” पनडुब्बी ” एक प्रकार का पानी के अंदर चलने वाला जलयान है. पनडुब्बियों का उपयोग विश्व में खास करके सेना में किया जाता रहा है. ये किसी भी देश की नौसेना की शक्ति बढ़ा देता है. पनडुब्बी का इतिहास देखे तो ये उन्नीसवीं शताब्दी में लोकप्रिय हुईं थी. तथा सबसे पहले प्रथम विश्व युद्ध में इनका प्रयोग किया गया था.
दुनिया की पहली पनडुब्बी एक डच वैज्ञानिक द्वारा सन 1602 में और पहली सैनिक पनडुब्बी टर्टल 1775 में बनाई गई थी. और यह पानी के भीतर रहकर सैनिक कार्य करने में सक्षम थी और इसलिए इसके बनने के एक वर्ष बाद ही इसे अमेरिकी क्रान्ति में प्रयोग में लाया गया था. 1620 से लेकर आज तक पनडुब्बियों की तकनीक और निर्माण में कई बदलाव आया है.
सन 1950 में परमाणु शक्ति से चलने वाली पनडुब्बियों ने डीज़ल चलित पनडुब्बियों का स्थान ले लिया था. बाद में समुद्री जल से आक्सीजन ग्रहण करने वाली पनडुब्बियों का भी निर्माण कर लिया गया था. इन दो महत्वपूर्ण आविष्कारों से पनडुब्बी निर्माण क्षेत्र में क्रांति आ गई थी. वर्तमान में बनी पनडुब्बियाँ कई सप्ताह या महिनों तक पानी के भीतर रहने योग्य होती है.
किसी भी तरल माध्यम में किसी वस्तु पर लगने वाला उत्प्लावन बल उस वस्तु द्वारा विस्थपित तरल के भार के बराबर होता है. यह बल यदि कम हो तो वस्तु डूब जाती है. यह आर्किमिडीज़ सिद्धांत के आधार पर कार्य करती है.
प्रथम परमाणु पनडुब्बी अमेरिका ने सन 1954 में बनाई थी जिसका नाम था ” नॉटिलस ” यह चार महीने तक बिना सतह पर लौटे दुनिया का चक्कर लगा सकती थी. फिर इसके बाद सोवियत रूसने ईसवी सन 1958 में अपनी पहली परमाणु पनडुब्बी तैयार की थी. सन 1950 के दशक से सन 1997 तक रूस ने 245 परमाणु पनडुब्बियों का निर्माण किया था.
द्वितीय विश्व युद्ध के समय भी पनडुब्बियों का उपयोग परिवहन के लिये सामान को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिए किया जाता था. आजकल इनका प्रयोग पर्यटन के लिये भी किया जाने लगा है. पनडुब्बियों पर कई लेखकों ने पुस्तकें भी लिखी हैं. इन पर कई उपन्यास भी लिखे गये हैं. पनडुब्बियों की दुनिया को छोटे परदे पर कई धारावाहिको में दिखाया गया है. हॉलीवुड के चलचित्रों में भी पनडुब्बियो को दिखाया गया है.
आधुनिक पनडुब्बियाँ चालक दल के लिये प्राणवायु ऑक्सीजन समुद्री जल के विघटन की प्रक्रिया से प्राप्त करती है. पनडुब्बियों में कार्बन डाईऑक्साइड को अवशोषित करने की व्यस्था होती है ताकि पनडुब्बी के भीतर अधिक कार्बन डाईऑक्साइड ना भर जाए. इसमे ऑक्सीजन की पर्याप्त उपलब्धता के लिये पनडुब्बी में एक ऑक्सीजन टंकी भी होती है आग लगने पर बचाव के लिये भी व्यस्था की जाती है. आग लगने की स्थिति में जिस भाग में आग लगी होती है, उसे शेष पनडुब्बी से विशेष रूप से बने परदों की सहायता से अलग कर दिया जाता है ताकि विषैली गैसें बाकी पनडुब्बी में ना फैले. और दुर्घटना से बच सके.
हमारी भारतीय नौसेना में वर्तमान में 16 से अधिक डीज़ल से चलनेवाली पनडुब्बियाँ हैं. ये सभी पनडुब्बियाँ मुख्य रूप से रुस या जर्मनी में बनीं हैं.
भारतीय नौसेना पोत (आई एन एस) अरिहंत परमाणु शक्ति चालित भारत की प्रथम पनडुब्बी है. इस 6000 टन के पोत का निर्माण उन्नत प्रौद्योगिकी पोत परियोजना के अंतर्गत पोत निर्माण केंद्र विशाखापत्तनम में 2.9 अरब डॉलर की लागत से किया गया है. इसको बनाने के बाद भारत वह छठा देश बन गया है जिनके पास इस प्रकार की पनडुब्बियां है.
नौसैनिकों का जीवन बड़ा कठिन होता है. परिवार वालों को बस इतना पता होगा है कि वो ड्यूटी पर जा रहे हैं. इससे ज्यादा और कोई जानकारी नहीं होती है. उनके अभियान की जानकारी सिर्फ नौसेना के मुख्यालय को होती है. नौसैनिक अपने परिवार से दूर पानी के भीतर रहते हैं. जब वो पनडुब्बी के भीतर होते हैं तो नहाना तो दूर, दाढ़ी बनाने का मौका भी उन्हें नहीं मिलता.
नौसैनिक अगर 30 दिन के लिए पनडुब्बी में हैं तो उन्हें मुश्किल से तीन बार नहाने का मौका मिलता है और वो भी सबकी सहमति के बाद क्योंकि हर नौसैनिक को प्रतिदिन तीन से चार मग पानी मिलता है. ब्लेड जैसी चीज का इस्तेमाल करना सख्त मना है, इसलिए जितने भी दिन वो पानी के भीतर रहते हैं, उन्हें बिना दाढ़ी बनाए ही रहना पड़ता है.
पनडुब्बी में खाने का सामान बेहद सीमित होता है. अगर ताजा खाना न हो तो उनके पास पहले से टिन में पैक भोजन होता है, जिसे कभी भी खाया जा सकता है.
पनडुब्बी में डॉक्टर और प्राथमिक चिकित्सा का सामान साथ होता है क्योंकि अगर किसी को उल्टी या फिर चक्कर जैसी परेशानी होती है तो तुरंत इलाज किया जा सके.पनडुब्बी में सोने के लिए दो कंपार्टमेंट होते हैं. वहां का तापमान गरम होता है, इसलिए कभी कभी कुछ नौसैनिक वहां भी सोने जाते हैं, जहां मिसाइल और टारपीडो रखे होते हैं क्योंकि ये जगह पनडुब्बी की दूसरी जगहों के मुकाबले सबसे ज्यादा ठंडी होती है.
पनडुब्बी के भीतर सूरज की रौशनी नहीं आती है. इसके चलते जब वो समुद्र की सतह पर आती है तो बाहर आते वक्त नौसैनिकों को हाथ-पैर में जकड़न जैसी समस्याओं से जूझना पड़ता है.गहरे समुद्र के भीतर लगातार अभियान पर चलते रहने से उनके कानों पर काफी गहरा असर होता है, इसलिए पनडुब्बी के भीतर सैनिक कानों का खास ख्याल रखते हैं.
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