राजा श्री दशरथ के बाद भारत देश में प्रथम सहस्त्र कुण्डीय लक्ष चंडी महा यज्ञ का आयोजन श्री राहुलेश्वर महाराज जी द्वारा वसई (पूर्व ) राजवलि स्थित श्री राहुलेश्वर महाराज जी के ” पद्मश्री योगपीठ आश्रम ” के प्रांगण में संपन्न हुआ था.
इस अवसर पर देश भर से करीब 6000 ब्राह्मण आयोजन मे सामिल हुए थे. अनेक साधु संत भी पधारे थे जिसमे हिमालय से आये कुछ साधु संतो का भी समावेश था.
एक पंडाल में 100 यज्ञ कुंड बनाये गये थे. ऐसे कुल 10 विशाल पंडाल बनाये गये थे. मुख्य कुंड सहित कुल 1008 कुंड बनाये गये थे. जहां पर यज्ञ का आयोजन किया गया था.
यज्ञ के प्रथम दिन अग्नि प्रज्जवलित नहीं हो रही थी. शाम का वक्त हो चूका था. आखिरकार श्री राहुलेश्वर महाराज ने अपनी हथेली पर योग विद्या से अग्नि प्रज्जवलित की थी, और यज्ञ का प्रारंभ किया था.
पंडाल मे नव देवियो की विशाल झाँखीया बनाई गई थी. जो धार्मिक वातावरण को बढ़ावा दे रही थी. नव दिन तक वैदिक परंपरा अनुसार पूजा, पाठ, मन्त्रोंचार के साथ भव्य आहुतिया दी गई थी. रोज अन्नपूर्णा भंडारा का आयोजन किया गया था.
कार्यक्रम का मंच संचालन भाईंदर भूमि समाचार पत्र के प्रधान संपादक श्री पुरुषोत्तम “लाल” चतुर्वेदी “लाल” साहब करते थे.
गुरुदेव श्री राहुलेश्वर महाराज जी का जन्म ता :17 नवंबर 1966 के दिन वसई में दीपावली के पावन शुभ पर्व के दिन हुआ था. उनकी प्राथमिक शिक्षा वसई में हुई थी. उनका पालन श्रीमंत परिवार मे हुआ था. पिताजी की वसई स्थित सोना चांदी की दुकान थी.
पिताजी ने उन्हें उत्तन, भाईंदर पश्चिम स्थित सोना चांदी की दुकान खोलकर दी थी. मगर उनकी इच्छा कुछ और थी.
सत्य की खोज मे वें हिमालय पर्वत गये. वहां सबसे पहले गुरु निखिलेश्वर स्वामी के शिष्य बने. जहाँ उसे त्रिजता गुरु का समर्थन मिला. आध्यात्मिक क्षेत्र में आश्चर्यजनक प्रगति की और खुद को पूरी दुनिया में सनातन धर्म की शिक्षाओं का प्रचार और प्रयोग करते पाया गया.
उन्होंने दिव्य माता देवी पद्मावती की साधना की. दिव्य माता पद्मावती के आशीर्वाद से 10 महाविद्या आत्मसात की. महा विद्या किसे कहते है ? :
माता सती ने भगवाव श्री शिव के सामने अपनी महत्ता सिद्ध करने के लिए उन्हें अपने 10 रूप दिखाए थे , जिन्हें दस महाविद्या कहा जाता हैं. इन्हीं 10 महाविद्या की पूजा नवरात्र में की जाती हैं. इन सभी महाविद्याओं के साथ भगवाव शिव व भगवान विष्णु के भिन्न रूपों का भी संबंध हैं.
दस महाविद्या और उनके भैरव :
(1) काली महाविद्या और उनके भैरव: महाकाल.
(2) तारा महाविद्या और उनके भैरव: अक्षोभ्य.
(3) षोडशी महाविद्या और उनके भैरव: कामेश्वर.
(4) भुवनेश्वरी महाविद्या और उनके भैरव: सदाशिव या त्रयम्बक.
(5) भैरवी महाविद्या और उनके भैरव: दक्षिणामूर्ति.
