भारतीय फिल्मों मे पुरानी फ़िल्म की बात करें तो एक ” शोले ” और दूसरी, ” मुगल ए आज़म ” फ़िल्म ये दोनों फिल्मों ने प्रेक्षकों को पागल बना दीया था. शोले फ़िल्म डाकू और पुलिस के संघर्ष की मारधाड़ और प्रेम कहानी थी तो मुगल ए आज़म बादशाह घराने की युद्ध और प्रेम कहानी थी.
आज मुजे मुगल ए आज़म फ़िल्म की बात करनी है.
” मुगल ए आज़म ” फ़िल्म का निर्माण सन 1950 मे प्रारंभ हुआ था. इस फ़िल्म को बनाने मे दस साल लगे थे, और ता : 5 अगस्त 1960 के दिन मुंबई मे रिलीज हुई थी. इसके संगीतकार थे शास्त्रीय संगीत के महारथी संगीतकार श्री नौशाद साहब. इसके निर्देशक थे.” करीमउद्दीन आसिफ़,” जिसे लोग , के. आसिफ के नामसे जानते थे.
इस फ़िल्म के निर्माता थे, स्टर्लिंग इन्वेस्टमेंट कॉर्पोरेशन.
लेखक थे श्री अमन साहब. इस हिंदी हिट फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे, दिलीप कुमार ( शहजादा सलीम ) मधुबाला ( अनारकली ) तथा पृथ्वीराज कपूर ( बादशाह जलालुद्दीन अकबर ) और दुर्गा खोटे ( महारानी जोधा बाई ).
मुगल ए आजम फ़िल्म को सन 1960 मे फिल्मफेयर का ” सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म पुरस्कार ” मिला था. इसी साल फ़िल्म फ़ेयर ” सर्वश्रेष्ठ निर्देशक पुरस्कार ” के लिये मुग़ल ए आज़म फ़िल्म को नामांकित किया गया था. हिंदी में सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म के लिए राष्ट्रपति का” रजत पदक ” पुरस्कार मुगल ए आज़म फ़िल्म को मिला था. इस फ़िल्म की टिकट पाने के लिये लोगोंने तीन दिन तक, रात और दिन बॉक्स ऑफिस पर लाइन लगाकर टिकट का इन्तेजार किया था.
इस फ़िल्म का, ” प्यार किया तो डरना क्या… गाना ” हर जवां दिलो की धड़कन बना था. इसके अलावा, दूसरा गाना मोहे पनघट पे नंदलाल छेड़ी गयो रे…. मेरी बांकी क़लईया मरोड़ गयो रे….. और मुहबत की झूठी, कहानी पे रोये गाना ने कई रिकॉर्ड तोड़े थे. आज भी ये दो गाने सुननेमे इतनाही आनंद आता है. और इसका एक गाना…..
ये दिल की लगी कम क्या होगी,
ये इश्क़ भला कम क्या होगा ,
जब रात है ऐसी मतवाली – २,
फिर सुबह का आलम क्या होगा – २.
ये प्यार करने वालों के होठो पर तब गुनगुनाता रहता था.
” मुगले ए आज़म ” फ़िल्म डेढ़ करोड़ की लागत से बनी थी, और बॉक्स ऑफिस पर इसने ग्यारह करोड़ का रिकॉर्ड ब्रेक कलेक्शन किया था. उस जमाने मे दस लाख मे हिंदी फ़िल्म बनती थी, मगर मुगल ए आज़म का एक ही गाना प्यार किया तो डरना क्या… गाने के लिये तब करीब 10 लाख रुपये का खर्चा किया गया था.
इस गाना ” शीश महल ” मे फिल्माया जाना था. उस जमाने मे हमारे देश मे अच्छे गुणवत्ता वाले कांच नहीं मिलते थे अतः गाने मे वास्तविकता संपादन करने के लिये बेल्जियम से कांच मंगाये गये थे.” शीश महल ” का सेट बनने में पूरे दो साल लग गए थे. के. आसिफ़ को इसकी प्रेरणा जयपुर के आमेर के क़िले में बने शीशमहल से मिली थी.
