनल मे मंदिर का दरवाजा बंद होनेसे पहले , सब रखी हुई खानपान की चीजो का निरिक्षण किया. पुजारी ने सात ताले लगाये.
उसके बाद वो पत्रकार ने आठवा ताला अपना खुदका लगाया. चावी अपने पास रखी, मगर सुबह उठते उन्होने जब दरबाजा को खोला गया तो चमत्कार हुआ. पान को आधा खाकर छोड़ा था. शयन खंड के बिस्तर के चद्दर अस्तव्यस्त पड़े थे, प्रसाद ग्रहण किया था. इससे यह प्रतित होता था कि कोई तो यहां आया था
वाह रे श्री कृष्ण प्रभु , तेरी लीला अपरंपार है.
” निधिवन मे राधिका नाचे रे, गिरधर की मुरलिया बाजे रे.”
——=== शिवसर्जन ===——