(6) छिन्नमस्ता महाविद्या और उनके भैरव: कबंध.
(7) धूमावती महाविद्या और उनके भैरव: कोई भैरव नही क्योंकि भगवान शिव द्वारा विधवा होने का श्राप.
(8) बगलामुखी महाविद्या और उनके भैरव: मृत्युंजय या महारुद्र.
(9) मातंगी महाविद्या और उनके भैरव: मतंग या एकवक्त्र.
(10) कमला महाविद्या और उनके भैरव: नारायण या विष्णु.
उपरोक्त 10 विद्या आत्मसात करने के बाद मे श्री राहुलेश्वर सिद्धि प्राप्त करने के लिए हिमालय में एक अज्ञात स्थान पर चले गये. और अनेक सिद्धि हासिल की. जहां उसे कई सिद्ध ऋषि मुनियों का आशीर्वाद प्राप्त हुआ.
स्टील लघुउद्योग एसोसिएशन भाईंदर (प) के माजी अध्यक्ष श्री नरेन्द्र नागड़ा ” गुड़िया ” महाराज श्री के शिष्य है. उनके साथ मुजे राहुलेश्वर महाराज से साक्षात्कार करने का मौका मिला. उस वक्त मैं राष्ट्रीय दैनिक समाचार पत्र “संदेश” का पत्रकार था. उनके साथ मुंबई मालाड स्थित किये गये एक इंटरव्यू मे उन्होंने मुजे कहा कि मनुष्य मे विध्यमान सूक्ष्म आत्मा भगवान का अंश है. उस अंश मे 100 सूर्य की शक्ति है. आप इस शक्ति को कितना जागृत करते हो ये आपके उपर निर्भर करता है.
दूसरी एक सुंदर बात उन्होंने ये कही कि भगवान ने मनुष्य को एक विशेष शक्ति प्रदान की है. मनुष्य यदि चाहे तो अपनी भक्ति के बल पर ईश्वर को पृथ्वी लोग पर बुलाकर प्रकट कर सकता है. मगर भगवान यदि चाहे तो भी मनुष्य को पृथ्वी लोग से स्वर्ग लोग नहीं बुला सकता. ये बात सन 1996 की है.
श्री राहुलेश्वर महाराज जो पद्मश्री सिद्ध योग पीठ के अंतर्गत आश्रम को चलाते है. उन्होंने सनातन गौशाला की स्थापना की है. उन्होंने उत्तराखंड में निखिल पीठ की स्थापना की है, तथा नेपाल में भी उनके आश्रम है.
गुरुदेव हिंदू धर्म के सभी त्यौहार मनाते है, जिसमे महाशिवरात्रि, होली, मकरसंक्रांति, अक्षय तृतीया, दीपावली, चैत्री नवरात्रि, गणेशोत्सव का समावेश होता है. इस अवसर पर मानव कल्याण के लिए शिविर का आयोजन किया जाता है.
गुरुदेव श्री राहुलेश्वर महाराज के शिष्य श्री नरेन्द्र नागड़ा, ” गुड़िया ” का मैंने संपर्क किया तो उन्होंने बताया कि सतयुग में रघुवंश के राजा दसरथ, त्रेता युग में पांडवो ने और कलियुग में श्री राहुलेश्वर महाराज ने राजवली वसई (पूर्व ) स्थित 1008 कुण्डीय यज्ञ किया था. जहां भारत भर से साधु संत तथा महात्मा आये थे.
इस अवसर पर विशेष भंडारा का आयोजन किया जाता था. उल्लेखनीय है कि राहुलेश्वर गुरुदेव सदैव विश्व का कल्याण, प्राणियों में सदभावन और विश्व की शांति के लिए कार्य करता है. नेपाल और महाराष्ट्र में उनके भक्तों की संख्या लाखों में है.
श्री राहुलेश्वर महाराज के सानिध्य में सनातन गौशाला चलाई जाती है. उनके विविध आश्रम स्थित साल भर धार्मिक उत्सव मनाये जाते है. वसई स्थित आश्रम में हर चार साल में दस लक्ष चंडी यज्ञ का आयोजन हर्षोल्लास से किया जाता है.