करीमउद्दीन आसिफ़, अभिनेता नज़ीर के भतीजे थे. फ़िल्म मे आनेसे पहले नज़ीर साहब ने उनके लिए एक दर्ज़ी की दुकान खुलवा दी थी. थोड़े दिनों में ही वो दुकान बंद कर दी अतः नज़ीर ने तब उन्हें ज़बरदस्ती फ़िल्म निर्माण की और लाकर खड़ा किया था. के. आसिफ़ ने अपने जीवन में सिर्फ़ दो फ़िल्मों का निर्देशन किया, एक सन 1944 में आई फ़िल्म ” फूल ” और फिर दूसरी ” ‘मुग़ल-ए-आज़म.” थी.
मगर मुगल -ए – आज़म ने उन्हें प्रगति के उच्चतम पद पर बिराजमान कर दीया. और उनका नाम भारतीय फ़िल्म के इतिहास स्वर्णाक्षरों से अंकित हो गया. हाल प्रकाशित हुई किताब , ” ये उन दिनों की बात है “. के लेखक श्री यासिर अब्बासी बताते हैं, ” मुग़ल-ए-आज़म ” फ़िल्म मैने कम से कम 100 बार देखी है. लेकिन आज भी जब , वो टीवी पर आती है, तो मैं चैनल बादली नहीं कर पाता हूँ..
सिर्फ़ दो फ़िल्म करने के बावजूद के. आसिफ़ को चोटी के निर्देशकों की क़तार में रख देना उसकी प्रतिभा का ही कारण है. इस फ़िल्म को दर्शकों के बीच लोकप्रिय बनाने में बहुत बड़ी भूमिका उसके डॉयलॉग ने निभाई थी.
यासिर अब्बासी बताते हैं कि अनारकली को ज़िंदा चुनवाए जाने से पहले का दृश्य था, जिसमें अकबर उनसे उनकी आख़िरी इच्छा पूछते हैं और वो कहती हैं कि वो एक दिन के लिए भारत की मलका-ए-आज़म बनना चाहती है.
जो प्रेक्षकों ने पसंद किया था.
इंट्रेस्टिंग बात ये है कि इस गाने की शूटिंग देखने कई बड़े लोग सेट पर पहुंचते थे. चीन के प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई, मशहूर शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ और बाद में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो ने मुग़ल-ए-आज़म की शूटिंग देखी थी.
यासिर अब्बासी बताते हैं, कि उस ज़माने में भुट्टो मुंबई में ही रहा करते थे. इस गाने की शूटिंग जितने दिन चली, वो रोज़ आए शूटिंग देखने. भुट्टो और आसिफ़ में गहरी दोस्ती थी. वो जब भी सेट पर होते थे, आसिफ़ साहब और सेट पर मौजूद लोगों के साथ खाना खाते थे.
उस समय किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि मुग़ल ए आज़म के सेट पर मौजूद रहने वाला ये शख़्स आगे एक दिन पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनेगा.
ईद के समय की बात , मुग़ल-ए-आज़म के फ़ाइनांसर श्री शाहपूरजी मिस्त्री आसिफ़ के घर पर ईदी लेकर गये थे. वो एक चाँदी की ट्रे पर कुछ सोने के सिक्के और एक लाख रुपये ले कर गए थे.
आसिफ़ ने पैसे उठाए और मिस्त्री को वापस करते हुए कहा, इन पैसों का इस्तेमाल, मेरे लिए बेल्जियम से शीशे मंगवाने के लिए करिए. ऐसे थे के. आसिफ.
आखिर मे ये सदाबहार गाना गुनगुनाने मे आपको आनंद अवश्य आएगा.
इंसान किसी से दुनिया में,
एक बार मोहब्बत करता है
इस दर्द को लेकर जीता है,
इस दर्द को लेकर मरता है.
प्यार किया तो डरना क्या,
जब प्यार किया तो डरना क्या,
प्यार किया कोई चोरी नहीं की,
छुप छुप आहें भरना क्या,
जब प्यार किया तो डरना क्या,
प्यार किया तो डरना क्या.
