आपमेंसे कई लोगोंने पाकीजा फिल्म अवश्य देखी होगो. परंतु आपको पता है ? फिल्म में पाकीजा कौन है ? और फिल्म में पाकीजा शब्द किसके लिए कहां गया है…? नहीं ना ! हम आपको इस पोस्ट में बतायेंगे…..
पाकीज़ा एक उर्दू शब्द है जिसका मतलब पवित्र होता है. पाकीजा एक सन 1972 की बॉलीवुड फिल्म है. यह एक त़वायफ़ की मार्मिक कहानी है और इस फिल्म का निर्देशन क़माल अमरोही ने किया था. जो नायिका मीना कुमारी के पति थे. फिल्म लगभग 14 साल मे बन कर तैयार हुई थी.
पाकीजा फिल्म शुरुसे विवादित रही. आज हम आपको पाकीजा फिल्म के परदे के पीछे की कहानी सुनाते है. इस फिल्म की एडिटिंग हो रही थी तब एक गजब का वाकिया हुआ. आखरी सीन में जब मीनाकुमारी दुल्हन बनकर डोली में बैठकर कोठे से विदा होती है तब एक छोटी लड़की कोठे पर खड़ी दुल्हन को देख रही होती है.
फिल्म के एडिटर को वो सीन कोई कामका नहीं लगा , इसीलिए उसने वो सीन को काट दिया. मगर जब कमाल अमरोही को इस बात का पता चला तो उसने इस सीन को दुबारा एड करने को कहां और बताया की फिल्म की असली पाकीजा यह छोटी लड़की है. जो डोली को उठते देख रही है और उम्मीद कर रही है की एक दिन उसकी जिंदगी में भी कोई आयेगा और दुल्हन बनाकर उसे डोलीमे बिठाकर स्वप्नों की नगरी में ले जायेगा. कोठे से घुटन भरी जिंदगीसे दूर आजादी से भरी जिंदगी में….
इस पर एडिटर ने कमाल साहब को कहां की इस बात को कोई दर्शक समझ नहीं पायेगा , उस पर अमरोही ने कहां की यदि एक भी दर्शक मेरी इस बात को समझ गया तो मेरा मकसद कामयाब होंगा. फिल्म रिलीज हुईं, और दो महीने बाद मीनाकुमारी की मृत्यु हो गई. और नार्मल चल रही फील्म सुपरहिट फिल्म बन गई. एक साल के बाद एक दर्शक का कमाल को लेटर आया जिसमे कहां गया था की फिल्म के अंत में जो लड़की दिखाई गई है उसका उसे फोटो चाहिए क्योंकि फिल्म की असली पाकीजा वो छोटी लड़की है. जो पवित्र है, मासूम है. जो निष्पाप है और कोठे के रंग से अलिप्त है. फिल्म के अंतिम 5 मिनट में आप उस लड़की को देख सकते है. यू ट्यूब में आसानी से फिल्म आपको मील जायेगी.
अमरोही ने उस लेटर लिखने वाले को एक अथॉरिटी लेटर लिखकर भेजा की पुरे इंडिया में उसकी फिल्म कही भी आप बीना पैसे दिये देख सकता है. उसे सिनेमा घर में ये लेटर दिखाना होगा. फिर वो फ्री में फिल्म देख सकेगा. फिर कमाल ने एडिटर को कॉल किया और बताया की आखिर उसको उस आदमी का पता चल ही गया जिसको फिल्म की असली पाकीजा का पता चल गया.
उल्लेखनीय है कि समस्त विश्व में सर्वाधिक फिल्म बनाने वाले हमारे देश भारत में एक साल में 100 से अधिक हिन्दी फिल्में बनती रही हैं. लेकिन कुछ फिल्में ही ऐसी होती हैं जो बरसों बाद भी भुलाए नहीं भूलतीं. उन्हीं फिल्मों में एक है “पाकीज़ा”. जो कि 51वें साल में प्रवेश कर गयी है. लेकिन आज भी इस फिल्म की यादें ताजा हैं.
कमाल अमरोही ने ता : 16 जुलाई 1956 को इस फिल्म के गीतों के साथ रिकॉर्डिंग करके शुरुआत की थी जबकि यह फिल्म बनकर 4 फरवरी 1972 को प्रदर्शित हुईं थी. ता : 3 फरवरी 1972 को मुंबई के सुप्रसिद्ध सिनेमा थिएटर “मराठा मंदिर” में इस फिल्म का ऐसा भव्य प्रीमियर किया कि सभी देखते रह गए. उस प्रीमियर में फिल्म के सितारे मीना कुमारी, राज कुमार और अशोक कुमार सहित खुद कमाल अमरोही साथ फिल्म का बैकग्राउंड संगीत देने वाले उस दौर के बड़े संगीतकार नौशाद अली साहब भी मौजूद थे और भी कई खास लोग जिनमें संगीतकार खय्याम भी थे.
अदाकारा मीनाकुमारी का ता : 31 मार्च 1972 के दिन रात 9 बजे देहांत हो गया था. फिल्म का दमदार डॉयलॉग के साथ आजकी पोस्ट का समापन कर रहा हूं.
आपके पाँव देखे, बहुत हसीन हैं,
इन्हें ज़मीं पर मत उतारिएगा,
मैले हो जाएँगे.