पारसमणि से सोना तक | Parasmani Stone

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    आज मुजे बात करनी है , पारसमणि पथ्थर की जिसके छूने मात्र से लोहा सोना बन जाता है. बताया जाता है की यह पारसमणि पत्थर हिमालय की पहाड़ी मे होते है. उसको पहचान पाना बहुत मुश्किल है अतः वहाके स्थानीय चरवाहे ( shepherd ) अपनी गाय , भैंस , बकरी आदि जानवरो के पैर मे लोहै की ज़ंजीरें बांधकर उन्हें जंगल मे चरने के लिये छोड़ देते है ताकि पारसमणि पत्थर उसे छुनेसे जंजीर सोना बन जाये. 

       भारत देश को सोनेकी चिड़िया कहा जाता था. आज भी हमारे मंदिरोंमें हजारों टन सोना मंदिर के खजानो मे सुरक्षित है. भारत पर लगभग 1200 वर्षों तक मुग़ल, फ़्रांसिसी, डच, पुर्तगाली, अंग्रेज और यूरोप एशिया के कई देशों ने शासन किया एवं इस दौरान भारत से लगभग 30 हजार लाख टन सोना भी लूट लिया गया. 

       ड्रापर युग मे श्री कृष्ण भगवान की द्वारका नगरी सोने की थी. रावण की लंका सोनेकी थी. श्री देवराज इंद्र, श्री यक्षराज कुबेर, श्री विष्णु पत्नी लक्ष्मी, श्री भगवान श्री कृष्ण आदि के पास सोने के भंडार थे. आपने कई कहानी मे सुना होगा की राजा ओके पास अगणित सोना रहता था. वो जब खुश होते थे तो अपने कोषाध्यक्ष को आदेश देते थे की उसको 50 या 100 सोना मोहर भेट दी जाय. 

          तो फिर प्रश्न उठता था की हमारे देश मे इतना सोना आया कहा से ? इस रहस्य का उतर है कि भारत के अन्दर हमारे ऋषि मुनियों ने जो आयुर्वेद विकसित किया उसमे औषधिय उपचार के लिए स्वर्ण भस्म आदि बनाने के लिए वनस्पतियों द्वारा स्वर्ण बनाने की विद्या विकसित की थी. 

       पवित्र हिन्दू धर्म ग्रन्थ ऋग्वेद पर ही पूरे विश्व का सम्पूर्ण विज्ञान आधारित है.ऋग्वेद के उपवेद आयुर्वेद में सोना बनाने की विधि बताई गयी है. राक्षस दैत्य दानवों के गुरु जिन्हें हम शुक्राचार्य के नाम से भी जानते है. उन्होंने ऋग्वेदीय उपनिषद की सूक्त के माध्यम से स्वर्ण बनाने की विधि बतायी है . 

       मगर इस विधि को करने से पहले पूरी तरह समझ लेना जरुरी है. इसे किसी योग्य वैद्याचार्य की देख रेख में ही करना जरुरी है. स्वर्ण बनाने की प्रक्रिया के दौरान हानिकारक गैसें बाहर निकलती है जिससे असाध्य रोग होना संभव है अतः कर्ता को अत्यंत सावधानी बरतना जरुरी है. 

       सोने की खदानें कोलार, धारवाड़, हसन और रायचूर जिलों में स्थित हैं

         अब आप लोगों को पता चल गया होगा की सोनेका इनकम श्रोत (1) पारसमणि से मिलना (2) वनस्पति आदि जड़ीबूटी के मिश्रण से प्राप्त होना. (3) सोनेकी खदान से खोदकर निकालना आदि है. 

       एक समय था जब हमारे दक्षिण भारत मे कालीमिर्च व्यापक प्रमाण मे होती थी. विदेशी लोग उसे काला सोना कहते थे. उस समय हमारी कालीमिर्च सोने के वजन के हिसाब से खरीदी जाती थी. मतलब हमें एक किलो काली मिर्च के बदले एक किलो सोना दीया जाता था. उस समय कई टन विदेशी सोना हमारे देश मे आया था. 

   आपको जानकर आश्चर्य होगा की एक दिन मे 100 किलो सोना बनाने का कीर्तिमान महान रसायन आयुर्वेदाचार्य श्री नागार्जुन ने स्थापित किया था.श्री नागार्जुन का जन्म गुजरात मे सोमनाथ के नजदीक दैहिक नामक किले मे सन 931 मे हुआ था. 

      नागार्जुन ने रस रत्नाकर नामक पुस्तक लिखी थी. इस पुस्तक में रस (पारे के यौगिक) बनाने के प्रयोग दिए गए है. इस पुस्तक में देश में धातु कर्म और कीमियागिरी के स्तर का सर्वेक्षण भी दिया गया है. इस पुस्तक में सोना, चांदी, टिन और ताम्बे की कच्ची धातु निकालने और उसे शुद्ध करने के तरीके भी बताया गया है. 

