परमवीर चक्र विजेता वीर मेजर शैतान सिंह हेमसिंह भाटी की अमर यशोगाथा.

वीर मेजर शैतान सिंह

हमारे देश के जवान अपनी जान की परवा किये बीना दिन रात जागकर सरहद की रक्षा करते है , ताकी हम लोग चैन की नींद सो सके. समय आने पर ये अपने जान की बाजी लगा देते है. ऐसा ही एक वीर, बहादुर परमवीर चक्र विजेता मेजर शैतान सिंह की बात मेरे पाठक परमेश्वर से शेयर करनी है.

मेजर शैतान सिंह ने जम्मू-कश्मीर के रेजांग ला में लगभग 17,000 फीट की ऊंचाई पर 13 कुमाऊं की एक कंपनी की कमान संभाली थी. ता : 18 नवंबर 1962 के दिन चीनी सैनिकों ने उनके ठिकाने पर जबरदस्त हमला कर दिया. मेजर शैतान सिंह ऑपरेशन स्थल पर हावी रहे और अपने सैनिकों का मनोबल बढ़ाते रहे.

मेजर को पता था कि, उनके पास स‍िर्फ 123 सैन‍िक,100 हथगोले, 300 से 400 राउंड गोल‍ियां और कुछ पुरानी बंदूकें हैं, जिसे दूसरे व‍िश्‍वयुद्ध में नकारा घोषि‍त क‍िया जा चुका था. जबक‍ि सामने बेहद खतरनाक 16000 चीनी सैन‍िक अपने पूरे लवाजमें और पूरे हथि‍यारों और प्‍लान के साथ जंग के मैदान में खड़े थे.

मेजर शैतान सिंह भाटी का जन्म ता : 01 दिसंबर 1924 के दिन राजस्थान के जोधपुर जिले के बंसाल गांव के एक राजपूत परिवार में हुआ था. उनके पिता लेफ्टिनेंट कर्नल हेम सिंह थे , जिन्होंने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान फ्रांस में भारतीय सेना के साथ सेवा की और ब्रिटिश सरकार द्वारा ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर (OBD) से सम्मानित किए गए थे.

मेजर शैतान सिंह को दुश्मन के सामने उनकी वीरताके लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था. आपको बता दे कि परमवीर चक्र भारत का सर्वोच्च सैन्य पुरस्कार हैं. यह पुरस्कार दुश्मन की उपस्थिति में वीरता का प्रदर्शन करने के लिए दिया जाता है.

मेजर शैतान सिंह ने जोधपुर के राजपूत हाई स्कूल में अपनी मैट्रिक तक की पढाई की. स्कूल में वह फुटबॉल खिलाड़ी के रूप में अपने कौशल के लिए जाने जाते थे. सन 1943 में स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद मेजर सिंह जसवंत कॉलेज गए और उन्होंने 1947 में स्नातक किया. ता : 1 अगस्त 1949 के दिन वह एक अधिकारी के रूप में जोधपुर राज्य बलों में शामिल हो गए।

जोधपुर की रियासत का भारत में विलय हो जाने के बाद मेजर शैतानसिंह को कुमाऊं रेजिमेंट में स्थानांतरित कर दिया गया. मेजर शैतान सिंह ने नागा हिल्स ऑपरेशन तथा सन 1961 में गोवा के भारत में विलय में हिस्सा लिया था. उन्हें 11 जून 1962 को मेजर पद के लिए पदोन्नत किया गया था.

रेजांगला के युद्ध में भारतीय सेना की एक टुकड़ी का खुद नेतृत्व करते हुए चीनी सेना के 1300 चीनी सैनिकों को मार गिराया था. लड़ाई के दौरान मेजर गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद उन्होंने अपने सैनिकों को प्रोत्साहित करना और उनका नेतृत्वकरना जारी रखा. मेजर शैतान सिंह ने वायरलेस पर सीनियर अधिकारियों से मदद मांगी, लेक‍िन मदद नहीं म‍िली. उन्‍हें कहा गया क‍ि आप चौकी छोड़कर पीछे हट जाएं. अपने साथियों की जान बचाएं. लेक‍िन मेजर शैतान सिंह को मरना मंजूर था पीछे हटना नहीं.

उन्‍होंने टुकड़ी से कहा, कि….

” हमारे पास कुछ नहीं है,लेकि‍न जो जंग के मैदान में मरना चाहता है वो साथ चलें जो नहीं चाहता है वो लौट जाए ” और सभीने बहादुरीका उदाहरण का अनुसरण करते हुए वीरतापूर्वक लड़ाई जारी रखी.

बटालियन ने अपने मेजर के फैसले पर भरोसा दिखाया. दूसरी तरफ से तोपों और मोर्टारों का हमला शुरू हो चुका था. चीनी सैनिकों से ये 120 जवान लड़ते रहे. दस-दस चीनी सैनिकों से एक-एक जवान सीधी लड़ाई में जंग करता रहा.

इस जंग में ज्यादा भारतीय जवान शहीद हो गए और बहुत से जवान बुरी तरह घायल हो चुके थे. मेजर शैतान स‍िंह के पास कोई चारा नहीं था इसल‍िए वे चीनी सैन‍िकों पर टूट पड़े और उन्‍हें कई गोल‍ियां लग गईं. खून से सने मेजर को दो सैनिक एक बड़ी बर्फीली चट्टान के पीछे ले गए. मेडिकल हेल्प वहां नहीं थी. इसके लिए उन्‍हें पहाड़ियों से नीचे उतरना था. लेक‍िन मेजर ने मना कर दिया.

साथियों ने उन्हें सुरक्षित स्थान पर ले जाने की कोशिश की. मगर मेजर ने इंकार कर दिया. साथ ही मशीन गन को रस्सी की मदद से पैरों में बंधवा लिया था, ताकि वह ज़्यादा से ज़्यादा दुश्मन को मार सकें. हालांकि, वह ज़्यादा देर तक ऐसा नहीं कर सके. सुबह होते-होते मेजर समेत टुकड़ी के 114 सैनिक शहीद हो गए. बाकी बचे हुए सैनिकों ने दुश्मन ने बंदी बना लिया था, जिन्हें बाद में छोड़ दिया गया था.

वर्फ़बारी के कारण मेज़र सहित उनके साथियों के शव एक लंबे समय तक नहीं मिले. युद्ध के करीब तीन माह बाद जब शहीद मेजर शैतान सिंह का शव मिला तो सबकी आंखें खुली की खुली रह गईं. उनके पैरों में अभी भी मशीनगन बंधी हुई थी, जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि उन्होंने अंतिम समय तक किस तरह से दुश्मन का सामना किया होगा.

मेजर शैतान सिंह मरा नहीं, आज भी भारत देश के हर नागरिकोंके दिल में अमर है. उनका स्टेचू जोधपुर में कागा स्थित बनाया गया है.

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