दुनिया मे कई लोग, दूसरों की हूबहू नक़ल करने की कोशिश करते है. मगर नक़ल करना,इतना आसान काम नहीं होता है. जितना लोग समजते है. वास्तव मे नक़ल करने के लिये भी अक्कल की जरुरत होती है. स्टेज शॉ करने वाले कई हास्य कलाकार भी नामी राजकीय, सामाजिक, फ़िल्मी कलाकार की नक़ल करके लोगों का मनोरंजन करते दिखाई देते है.
हास्य कलाकार सर चार्ल्स स्पेन्सर चैप्लिन, ( 16 अप्रैल 1889 से 25 दिसम्बर 1977 ) जो चार्ली चैप्लिन के नाम से जाना जाता है. वो एक हास्य अभिनेता और फिल्म निर्देशक थे. चार्ली चैप्लिन ( Charlie Chaplin ) मूक फिल्म युग के सबसे रचनात्मक , प्रभावशाली अभिनेता, पटकथा लेखक, निर्माता तथा प्रसिद्ध संगीतकार थे.
हिंदी फ़िल्म के नामी निर्माता, निर्देशक , अभिनेता स्व : राज कपूर भी चार्ली चैप्लिन की नक़ल करते थे.
चार्ली चैप्लिन ने अपनी कला कौशल से दुनिया भर मे नाम कमा लिया था. एक दिन की बात है. लंदन के एक सभागृह मे एक अनोखा कार्यक्रम रखा गया था. जिसमे भाग लेने वाले कलाकारों को चार्ली चैप्लिन की नक़ल करनी थी. जितने वाले उम्मीदवार को पुरुष्कार की घोषणा की गई थी.
चार्ली चैपलिन ने भी गुप्त रुप से इस कार्यक्रम मे भाग लिया. कार्यक्रम शुरू हुआ. सब उम्मीदवारो ने अपने करतब दिखाए. दरम्यान चार्ली ने भी अभिनय करके दिखाया.
अंतिम तीन उमीदवारो को स्टेज पर बुलाया गया. जजों ने अपना फैसला सुनाया तो चार्ली अचंबित रह गया. क्योंकि उसे दूसरा नंबर दीया गया था..!…!…!.
ता : 15 अगस्त 1975 मे रिलीज हुई, ” शोले ” एक एक्शन फ़िल्म थी. सलीम-जावेद द्वारा लिखी इस फिल्म का निर्माण गोपाल दास सिप्पी ने और निर्देशन का कार्य, उनके पुत्र रमेश सिप्पी ने किया था. शोले को भारतीय सिनेमा की सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में से एक माना जाता है. सन 2005 में पचासवें फिल्मफेयर पुरस्कार समारोह में इसे पचास सालों की सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार मिला था.
यह फ़िल्म 3 करोड़ की लागत से बनाई गई थी और 15 करोड़ का कारोबार किया था. मुख्य भूमिका मे धर्मेंद्र , हेमा मालिनी , अमिताभ बच्चन, जया भादुरी , संजीव कुमार और अमजद खान ने मुख्य किरदार निभाए था. संगीत दीया था राहुल देव बर्मन साहब ने.
इस फ़िल्म ने कई रेकॉर्ड तोड़े थे. मगर बताया जाता है की ये फ़िल्म कई फिल्मों की नक़ल करके बनाई गयी थी. इससे सुनील दत्त की हिंदी फ़िल्म ” मेरा गांव मेरा देश ” अन्य गुजराती फ़िल्म कादू मकरानी, जैसे का समावेश है.
कुछ लोगोंका मानना है की सन 1969 मे रिलीज हुई, हॉलीवुड की फिल्म, ” बुच कैसिडी एंड सनडान्स किड ” से ” शोले ” की जोड़ी जय-वीरू के किरदार की प्रेरणा ली गयी थी. माना जाता है कि शोले के प्लॉट से लेकर, जय – वीरू ठाकुर, मौसी, और गब्बर जैसे किरदारों की कल्पना हॉलीवुड की कुछ क्लासिक फिल्मों को देखकर की गई थी.
