हिंदू देवी सिता माता को समर्पित जानकी मन्दिर नेपाल के जनकपुर के केन्द्र में स्थित है. राजा जनक की पुत्री सीता को जानकी भी कहा जाता हैं, उनके नाम पर इस मंदिर का नामकरण हुआ था. यह जनक नगरी मिथिला की राजधानी थी. इसे जनकपुर धाम भी कहा जाता है. मन्दिर की वास्तु हिन्दू राजपूत वास्तुकला पर आधारित है. जो यह नेपाल में सबसे महत्त्वपूर्ण राजपूत स्थापत्यशैली का उदाहरण है.
यह मन्दिर का निर्माण 4860 वर्ग फुट क्षेत्र में हुआ है. इसका निर्माण सन 1895 में आरम्भ होकर 1911 में पूर्ण हुआ था. मन्दिर परिसर एवं आसपास कुल 115 सरोवर एवं कुण्ड हैं, जिनमें गंगासागर, परशुराम कुण्ड एवं धनुष सागर अत्याधिक पवित्र कहे जाते हैं.
इस भव्य मन्दिर का निर्माण मध्य भारत के टीकमगढ़ की रानी वृषभानु कुमारी के द्वारा सन 1911 में करवाया गया था. टीकमगढ़ की महारानी कुमारी वृषभानु एक बार वहां गई थीं. उन्हें कोई संतान नहीं थी. वहां उन्होंने पूजा अर्चना के दौरान यह मन्नत मांगी थी कि अगर भविष्य में उन्हें कोई संतान होती है तो वो वहां मंदिर बनवाएंगी. संतान की प्राप्ति के बाद वो वहां लौटीं और साल 1895 में मंदिर का निर्माण शुरू हुआ और 16 साल में मंदिर का नव निर्माण पूरा हुआ.
यह मंदिर बनाने नौ लाख रुपये लागत आयी थी, इस कारण से स्थानीय लोग इसे नौलखा मन्दिर भी कहते हैं.
कहा जाता है कि सन 1657 में देवी सीता की स्वर्ण प्रतिमा यहां पर मिली थी और मान्यता के अनुसार प्रभु श्रीराम से विवाह के पहले सीता जी ने ज़्यादातर समय यहीं व्यतीत किया था.
वास्तव में शूरकिशोरदास बैरागी ही आधुनिक जनकपुर के संस्थापक भी थे. इन्हीं संत ने सीता उपासना ( जिसे सीता उपनिषद भी कहते हैं ) का ज्ञान दिया था. मान्यता अनुसार राजा जनक ने इसी स्थान पर शिव-धनुष के लिये तप किया था. वर्तमान में इस मंदिर पर रामानंदी संप्रदाय के बैरागी साधुओं का प्रभुत्व है व श्री रामतपेश्वर दास वैष्णव जी इस मंदिर के महन्त हैं.
इस मंदिर के निर्माण के पीछे एक कहानी है. पहले यहां जंगल हुआ करता था, जहां शुरकिशोर दास तपस्या-साधन करने पहुंचे थे. यहां रहने के दौरान उन्हें माता सीता की एक मूर्ति मिली थी, जो सोने की थी. उन्होंने इसे वहां स्थापित किया था.
इस मंदिर की यह विशेषता है कि मंदिर में 12 महीने अखंड भजन कीर्तन चलता है, तथा 24 घंटे सीता-राम नाम का जाप यहां लोग करते हैं. सन 1967 से लगातार यहां अखंड कीर्तन चल रहा है. वर्तमान में राम तपेश्वर दास वैष्णव इस मंदिर के महंत हैं. वे जानकी मंदिर के 12वें महंत हैं. परंपरानुसार अगले महंत का चुनाव वर्तमान महंत करते हैं.
जानकी मंदिर में तीर्थ यात्री न सिर्फ़ भारत से बल्कि विदेशों से भी आते हैं. यहां यूरोप, दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया से भी तीर्थ यात्री आते हैं. मंदिर में माता सीता की मूर्ति अत्यंत प्राचीन है जो सन 1657 के आसपास की बताई जाती है.
