पावागढ़ का कालिका माता मंदिर.

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पावागढ़ का कालिका माता मंदिर चंपानेर, पावागढ़ पहाड़ी की चोटी पर स्थित माता काली का प्रसिद्ध मंदिर है. यह मंदिर अति प्राचीन है, जो लगभग 10 वीं -11 वीं शताब्दी का माना जाता है. यह मंदिर देवी काली को समर्पित है. कालिका माता मंदिर चंपानेर-पावागढ़ को यूनेस्को विश्व धरोहर की सूची मे सामिल किया गया है. और यह स्थल भारत में स्थापित 51 शक्तिपीठों में से एक है. मंदिर समुद्र तल से 762 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है.

यह प्राचीन कालिका माता मंदिर में देवी कालिका माता की शुरुआत में स्थानीय भील और कोली लोगों द्वारा पूजा की जाती थी. कहा जाता है कि इसकी स्थापना ऋषि विश्वामित्र जी के द्वारा की गई थी. मंदिर में देवी-देवताओं की तीन प्रतिमाएँ हैं, केंद्रीय स्थित छवि कालिका माता की है, जो दाईं ओर काली और बाईं ओर बहूचरमाता हैं.

इस मंदिर से जुड़ी एक किंवदंती है, कि एक बार नवरात्रि के त्योहार के समय मंदिर प्रांगण मे गरबानृत्य जो एक गुजरात का पारंपरिक नृत्य है, का भव्य आयोजन किया था.

जहां सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु भक्त गरबा नृत्य कर रहे थे. लोगों की भक्ति को देखकर, देवी महाकाली स्वयं एक स्थानीय महिला के रूप में वेश बदलकर भक्तों के बीच आईं और उनके साथ गरबा खेलने लगी.

इसी समय उस राज्य के राजा पतई जयसिंह जो भक्तों के साथ गरबा नृत्य कर रहे थे, उन्होंने उस महिला को देखा और उसकी सुंदरता पर मुग्ध हो गया. वासना से चूर राजा ने उस महिला का हाथ पकड़ लिया जो स्वयं माता थी. जब राजाने अनुचित प्रस्ताव रखा तो देवी ने उसे तीन बार चेतावनी दी कि वह उसका हाथ छोड़कर क्षमा मांगे.

लेकिन राजा वासना से अभिभूत था और कुछ भी समझ नहीं पा रहा था. इस प्रकार देवी ने श्राप दिया कि उसका साम्राज्य गिर जाएगा. एक मुस्लिम आक्रमणकारी महमूद बेगड़ा ने राज्य पर आक्रमण किया. पतई जयसिंह लड़ाई हार गए और महमूद बेगड़ा द्वारा मारा गया.

पावागढ़ की कालिका माता की भी आदिवासी पूजा करते हैं. देवी काली के नामसे समर्पित इस मंदिर को काली माता का निवास माना जाता है, और 51 शक्ति पीठों में से एक है. कहा जाता है कि देवी सती माता के दाहिने पैर की अंगुली यहां गिरी थी.

छोटा और सादा मंदिर किलेबंदी के बीच स्थित है, जिसके सामने एक खुला प्रांगण है, और तीर्थयात्रियों की भीड़ को पूरा करने के लिए लंबे समय तक खुला रहता है. देवी को बलि चढ़ाने के लिए मंदिर के सामने दो वेदियाँ हैं, लेकिन लगभग दो से तीन शताब्दियों से किसी भी प्रकार के पशु बलिदान पर सख्त प्रतिबंध है. मंदिर में काली यंत्र की पूजा की जाती है.

परिसर को दो भागों में बांटा गया है, भूतल में हिंदू मंदिर हैं, जबकि मंदिर के शिखर पर एक मुस्लिम मंदिर है. भूतल पर मुख्य मंदिर में तीन दिव्य चित्र हैं. केंद्रमें कालिका माता जिसे मुखवाटो और लाल रंग के रूप में जाना जाता है. जबकि महाकाली उनके पास स्थित हैं.

सन 2022 में मंदिर के पुनर्विकास के बाद, दरगाह को पास में स्थानांतरित कर दिया और मंदिर का नया शिखर बनाया गया.

चंपानेर-पावागढ़ पुरातत्व पार्क 16 वीं शताब्दी में महमूद बेगड़ा द्वारा बनाया गया था. ये मंदिर प्राचीन हिंदू वास्तुकला के मंदिरों में बहुत प्रसिद्ध हैं. इस मंदिर की विशेषता इस मंदिर की जल संचयन प्रणाली है.

नवलखा कोठार :

पावागढ़ के पास नवलखा कोठार एक खूबसूरत हिल स्टेशन है. ये हिल स्टेशन अपने साहसिक अनुभव के लिए जाने जाते हैं. आप नवलखा से कोठार के ऊपर ट्रेकिंग के लिए जा सकते हैं.

पावागढ़ मंदिर समय :

पावागढ़ मंदिर सुबह 5 बजे से शाम 7 बजे तक खुलता है. प्रातः आरती का. समय प्रातः 5.00 बजे है. संध्या आरती का समय शाम 6.30 बजे है.

पावागढ़ मंदिर कैसे पहुंचे :

हवाईजहाज से :

पावागढ़ मंदिर से निकटतम हवाई अड्डा वड़ोदरा हवाई अड्डा है जो इस मंदिर से 42 किमी की दूरी पर है. यहाँ से आप स्थानीय परिवहन सेवाओं या टैक्सी का उपयोग करके आसानी से इस मंदिर तक पहुँच सकते हैं.

ट्रेन द्वारा पावागढ़ :

पावागढ़ मंदिर से निकटतम रेलवे स्टेशन वड़ोदरा रेलवे स्टेशन है जो इस मंदिर से 45 किमी की दूरी पर है. यहाँ से आप स्थानीय परिवहन सेवाओं या टैक्सी का उपयोग करके आसानी से इस मंदिर तक पहुँच सकते हैं.

सड़क मार्ग :

इस मंदिर के लिए सड़कें देश के अन्य शहरों से अच्छी तरह से जुड़ी हुई हैं, इसलिए आप देश के किसी हिस्से से अपने वाहन या किसी सार्वजनिक बस या टैक्सी द्वारा आसानी से इस मंदिर तक पहुँच सकते हैं.

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