पतिव्रता सत्यवान – सावित्री| Savitri

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वट सावित्री का त्योहार के दिन महिलाएं वट वृक्ष की पूजा करती है . प्रतिवर्ष ज्येष्ठ मास की अमावस्या को उत्तर भार‍‍त की सुहागिनों द्वारा तथा ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को दक्षिण भार‍त की सुहागिन महिलाओं द्वारा वटसावित्री व्रत का पर्व बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है. 

     मान्यता है की जो महिलाएं इस दिन वट वृक्ष की पूजा करती है, तथा सती सावित्री की कथा सुनने अथवा कथा का वाचन करती है, उस सौभाग्यवती महिलाओं की अखंड सौभाग्य की कामना पूरी होती है. 

         धर्म ग्रंथो की माने तो वट वृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा, तने में भगवान विष्णु व डालियों तथा पत्तियों में भगवान शिव का निवास स्थान होता है. इस दिन सुहागिन महिला अपने पति के लंबे आयुष्य की कामना करती है तथा अखंड सौभाग्यवती का वर मांगती है. 

          सत्यवान सावित्री की कथा हिंदू धर्म के महाकाव्य महाभारत के वनपर्व मे मिलती है. जब युधिष्ठर, मार्कण्डेय मुनि से पूछते है की क्या कोई अन्य नारी भी ” द्रोपदी ” की तरह पतिव्रता हुई है जो पैदा तो राजकुल में हुई है, पर पतिव्रत धर्म निभाने के लिए जंगल-जंगल भटक रही है ? 

         मार्कण्डेय मुनि, युधिष्ठर के इस प्रश्न का उत्तर देते हुए कहते है की पहले भी ” सावित्री ” नाम की एक नारी इससे भी कठिन पतिव्रत धर्म का पालन कर चुकी है और मुनि, युधिष्ठर को यह कथा सुनाते है.

        ” सावित्री ” प्रसिद्ध तत्त्‍‌वज्ञानी राजर्षि अश्वपति की एक मात्र कन्या थी. वर की खोज स्वयं करने निकली सावित्री ने वनवासी राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को पति के रूप में स्वीकार कर लिया और घर लौटी तब मद्रराज अश्वपति अपनी सभा में बैठे हुए बातें कर रहे थे. 

     तब राजा की सभा में नारदजी भी उपस्थित थे. नारदजी ने जब राजकुमारी के बारे में राजा से पूछा तो राजा ने कहा कि वे अपने वर की तलाश में गई हैं. जब राजकुमारी दरबार पहुंची तो और राजा ने उनसे वर के चुनाव के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि उन्होंने शाल्वदेश के राजा के पुत्र सत्यवान जो जंगल में पले हैं उन्हें पति रूप में स्वीकार कर लिया है. 

         इस पर नारद जी बोले कि राजेन्द्र ये तो बहुत खेद की बात है क्योंकि इस वर में एक दोष है. तब राजा ने पूछा तो उन्होंने कहा कि जो वर सावित्री ने चुना है उसकी आयु सिर्फ एक वर्ष की है. उसके बाद उसकी मौत हो जायेगी. इस बात पर सावित्री ने कहा कि, पिताजी कन्यादान एकबार ही किया जाता है जिसे मैंने एक बार अपना वर मान लिया है उसी से विवाह करूंगी. माता पिताने बहुत समजाया मगर सावित्री अपने निर्णय पर अटल रही. 

        सावित्री के पिताने सत्यवान से धुमधाम और पूरे विधि विधान के साथ विवाह संपन्न करवा दिया. 

          सावित्री के विवाह को काफ़ी समय बीत गया. जिस दिन सत्यवानकी मृत्यु होने वाली थी, वो दिन करीब आ गया. सावित्री को पता चला कि अब पति को चौथे दिन मरना है तो उसने तीन दिन का व्रत धारण कर लिया. जब पति सत्यवान जंगल में लकड़ी काटने निकला तो सावित्री ने उससे कहा कि मैं भी साथ चलुंगी. तब सत्यवान ने सावित्री से कहा तुम व्रत के कारण कमजोर हो रही हो, जंगल का रास्ता बहुत कठिन है. इसलिए आप ना आये मगर सावित्री माने तब ना. वह सत्यवान के साथ जंगल की ओर चल दी.