जनकपुर प्राचीन काल में विदेह राज्य की राजधानी थी. विदेह राज्य के संस्थापक निमि के वंश में महाराज सीरध्वज जनक 22 वें जनक थे, और अयोध्याके राजा दशरथ के समकालीन थे. जनक, राजाओं में सबसे प्रसिद्ध बहुत ही विद्वान एवं धार्मिक विचारों वाले थे. शिव के प्रति अगाध श्रद्धा के कारण प्रसन्न होकर भगवान शिव जी ने इन्हें अपना धनुष दिया था.
यह धनुष अत्यंत भारी था. जनक की पुत्री सीता नियमित रूप से पूजा स्थल की साफ-सफाई स्वयं करती थी. एक दिन जनक जी जब पूजा करने आए तो उन्होंने देखा कि शिव का धनुष एक हाथ में लिये हुए सीता पूजा स्थल की सफाई कर रही हैं.
इस दृश्य को देखकर जनक जी आश्चर्य चकित रह गये कि इस अत्यंत भारी धनुष को सिता ने कैसे उठा लिया. इसी समय जनक जी ने तय कर लिया कि सीता का पति वही होगा जो शिव के द्वारा दिये गये इस धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने में सफल होगा.
अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार राजा जनक ने धनुष-यज्ञ का आयोजन किया. इस यज्ञ से संपूर्ण संसार के कई राजा, महाराजा, राजकुमार तथा वीर पुरुषों को आमंत्रित किया गया. समारोह में अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र रामचंद्र और लक्ष्मण अपने गुरु विश्वामित्र के साथ उपस्थित थे.
धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने की बारी आई तो वहाँ उपस्थित किसी भी व्यक्ति से प्रत्यंचा तो दूर धनुष हिला तक नहीं सके, इस स्थिति को देख राजा जनक को अपने-आप पर बड़ा क्षोभ हुआ.
राजा जनक के इस वचन को सुनकर लक्ष्मण के आग्रह और गुरु की आज्ञा पर रामचंद्र ने ज्यों ही धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाई त्यों ही धनुष तीन टुकड़ों में विभक्त हो गया. बाद में अयोध्या से बारात आकर रामचंद्र और जनक नंदिनी जानकी का विवाह माघ शीर्ष शुक्ल पंचमी को जनकपुरी में संपन्न हुआ.
कहते हैं कि कालांतर में त्रेता युगकालीन जनकपुर का लोप हो गया. करीब साढ़े तीन सौ वर्ष पूर्व महात्मा सूरकिशोर दास ने जानकी के जन्मस्थल का पता लगाया और मूर्ति स्थापना कर पूजा प्रारंभ की. तत्पश्चात आधुनिक जनकपुर विकसित हुआ.
जनकपुर नेपाल की राजधानी काठमांडू से 400 किलोमीटर दक्षिण पूरब में बसा है. जनकपुर से करीब 14 किलोमीटर उत्तर के बाद पहाड़ शुरू हो जाता है. नेपाल की रेल सेवा का एक मात्र केंद्र जनकपुर है. यहाँ नेपाल का राष्ट्रीय हवाई अड्डा भी है. जनकपुर जाने के लिए बिहार राज्य से तीन रास्ते हैं. पहला रेल मार्ग जयनगर से है, दूसरा सीतामढ़ी जिले के भिट्ठामोड़ से बस द्वारा है, तीसरा मार्ग मधुबनी जिले के उमगाँउ से बस द्वारा है.
बिहार के दरभंगा, मधुबनी एवं सीतामढ़ी जिला से इस स्थान पर सड़क मार्ग से पहुंचना आसान है. बिहार की राजधानी पटना से इसका सीतामढ़ी के भिट्ठामोड़ होते हुये सीधा सड़क संपर्क है. पटना से इसकी दूरी 140 की मी है.
यात्रियों के ठहरने हेतु यहाँ होटल एवं धर्मशालाओं का उचित प्रबंध है. यहाँ के रीति-रिवाज बिहार राज्य के मिथलांचल जैसे ही हैं. वैसे प्राचीन मिथिला की राजधानी माना जाता है. भारतीय पर्यटक के साथ ही अन्य देश के पर्यटक भी काफी संख्या में यहाँ आते हैं.