पवन पुत्र राम भक़्त हनुमान द्वापर युग में| Hanuman

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कुछ लोग मानते है कि श्री हनुमानजी का जन्म मंगल वार के दिन हुआ था. तो कुछ लोग मानते है कि श्री हनुमान जी का जन्म शनिवार को हुआ था. 

        श्री हनुमानजी महा पराक्रमी, महावीर थे. आज यहां पर श्री अर्जुन और श्री हनुमान जी के जीवन की प्रेरक कथा आप मित्रो के साथ शेयर करनी है. 

         द्वापर युग के अंत में एक दिन अर्जुन अपने रथ में बैठकर अरण्य ( जंगल ) में घूम रहा था. तब उसने एक पर्वत पर राम नाम भजते श्री हनुमानजी को देखा. 

    अर्जुन ने उसकी नजदीक जाकर पूछा, हे… वानर आप कोण हो ? आपका नाम क्या है ? इसपर हनुमानजी बोले, मैं त्रेता युग का शिलाओसे सेतु निर्माण करने वाला प्रभु श्री राम भक़्त हनुमान हुँ. इस पर गर्व के साथ अर्जुन बोला, इसमें कौनसी बड़ी बात है. समुद्र में बाण से तो कोई भी धनुर्धारी पल भर मे 100 योजन तक लम्बा सेतु बना सकता था, आप लोगोने व्यर्थ समय बर्बाद किया था. 

          इस बात पर हनुमान जी बोले, मगर बाण से बनाया सेतु हमारे जैसे वानरों का भार नही उठा सकता अतः हमें शिला ओका सहारा लेना पड़ा था. इसपर पांडु पुत्र श्री अर्जुन बोला, यदि वानरोके भार से सेतु टूट जाये तो वो धनुर्विद्या ही किस कामकी ! अर्जुन को घमंड आया. 

       इसपर हनुमानजी बोले, यदि मेरे अंगूठे के भार मात्र से तुम्हारा बाण वाला सेतु टूट जाये तो ? 

     अर्जुन बोला, तो मैं जलती चिता में कूदकर स्वयं अपने प्राण की आहुति दे दूंगा. ओर यदि ना टुटा तो ?

        अगर ना टुटा तो मैं आजीवन आपके रथ की धजा के समीप बैठकर आपकी रक्षा करूंगा. 

          पार्थ ने तुरंत गांडीव धनुष से पल भर मे सो योजन लंबा सेतु बना डाला. अब आप इसपर जीतनी चाहो उछल कूद कर शकते हो. अर्जुन बोला. 

       श्री हनुमानजी ने हसते हसते अंगूठा लगाते ही सेतु बांध टूट गया. स्वर्ग से देवता ओने पुष्प बरसाये. 

      शर्त के अनुसार समुद्र तट पर चिता तैयार की गयी. उसी समय कुदनेसे पहले एक ब्रह्मचारी वहा आ पंहुचा. पूछनेपर अर्जुन ने अपनी प्रतिज्ञा के बारेंमे सब बात विस्तार से बताई.

         ब्रह्मचारी बोला मगर यहा पर साक्षी कोई नही था अतः मेरी उपस्थिति में फिरसे सेतु निर्माण करो ओर ये वानर उसे तोड़ दे तो मैं मेरा निर्णय दूंगा. 

     अर्जुन ने फिरसे सेतु निर्माण किया, अब की बार हनुमान जी ने खूब प्रयत्न करने पर भी सेतु नही टुटा. तब तुरंत श्री हनुमान जी समज गये की यह ब्रह्मचारी कोई सामान्य व्यक्ति नहीं है, ब्रह्मचारी के रूप में स्वयं भगवान ” श्री कृष्ण ” है. जिन्होंने अपना सुदर्शन चक्र सेतु के नीचे खड़ा कर दिया था.  

           त्रेता युग में श्री राम जी ने श्री हनुमान जी को द्वापर युग में श्री कृष्ण के रूप में दर्शन देनेका वचन दिया था. जो आज पुरा हुआ था. हनुमानजी ने चरण स्पर्श करते ही प्रभु प्रकट हुए और हनुमान जी को गले लगाया. अर्जुन आश्चर्य चकित हो कर अपने सखा की लीला देख रहा था. चक्र को निकालतेही सेतु पानी में गिरकर विलीन हो गया.       अर्जुन का गर्व उतर गया. ओर प्रभु की आज्ञा अनुसार हनुमानजी अर्जुन के रथ पर ध्वजा के नजदीक रहने लगा.और रथ की रक्षा करने लगा. महाभारत के युद्ध में यही कारण वश श्री अर्जुन के रथ को कोई कुछ बिगाड़ नहीं पाया. इस तरह हनुमान जी ” कपिध्वज ” के नाम से प्रसिद्ध हुए. वाह रे प्रभु तेरी लीला. 

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                          शिव सर्जन प्रस्तुति..

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