पुरानी धोखादायक ईमारतो का सिरदर्द.

bhayander imrat

मुंबई में महंगे निवास की वजहसे, सस्ते दाम में आवास प्राप्त करने की खोज ने लोगोंको मिरा भाईंदर क्षेत्र में आनेको मजबूर किया. सत्तर के दशक में बंबई ( अब मुंबई ) शहर की बस्ती दिन दुगुना रात चौगुना बढ़ने लगी थी.

लोग वसई विरार की ओर बढे, मगर वहां पर बिजली की समस्या की वजह से जन समुदाय को भाईंदर तथा मीरारोड स्थित अपने सपनोका घर खरीदने को आकर्षित होना पडा. ग्राम पंचायत के काल में यहांपर जमीन खूब सस्ती थी. बिल्डिंग व्यवसायमें आमदनी अच्छी होने की वजह से सब्जी वाले, दूध वाले, किराने वाले बिल्डर बननेके लिए कूद पड़े.

कड़िये कॉन्ट्रैक्टर बन गये. वन प्लस टू की परवानगी होते हुए भी यहां चार मंजलि ईमारते खड़ी कर दी गई. यू कहो कि अनधिकृत बांधकाम में तेजी आयी. नियोजन के बिना इंडस्ट्रीयल गाले, रहवासी निवास को ठोक दिये गये. जिसका परिणाम आज महानगर पालिका को भुगतना पड रहा है.

पुरा मिरा भाईंदर नगर पालिका शहर क्षेत्र नमकीन, दलदल की जमीन पर बसा है. खारी हवाकी वजहसे यहां की बिल्डिंगो का आयुष्य करीब तीस से पैतीस साल माना जाता है. अगर ऐसे देखा जाय तो जो पुरानी बिल्डिंगे ग्राम पंचायत काल में बनाई गई है, वें तमाम बिल्डिंगे जर्जरित, व धोखादायक बन चुकी है.

जब ये बिल्डिंगे बनाई गई थी तब बिल्डरों की ऑफिसके फोटोफ्रेम में रखे नकाशे में बताये गये साफ सुथरा रोड, रोड पर खड़ी लाल रंग की विदेशी गाड़िया, तहलती रंग बिरंगी तितलियो की तरफ घूमती ललनाये को देखकर वहां आनेवाला खरीद दार, सपनो की दुनिया में विहार करने लगता था. ये सब देखकर वो प्रभावित हो जाता था, और जिंदगी भर की कमाई, स्वपनो का घर बसाने के लिए लगा देता था.

खरीददार ये भी नहीं देखता था कि ये ईमारत अधिकृत है या अनधिकृत! तरीके से बनाई गई है. आज भी कई अनधिकृत धोखादायक ईमारत हादसे का इंतजार कर रही है. फिर भी जनता ऐसी ही ईमारत में रहनेको मजबूर है. अगर देखा जाय तो ग्रामपंचायत के समय में बनी मिरा भाईंदर की आधी सदनिका अनधिकृत है.

बढ़ती हुईं जनसंख्या को देखते भाईंदर मीरारोड को कई बार स्थानीय लोगोंने मुंबई महानगर पालिका क्षेत्र में समाविस्ट करने की मांग की थी मगर आखिरकार शासन ने मिरा भाईंदर नगर पालिका परिषद् बनानेका मन बनाया और ता :12 जून 1985 के दिन इसकी विधिवत स्थापना की गई.

आज से 81 साल पहले ब्रिटिश शासन के समय सन 1942 मे भाईंदर, गोड़देव, नवघर, खारीगाव, बंदर वाड़ी वगेरा गावों को मिलाकर ग्रुप ग्राम पंचायत की विधिवत स्थापना की गई थी. और श्री जे बी सी नरोना भाईंदर के प्रथम सरपंच के पद पर चुने गए थे.

श्री जे बी सी नरोना के बाद श्री चदुलाल छबीलदास शाह भाईंदर के दूसरे सरपंच के रूपमे चुने गये. सन 1962 मे श्री चंदूलाल सेठ का निधन हुआ तो श्री कृष्णराव गोविंदराव म्हात्रे को सरपंच बनाया गया.

बढ़ती जनसंख्या को देखते और उत्तम नागरी सुविधाऐ उपलब्ध कराने के उदेश्य से सन 2004 में इसे महा नगर पालिका का दर्जा प्रदान किया गया.

आपको जानकारी के लिए बता दू कि सन 1981 मे भाईंदर की कुल जनसंख्या 35151 थी. नगर पालिका स्थापना के बाद सन 1991 मे मीरा भाईंदर की जनसंख्या 175372 हो गई. जो बढ़कर 2011 मे 809378 हो गई जिसमे पुरुष 429260 और महिला 380118 थी. सन 2021 की जन गणना कोविद -19 की वजह अब तक नहीं हो पाई मगर आज यहांकी जनसंख्या का आकड़ा 15 00000 करीबन ( पंदरा लाख ) पार होनेका अनुमान किया जाता हे. हमारे देश मे हर दस सालके अंतराल मे जनगणना होती है.

वर्तमान में मिरा भाईंदर महा नगर पालिका क्षेत्र की अधिकांश पुरानी बिल्डिंगे जर्जरित, धोखादायक बन चुकी है. जो प्रशासन का सिरदर्द बनी हुईं है. कई बिल्डिंगो के सलिए सड़के मिट्टी बन चुके है. पुरानी बिल्डिंगो में पानी की टंकी निचे होने की वजह से बारिस में डूबकर गटर का पानी अंदर जा रहा है.

सप्ताह पहले रेल्वे टिकट खिड़की के सामने भाईंदर पूर्व स्थित कीर्ति एस्टेट बिल्डिंग का कुछ हिस्सा गिरा. इस दुर्घटना में एक की मौत और चार व्यक्ति बुरी तरह घायल हुए. ये बिल्डिंग पहले से ही करीब तीन फीट रोड से निचे थी. जो करीब 50 साल पुरानी थी. इसे महानगर पालिका ने धोखादायक घोषित की थी.

यह सदनिका 12 जुलाई 2023 तक खाली करने के आदेश दिये गये थे. इसमे तीन ओर्केस्ट्रा बार और 4 परमिट बार थे. बताया जाता है कि इन लोगोंके दबाब में आकर पालिका आगेकी कठोर कार्रवाई नहीं कर रही थी.

यह तमाम यक्ष प्रश्नों का उत्तर अब पालिका प्रशासन और पुलिस विभाग के वरिष्ठ अधिकारियो ने ढूंढना होगा, अन्यथा इससे बडी दुर्घटना के लिए हमें तैयार रहना होगा.

पुरानी बातें :

ईस क्षेत्र का भाईंदर नाम कैसे पडा ?

कई बुजुर्ग भाईंदरवासी ओका यह कहना था कि, भाईंदर गांव को पुराने जमाने मे ” भाई बन्दर ” के नाम से पुकारा जाता था. यहां पर भाईंदर की खाड़ी किनारे रेती का व्यवसाय जोरो पर था. अतः इसे कुछ लोग रेती बंदर भी कहते थे.

” भाई बन्दर ” का संक्षिप्त मे नाम कहने की प्रथा ने उसे कालान्तर के बाद इस नामका भाई (ब) न्दर यांनी भाईन्दर या भाईंदर के नाम से प्रचलित हुआ. जो नाम आज तक चालू है.

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