    पारे से संजीवनी और अन्य पदार्थ बनाने के लिए नागार्जुन ने पशुओं, वनस्पति तत्वों, अम्ल और खनिजों का भी उपयोग किया था. पुस्तक में विस्तार पूर्वक दिया गया है कि अन्य धातुएं सोने में कैसे बदल सकती है. यदि सोना न भी बने तो रसागम विशमन द्वारा ऐसी धातुएं बनायी जा सकती है जिन की पीली चमक सोने जैसी ही होती है . नागार्जुन ने “सुश्रुत संहिता” के पूरक के रूप में “उत्तर तंत्र” नामक पुस्तक भी लिखी थी. इसके अलावा उन्होंने कक्षपूत तंत्र, योगसर एवं गोपाष्टक पुस्तकें भी लिखी थी. 

     कहा जाता है कि नागार्जुन एक दिन में 100 किलो सोना बनाया करते थे और उनको सोना बनाने में इस स्तर की महारत थी कि वह वनस्पतियों के अलावा अन्य पदार्थों तक से सोना बना देते थे. लेकिन दुर्भाग्य है कि मूर्ख मुग़ल लुटेरों ने तक्षशिला और नालंदा जैसे विश्वविद्यालयों के रहस्यपूर्ण ग्रंथों को आग लगाकर जला दिया था. 

        महात्मा गाँधी जी के सम्मुख कृष्णपाल शर्मा ने दो सो तोला सोना बनाकर स्वतंत्रता आन्दोलन हेतु दान मे दीया था. 

बनारस के आयुर्वेदाचार्य श्री कृष्णपाल शर्मा ने महात्मा गांधी के समक्ष स्वर्ण बनाने की आयुर्वेदिक प्रक्रिया का वर्णन किया तो गांधी जी ने सार्वजनिक रूप से उनका उपहास कर दिया, जिससे वह अपनी व आयुर्वेद की प्रतिष्ठा को दाव पर लगा हुआ देख कर तत्काल बनारस गये. 

        वहां से कुछ वनस्पति पदार्थों को लेकर पुनः दिल्ली के बिरला मंदिर के अतिथि गृह में वापस आये और दिनांक 26 मई 1940 को गांधीजी, उनके सचिव श्री महादेव देसाई तथा विख्यात व्यवसायी श्री युगल किशोर बिडला की उपस्तिथि में उन पदार्थों के समिश्रण को बनाकर गाय के उपले में पकाकर मात्र 45 मिनट में स्वर्ण बना दिया था. जिसका शिलालेख आज भी बिरला मंदिर के अतिथि गृह पर लगा हुआ है. 

     इसी तरह ता : 6 नवम्बर 1983 के हिन्दुस्तान समाचार पत्र के अनुसार सन 1942 में श्री कृष्णपाल शर्मा ने ऋषि केश में मात्र 45 मिनट में पारा से दो सो तोला सोने का निर्माण करके सबको आश्चर्य में डाल दिया था. उस समय वह सोना 75 हजार रुपये में बिका जो धनराशि स्वतंत्रता आन्दोलन के लिए दान कर दी गयी. 

       पारस मणि एक प्रकार का सफेद चमकता हुआ पत्थर माना जाता है. बताया जाता है की अश्वत्थामा के पास एक ऐसी मणि थी जिसके बल पर महा शक्तिशाली बन गया था. 

           मणियां के कई प्रकार होते है , शेषमणि , नीलमणि, चन्द्रकांत मणि, लाल मणि , कौस्तुभ मणि, पारस मणि आदि.इन्हीं में से एक पारस मणि बताया जाता है जो लोहे को छूटे ही सोना बना देता है. 

          एक मान्यता ऐसी भी है कि कौवों को इस मणि की पहचान होती है. किंवदंती है कि पारस मणि की तलाश के लिए कौवे के पैरों में लोहे के छल्ले डाल देते हैं. कौआ जब पारस मणि के पास जाकर उसे अपने पैरों से छूता या वह उस पर बैठ जाता है तो ये छल्ले सोने में बदल जाते हैं.

            मोहम्मद गौरी को पता था कि देश के एक राज्य में पारसमणि है. इसलिए वह मरते दम तक उसको खोजता रहा था.वहीँ चंदेल के राजा के बारें में बोला जाता है कि उसको खबर लग चुकी थी कि मोहम्मद गौरी पारसमणि लेने आ रहा है अतः उसने इसको कहीं तालाब में फेंकवा दिया था . 

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पारसमणि से सोना तक | Parasmani Stone 3

         कहते हैं कि प्राचीन भारत के लोग स्वर्ण बनाने की विधि जानते थे. वे पारद आदि को किसी विशेष मिश्रण में मिलाकर स्वर्ण बना लेते थे, लेकिन क्या यह सच है ? यह आज भी एक रहस्य है. कहा तो यह भी जाता है कि हिमालय में पारस नाम का एक सफेद पत्थर पाया जाता है जिसे यदि लोहे से छुआ दो तो वह लोहा स्वर्ण में बदल जाता था.पारे, जड़ी वनस्पतियों और रसायनों से सोने का निर्माण करने की विधि के बारे में कई ग्रंथों में उल्लेख मिलता है.