      आज मृत्यु का अंतिम दिन था. सत्यवान को भयंकर पीड़ा और चक्कर आने लगे. वो जमीन पर गीर पड़ा. उसने जगाने का प्रयत्न किया मगर नहीं उठे. तब उसने देखा स्वयं यम प्रकट हुए, जो काल रूपी भैंसे पर सवार यमराज था. 

      वह सत्यवान के आत्म स्वरूप को पाश से खींच कर ले जाने लगे. सावित्री ने फिर भी साहस करते हुए परिचय पूछा. हे देव, आप कौन हैं और मरे पति की ज्योति क्यों खींच रहे हो ? यम ने परिचय देते हुए कहा कि मैं यमराज हूं. बहुत देर से मेरे दूत काली छाया बनकर तुम्हारे पति के प्राण हरण करने की कोशिश कर रहे थे , लेकिन वे तुम्हारे सतीत्व के कारण निकट नहीं आ पा रहे थे. इसलिए मुझे स्वयं आना पड़ा. इतना कहकर वह चलने लगे. 

       यमराज सत्यवान के शरीर में से प्राण निकालकर उसे पाश में बांधकर दक्षिण दिशा की ओर चलने लगे तो सावित्री बोली मेरे पतिदेव को जहां भी ले जाया जाएगा मैं भी वहां साथ चलूंगी. तब यमराज ने कहा, ऐसा असंभव हे पुत्री, सावित्री ने देवी सीता का उदाहरण दिया कि वह भी तो पति संग वन गईं थीं, तो मैं यमलोक भी चलूंगी.

         सावित्री बोली या मुझे भी साथ ले चलें, या फिर मेरे भी प्राण को साथ ले लीजिए. यमराज प्रकृति के नियम विरुद्ध सावित्री के प्राण नहीं ले सकते थे.उसे समझाते हुए कहा कि मैं उसके प्राण नहीं लौटा सकता चाहे तू मनचाहा वर मांग ले. 

          तब सावित्री ने वर में अपने श्वसुर के आंखे मांग ली. यमराज ने कहा तथास्तु, लेकिन वह फिर उनके पीछे चलने लगी. तब यमराज ने उसे फिर समझाया और वर मांगने को कहा उसने दूसरा वर मांगा कि मेरे श्वसुर को उनका राज्य फिर वापस मिल जाए. उसके बाद तीसरा वर मांगा की मेरे पिता जिन्हें कोई पुत्र नहीं हैं उन्हें सौ पुत्र हों. यमराज ने फिर कहा सावित्री तुम वापस लौट जाओ चाहो तो मुझसे कोई और वर मांग लो. तब सावित्री ने कहा मुझे सत्यवान से सौ यशस्वी पुत्र हों. यमराज ने कहा तथास्तु. 

      तब यमराज ने कहा अब तो वापस लौट जाओ तो सावित्री ने कहा मैं कैसे वापस लौट जाऊं.आपने ही तो मुझे सत्यवान से सौ यशस्वी पुत्र उत्पन्न करने का आर्शीवाद दिया है. यह सुनकर यम सोच में पड़ गए कि अगर सत्यवान के प्राण वह ले जाएंगे तो उनका वर झूठा होगा. 

        यमराज ने सत्यवान को पुन: जीवित कर दिया. इस तरह सावित्री ने अपने सतीत्व से पति के प्राण, श्वसुर का राज्य, परिवार का सुख और पति के लिए 400 वर्ष की नवीन आयु भी प्राप्त कर ली. यह संपूर्ण घटना क्रम वट वृक्ष के नीचे घटने के कारण सनातन परंपरा में वट सावित्री व्रत पूजन की परंपरा चलती आ रही है. 

         उल्लेखनीय है की महाभारत का युद्ध ईसा से 3137 वर्ष पहले यानी आजसे 5154 वर्ष पहले हुआ था. भारतीय मान्यता के अनुसार इस ग्रंथ की रचना महाभारत युद्ध के काल में ही हुई थी.

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