कुछ लोग धन कमाने के चक्कर में नीचता की हर हद पार कर जाते है. वो लोग जो येन केन प्रकारेण धन दौलत बटोरनेको अपना आदर्श मानते है. ऐसे लोगोंके लिए प्रोफेसर आलोक सागर पथदर्शक है.
प्रोफेसर आलोक सागर जी जब आईआईटी दिल्ली में प्रोफ़ेसर थे. तब उन्होंने कई विद्यार्थी को शिक्षा दी थी. उन्हीं के बीच एक उनका चेला (छात्र) रघुराम राजन भी था. जो भारतीय रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (R.B.I) के 23वें गवर्नर बने. जिनका कार्यकाल सन 2013 से 2016 तक रहा.
आलोक सागर जी ने आईआईटी दिल्ली से इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर की डिग्री हासिल की थी. मगर 33 सालसे आदिवासी एरिया में जाकर उन्हें शिक्षा देने का कार्य कर रहे हैं. तथा उन्हें प्रेरित करते हैं कि पर्यावरण की रक्षा कैसे की जा सकती है.
आलोक सागर जी ने समाजसेवी संस्थाओं के साथ मिलकर कई जगह काम किए उनमें उत्तर प्रदेश के कई जिले के आलावा मध्यप्रदेश के बैतूल जिले के कोचमहू गांव में पिछले 33 सालसे आदिवासियों के बीच एक छोटी सी झोपड़ी बनाकर रह रहे हैं.
इनके पास पहनने के लिए मात्र 3 कुर्ते एवं एक टायर की बनी चप्पल और एक साइकिल है. इन्हीं साइकिल से वह इन ग्रामीणों के बीच प्रतिदिन जाकर लोगों को पढ़ाई के प्रति, शिक्षा के प्रति जागरूकता लाते हैं. तथा पढ़ाने का कार्य करते हैं.
आलोक जी पेड़ लगाने के बीज बांटते हैं और पौधों को लगाने के विषय में लोगों को प्रेरित भी करते हैं. आज इनके द्वारा उठाए गए कदम में बेताल जिले के कोचमहू गांव के आसपास 50 हजार से अधिक पेड़ लगाए जा चुके हैं. इनके साथ ही वह उन आदिवासियों की हर परेशानी में वह उनके साथ रहे हैं. मजदूरी ना मिलने पर या देरी होने पर या किसी विकास के मुद्दे पर वह कई बार धरने पर भी बैठ चुके हैं.
प्रोफेसर आलोक सागर का जन्म 20 जनवरी 1950 को दिल्ली में हुआ था. उस समय उनके पिता आईआरएस ऑफिसर थे. जो की बहुत इज्जतदार पद होता है. आलोक जी की माताजी दिल्ली यूनिवर्सिटी में एक शिक्षिका का कार्य करती थी. बचपन से ही आलोक सागर जी पढ़ाई में बहुत ही अच्छे थे. उनका जीवन काफी आनंदित रूप से चल रहा था वह प्रोफेसर की अच्छी नौकरी भी पा चुके थे.
उनका एक भाई है अंबुज सागर वह आलोक सागर की तरह दिल्ली आईआईटी में प्रोफेसर के पोस्ट पर कार्यरत हैं. दो बहने हैं दोनों बहने भी एक बड़े पोस्ट पर कार्यरत हैं.
जब वह प्रोफेसर बने IIT DELHI के तब वह समाजसेवी संस्थाओं के संपर्क में आए और उनसे यह जानने कि कोशिश की जरूरतमंद लोगों की मदद कैसे की जाती है. तब से वह उन्हीं को अपना सपना बना लिया कि मुझे अपनी पूरी जिंदगी में बस लोगों की मदद ही करनी है.
अपनी इस मंजिल को पाने के लिए उन्होँने इस शान शौकत और इतनी मेहनत लगन से प्राप्त की गई प्रोफेसर की नौकरी को छोड़कर उन संस्थाओं के साथ मिलकर काम करने का निश्चय किया और जगह-जगह जाकर लोगों की मदद करने लग गए. इतना ही नहीं उन्होँने लोगों की मदद करते-करते वह अपने घर माता-पिता को भी छोड़ अपने जीवन को एक साधु की तरह जीने लगे.
आलोक सागर जी ने आईआईटी दिल्ली से 1971 में बीटेक की पढाई पूरी की और वही से ई. सन 1973 में एमटेक कीया फिर आगे की पढ़ाई के लिए वह 1977 में अमेरिका के हॉस्टन में स्थित राइस यूनिवर्सिटी चले गए जो अमेरिका की टॉप 50 इंस्टिट्यूट में एक थी. यहां से उन्होँने अपनी PHD की पढ़ाई पूरी की.
वहां से पढ़ाई पूरी करने के बाद 1980 में IIT दिल्ली में प्रोफेसर की नौकरी मिल गई. जहां वो प्रोफेसर बने और शिक्षा देने का काम शुरू किया लेकिन इनका मन यहां ज्यादा दिन तक नहीं लगा. इस वजह से वो इस प्रोफेसर की नौकरी को छोड़ दी. और आदिवासी के बिच जिना शुरु किया.
एक बार आलोक जिस राज्य मे रह रहे थे वहा चुनाव का माहौल था. तब कुछ पुलिस वालों ने उन्हें पकड़ा और पूछा, आप तो यहां के रहने वाले नहीं हैं. पुलिस ने कहा आप कौन हैं इनकी जानकारी हमें थाने में आकर देनी होगी, नहीं तो हम आप पर कार्रवाई करेंगे.
तब उन्होंने अपने सारे डॉक्यूमेंट को लेकर थाने मे दिखाया और वहां के अफसरों ने ये देखा तो सब हैरान रह गए कि इतने महान व्यक्ति होकर इन आदिवासियों के बीच रह कर दुखों मे अपना जीवन कैसे व्यतीत कर रहे हैं.
उसी दिन पता चला पूरी दुनिया को प्रोफेसर आलोक सागर कैसे बना समाज सेवक और उनकी उपलब्धियों के बारे मैं. इतने सालों से वह गांव के लोगों के बीच कार्य कर रहे थे लेकिन किन्ही को वो अपनी असल जींदगी के बारे में नही बताया था.
प्रोफेसर आलोक सागर का जन्म 20 जनवरी 1950 को दिल्ली में हुआ था. वर्तमान में उनकी उम्र 73 साल है.