शोले की बनावट पर अनुपमा चोपड़ा की लिखी किताब ” शोले: दी मेकिंग ऑफ ए क्लासिक ” में इसका जिक्र किया गया है कि इस पर किन-किन हॉलीवुड फिल्मों से इसकी नक़ल की गई है.
” शोले ” और नकल की जब चर्चा होती है सन 1954 में बनी अकीरा कुरोसावा की फिल्म ” सेवेन समुराई ” का नाम आता है. इसमें सात समुराई योद्धा गांव के सभी लोगों को इकट्ठा करके डाकुओं से लड़ते हैं. लेकिन शोले के लेखक निर्देशक ने अकल लगाई. डाकुओं से लड़ने सात योद्धा के वजह दो योद्धा रखे गये. बताया जाता है कि सेवेन समुराई से प्रेरित ” मैग्नीफिशेंट सेवेन ” की कहानी थी. पर ” शोले ” मैग्नीफिशेंट सेवेन के ज्यादा करीब नजर आती है.
सन 1969 में आई फिल्म ” वाइल्ड बंच ” में एक ट्रेन डकैती सीक्वेंस फिल्माया गया था. इस खास दृश्य को आज भी हॉलीवुड सिनेमा में याद किया जाता है. ” शोले ” में भी ट्रेन डकैती का सीक्वेंस कुछ कम नहीं था. मगर शोले उससे भी अच्छा था.
सन 1969 में ही एक हॉलीवुड फिल्म आई थी, ” बुच कैसिडी एंड सनडान्स किड ” फिल्म के दो हीरो थे बुच और और सनडान्स छोटे मोटे अपराध करने वाले उच्चके होते हैं. ” शोले ” की जोड़ी जय – वीरू की प्रेरणा वहीं से आई थी.
सन 1955 की फिल्म ” बैड डे एट द ब्लैक रॉक ” के एक अहम किरदार का एक हाथ कटा हुआ था. लेकिन यह राज फिल्म के आखिर में खुलता है. ” शोले ” में भी काफी देर के बाद राज खुलता है कि ठाकुर के दोनों हाथ नहीं है.
सन 1968 की फिल्म ” वन्स अपॉन अ टाइम इन वेस्ट” का खलनायक बेहद क्रूर था. कहते हैं गब्बर का किरदार भले सलीम ने अपनी पिता की कहानियों के आधार पर चंबल के असल डाकू गब्बर सिंह के आधार पर लिखा हो.पर इसको विकसित करने के लिए ” वन्स अपॉन अ टाइम इन वेस्ट ” के खलनायक की सहायता ली गई थी. उस फिल्म के विलन ने एक मासूम समेत पूरे परिवार की क्रूरता से हत्या की थी.
हमारे देश के कई लोग नक़ल करने मे माहिर होते है.
नकली मावा बनाना, नकली शहद बनाना, नकली औषधीय बनाना, नकली दूध बनाना. यहां तक की आजकल प्लास्टिक के अंडे भी बाजार मे नकली बिकने लगे है.
बाजार मे मिलने वाली नकली चीज हूबहू असली जैसी होती है. इसीलिए उपभोक्ता ओको समज पाना मुश्किल होता है. आजकल तो विविध प्रकारके प्रमाण पत्र भी मिल जाते है. पैसा फेको तमाशा देखो.
” तेलगी स्टेम्प घोटाला ” के बारेमें आप लोगों ने सुना होगा. सन 1991 मे मास्टर माइंड अब्दुल करीम तेलगी ने नकली स्टेम्प छापकर 16 राज्यों मे 20 हजार करोड़ रुपये का घोटाला किया था. सन 2001 में उसे अजमेर से गिरफ्तार करके सन 2006 में कोर्ट ने उसे दोषी मानते हुए 30 साल जेल की सजा सुनाई थी. कुल 202 करोड़ का जुर्माना उस पर लगाया था. ता : 26 अक्टूबर 2017 को उसकी मौत हो गई थी. इससे पहले वो 16 साल से जेल मे बंद था. *
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