आज कहेंगे दिल का फ़साना,
जान भी ले ले चाहे ज़माना,
मौत वही जो दुनिया देखे,
घुट घुट कर यूँ मरना क्या,
जब प्यार किया तो डरना क्या,
प्यार किया तो डरना क्या.
उनकी तमन्ना दिल में रहेगी,
शम्मा इसी महफ़िल में रहेगी,
इश्क में जीना इश्क में मरना,
और हमें अब करना क्या,
जब प्यार किया तो…
छुप ना सकेगा इश्क हमारा,
चारों तरफ़ हैं उनका नज़ारा,
परदा नहीं जब कोई खुदा से,
बन्दों से परदा करना क्या
जब प्यार किया तो…
आप फ़िल्म भले ना देखो मगर ये गाना यू ट्यूब पर जरूर देखे… शकील साहब को प्यार करने वाले मस्तानों की तरफ से सलाम.
प्यार मे दो दीवाने दिलोंकी दास्तान मतलब मुगल ए आज़म. इस फ़िल्म के डायलॉग ने प्रेक्षकों के दिलो दिमाग मे काफ़ी असर किया था.
” मुग़ल-ए-आज़म ” फ़िल्म का सबसे मशहूर गाना था, ” प्यार किया तो डरना क्या…”, इसको लिखने को और संगीत में ढालने में नौशाद और गीतकार शकील बदायूंनी को पूरी रात तक मसक्कत करनी पड़ी थी.
यासिर अब्बासी बताते हैं, कि जब के.आसिफ़ ने नौशाद को उस गाने की परिस्थिति बताई तो उस ज़माने में एक और फ़िल्म बन रही थी अनारकली, जो इसी तरह की कहानी पर आधारित थी. नौशाद ने उनसे कहा कि दोनों फ़िल्मों में बहुत समानता है. उनका गाना रिकॉर्ड हो चुका है.
जिसे मैंने सुना भी है. अगर हम भी उसी तरह का गाना चुनेगें तो ये फिर रिपीटेशन लगेगा. आप इस सिचयुएशन को बदल क्यों नहीं देते. आसिफ़ साहब ने कहा कि हम ऐसा नहीं करेंगे. मैंने ये चुनौती स्वीकार कर ली है. अब आप की बारी है इस पर खरा उतरने की. जब इसे संगीत में ढालने की बारी आई तो सबसे मुश्किल काम था इसे लिखना.
शाम को छह बजे जब सूरज ढ़ल रहा था नौशाद और शकील बदायूंनी ने अपने आप को एक कमरे में बंद कर लिया. शकील साहब ने क़रीब एक दर्जन मुखड़े लिखे, जिसमें कभी उन्होंने गीत का सहारा लिया तो कभी ग़ज़ल का. लेकिन बात बनी नहीं. कुछ देर में नौशाद का पूरा कमरा काग़ज़ के टुकड़ो से भर गया.
दोनों ने पूरी रात न कुछ खाया और न ही पिया. काफ़ी देर बाद नौशाद को एक पूर्बी गीत का मुखड़ा याद आया जो उन्होंने अपने बचपन में सुना था, ” प्रेम किया का चोरी करी.” मैंने शकील साहब को ये सुनाया. उन्हें ये पसंद आया. मैंने हारमोनियम पर इसकी धुन बनाई और शकील साहब ने उसी वक़्त लिखा……
प्यार किया तो डरना क्या.,
प्यार किया कोई चोरी नहीं की…
जब वे सुबह ये गाना कंपोज़ कर के बाहर निकले तो उनके सिर पर सूरज चमक रहा था. अब आप समज सकते है कि पुराने गानों की लोकप्रियता का राज़ क्या है ?
मुगल-ए-आज़म एक बड़े बजट की फ़िल्म थी, उसमे प्रभावशाली सेट, फिल्म में अनारकली और राजकुमार सलीम की दुखद प्रेम कहानी के माध्यम से प्यार, वफादारी, परिवार और युद्ध को बड़े ही अनोखे तरीके से पर्दे पर उतारा गया था.