        प्राचीन भारत में सोना बनाने की एक रहस्यमयी विद्या थी. कहीं ऐसा तो नहीं कि इसी कारण बगैर किसी ‘खनन’ के बावजूद भारत के पास अपार मात्रा में सोना था…….? मंदिरों में टनों सोना रखा रहता था.सोने के रथ बनाए जाते थे और प्राचीन राजा-महाराजा स्वर्ण आभूषणों से लदे रहते थे.

          कहते हैं कि बिहार की सोनगिर गुफा में लाखों टन सोना आज भी रखा हुआ है. मध्यकाल में गौरी, गजनी, तेमूर और अंग्रेज लूटेरे लाखों टन सोना लूट कर ले गए फिर भी भारतीय मंदिरों और अन्य जगहों पर आज भी हजारों टन सोना है.आखिर भारतीय लोगों और राजाओं के पास इतना सोना आया कहां से ? प्रश्न विचारणीय है.

       प्रभुदेवा, व्यलाचार्य, इन्द्रद्युम्न, रत्नघोष, नागार्जुन के बारे में कहा जाता है कि ये पारद से सोना बनाने की विधि जानते थे. कहा जाता है कि नागार्जुन द्वारा लिखित बहुत ही चर्चित ग्रंथ ‘रस रत्नाकर’ में एक जगह पर रोचक वर्णन है जिसमें शालिवाहन और वट यक्षिणी के बीच हुए संवाद से पता चलता है कि उस काल में सोना बनाया जाता था. 

एक किस्से के बारे में चर्चा ‍की जाती है कि विक्रमादित्य के राज्य में रहने वाले “व्याडि” नामक एक व्यक्ति ने सोना बनाने की विधा जानने के लिए अपनी सारी जिंदगी बर्बाद कर दी थी. ऐसा ही एक किस्सा तारबीज और हेमबीज का भी है.

कहा जाता है कि ये वे पदार्थ हैं जिनसे कीमियागर लोग सामान्य पदार्थों से चांदी और सोने का निर्माण कर लिया करते थे. इस विद्या को ” हेमवती विद्या ” के नाम से भी जाना जाता है. 

       हमारे भारत देश मे त्रेता युग मे राम राज्य के समय सोने का उपयोग भरपूर मात्रा मे होता था. रावण की लंका सोनेकी थी. उसके बाद द्वापर युग मे भगवान श्री कृष्ण की द्वारका नगरी सोनेकी थी. सोना भारत वासिओं अभिन्न अंग था. 

       वैदिक युगोमे वनस्पति , जड़ीबूटी के साथ रसायन को मिलाकर सोना बनाया जाता था. फिर सोनेकी खदानों से सोना निकाला जाता था. और कई लोगोने पारसमणि के जरिए सोना की प्राप्ति की थी. 

      बताया जाता था की साउथ इंडिया मे कालीमिर्ची का उत्पादन खूब होता था. उस समय दुनिया मे हमारी काला मिर्ची की खूब मांग थी. विदेशी लोग कालीमिर्ची को प्यारसे काला सोना कहते थे. उस वक्त कालीमिर्ची के बदलेमे हम लोगोंको कालीमिर्ची के वजन के बरोबर सोना दिया जाता था. अतः उस जमाने मे दुनिया भर से हमें कालीमिर्ची के बदलेमे हमें सोना प्राप्त होता था. 

      उस समय के राजा महाराजा ओने चोरी के डर से उसे मंदिर के खजाने मे चुपके से छुपा दिया था. 

 *** 300 करोड़ की लागत से बना श्री महालक्ष्मी सुवर्ण मंदिर दक्षिण भारत मे तमिल नाडु के वेल्लोर नगर के मलाईकोड़ी के पहाड़ों पर विध्यमान है यह मंदिर महालक्ष्मी मंदिर के नाम से जाना जाता है. यह मंदिर रेलवे स्टेशन काटपाडी से बस 7 किमी की दुरी पर है जो 15 हजार किलो सोना से बनाया गया है. 

*** सीख संप्रदाय का अमृतसर स्थित हरमंदिर साहिब को भारत का ” स्वर्ण मंदिर “माना जाता है, जिसकी खास वजह, मंदिर के बाहरी हिस्से को स्वर्ण से जड़ा गया है. धार्मिक व पर्यटन के लिहाज से यह मंदिर विश्व विख्यात है . 

*** केरल का पद्मनाभ मंदिर भारत का सबसे अमीर मंदिर माना जाता है. कुछ वक्त पहले एक लाख करोड़ से अधिक का खजाना वहां मिला था.अब कहा जाता है की यहासे 186 करोड़ रुपये का सोना चोरी हो गया है. 

 ——–===शिवसर्जन ===——-

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