लता मंगेशकर की आवाज काबिले तारीफ रही. वहीं इस गाने को गीतकार शकील बदायुनी ने 105 बार लिखा और तब जाकर ये गाना के. आसिफ को पसंद आया था.
लता मंगेशकर को फिल्म मुगल-ए-आज़म के गानों के लिए हर रोज़ 3 से 4 घंटे तक प्रेक्टिस करनी पड़ती थी. इस बात का खुलासा खुद लता मंगेशकर ने किया था. उन्होंने कहा था. जब वो इस फिल्म के गानों की रिकॉर्डिंग करती थीं तब उन्हें लगता था कि उनके ऊपर बहुत बड़ी जिम्मेदारी है और कैसे भी करके उन्हें ये पूरी करनी है .
फिल्म का मशहूर गाना जब प्यार किया तो डरना क्या के बारे में बात करते हुए लता मंगेशकर बताती है कि जब पूरी फिल्म शूट हो गई तब मुझे महबूब स्टूडियो में बुलाया गया और ये गाना दिखाया गया और मुझसे कहा गया कि तुम्हें इस गाने के अंत में जो सीन है उसमें ओवरलैपिंग करनी हैं. जो मैंने वहां खड़े-खड़े गाई और बाद में वो लाइन गाने में अलग से जोड़ी गईं’.
फ़िल्म मी कहानी संक्षिप्त मे कुछ ऐसी है.
” फ़िल्म अकबर के बेटे शहज़ादा सलीम (दिलीप कुमार) और दरबार की एक कनीज़ नादिरा (मधुबाला) के बीच में प्रेम की कहानी दिखाती है.नादिरा को बादशाह अकबर द्वारा अनारकली का ख़िताब दिया जाता है. फ़िल्म में दिखाया गया है कि सलीम और अनारकली में धीरे-धीरे प्यार हो जाता है, और अकबर इससे नाखुश होते हैं.अनारकली को कैदखाने में बंद कर दिया जाता है. सलीम अनारकली को छुड़ाने की नाकाम कोशिश करता है.
अकबर अनारकली को कुछ समय बाद रिहा कर देते हैं. सलीम अनारकली से शादी करना चाहता है पर अकबर इसकी इजाज़त नहीं देते. सलीम बगावत की घोषणा करता है. अकबर और सलीम की सेनाओं में जंग होती है और बाद मे सलीम पकड़ा जाता है. सलीम को बगावत के लिये मौत की सज़ा सुनाई जाती है.
आखिरी पल अकबर का एक मुलाज़िम अनारकली को आता देख तोप का मुँह मोड देता है.इसके बाद अकबर अनारकली को एक बेहोश कर देने वाला पंख देता है जो अनारकली को अपने हिजाब में लगाकर सलीम को बेहोश करना होता है. अनारकली ऐसा करती है. सलीम को ये बताया जाता है कि अनारकली को दीवार में चिनवा दिया गया है पर वास्तव में उसी रात अनारकली और उसकी माँ को राज्य से बाहर भेज दिया जाता है.”
फ़िल्म का एक दूसरा मशहूर गाना प्रस्तुत करता हूं.
ये दिल की लगी कम क्या होगी,
ये इश्क़ भला कम क्या होगा,
जब रात है ऐसी मतवाली
फिर सुबह का आलम क्या होगा
नग़मो से बरसती है मस्ती,
छलके हैं खुशी के पैमाने
आज ऐसी बहारें आई हैं,
कल जिनके बनेंगे अफ़साने
अब इससे ज्यादा और हसीं
ये प्यार का मौसम क्या होगा
जब रात है ऐसी…
ये आज का रंग और ये महफ़िल,
दिल भी है यहाँ दिलदार भी है
आँखों में कयामत के जलवे,
सीने में तड़पता प्यार भी है
इस रंग में कोई जी ले अगर,
मरने का उसे ग़म क्या होगा
जब रात है ऐसी……… वाह शकील साहब वाह. ऐसा गाना आपही लिख सकते हो. सैलूट.
आजकी पोस्ट : प्यार करने वाले दीवानो को समर्पित.
—–====शिवसर्जन ====——