पुराने भाईंदर गांव की बात करें तो पुरा भाईंदर गांव कांग्रेस के रंगों मे रंगा था. तत्कालीन लोग कट्टर कोंग्रेसी थे. ग्राम पंचायत की हकूमत थी. आर्थिक तंगी के कारण विकास कार्य रुक रुक कर हो रहा था. यहाके समाज सेवी और व्यापारी लोग खुदके पैसे निकालकर रोड , गटर का कार्य करते थे. उस समय के समाज सेवको मे एकता थी, लगन थी, अतः निस्वार्थ भावना से हर कार्य हो रहा था.
स्व : श्री चंदूलाल छबिलदास , स्व : श्री कृष्णा राव महात्रे , श्री नरोना , श्री नंदलाल गाडोदीया, श्री गोवर्धन डोसा. श्री देवचंद जेठालाल शाह. श्री गंगाधर गाडोदीया ( नगरसंघ चालक. राष्ट्रीय स्वयं संघ ).श्री आर. ए. सिँह – प्राचार्य. श्री एस एस राजू. श्री स्व : बद्रीनारायण गाडोदीया. श्री जे.बी.सी. नरोना. श्री हरिनारायण लाडूराम जी. श्री बालाराम पाटील. श्री राधाकिशन गाडोदीया. श्री रघुनाथ त्रिंबक दामले .श्री जनार्दन रकवी. श्री बंकट लाल हजारीमल गाडोदीया. श्री भालचंद्र आनंदराव रकवी. श्री सदाशिव मुकुंद तेंदुलकर. श्री माधवराव. श्री बर्नार्ड ए.नरोना. श्री राजाराम पाध्ये गुरुजी. श्री आगुस्टीन कोली. श्री मुरलीधर पाण्डेय. श्री गिल्बर्ट मेंडोसा. श्री प्रफुल्ल पाटील. श्री तुलसीदास म्हात्रे. जैसे अनेकों समाज सेवक एवं सभी अखबारो के पत्रकार. नगर सेवक. सभी सामाजिक एवं शैक्षणिक संस्था आदि मान्यवरो ने भाईंदर के विकास मे तेजी लाने के लिए सहरानीय योगदान दीया है. जिसमे लायंस क्लब ऑफ़ भाईंदर का योगदान काबिले तारीफ था.
खारिगांव बचपन की यादें :
सन 1965 का समय था. मे मालाड की श्री नूतन विद्या मंदिर हाई स्कूल मे पढ़ता था. सुबह मे चार बजे उठकर नहा धो कर पहिले माले पर पढाई करने बैठ जाता था. तत्कालीन श्री सत्य नारायण मंदिर खारीगाव मे पुराने गावठी कवेलु के छप्पर और लकड़े की सहायता और मिट्टी की दीवार से बनाये कच्चे घर थे.
मे लकड़े के माले के उपर पढाई करने बैठता था. सुबह छह बजकर आठ मिनट की विरार – चर्चगेट स्लो ट्रैन थी. सात बजेकी स्कूल थी , अतः डेढ़ घंटा स्टडी करने का समय मिलता था.
अधिकांश ट्रैन स्लो चलती थी. विरार से चर्चगेट तक सिर्फ दो लाइन थी. श्री सत्य नारायण मंदिर से भाईंदर रेलवे स्टेशन पुरा दीखाई देता था. गांव के चारो तरफ खेती की खुली जमीन थी. बारिस मे माहौल मनभावन हो जाता था.
जैसे वसई के पुल के उपर ट्रैन आती थी तो खुले शांत वातावरण मे खारीगाव तक आवाज आनी शुरु हो जाती थी. मै अपनी स्कूल बैग लेकर स्टेशन की और खेतमे से सीधा सीधा भागना शुरु करता था. और जैसे ट्रैन भाईंदर का ब्रिज पार करके प्लेटफॉर्म पर खड़ी रहती थी, तो मै भी वहां पहुंच जाता था. ये सिलसिला रोज चलता था.
बालाराम पाटील रोड तब मिट्टीका चार फुट चौड़ा रोड था. बारिस मे कीचड़ से भरा रहता था. खेत मे बारिस का पानी भर जानेसे , बारिस के मौसम मे विजय पंजाब होटल होकर स्टेशन जाना पड़ता था. उस ज़माने मे आठ डिब्बे की लकड़े के सीट वाली ट्रैन चलती थी. जिसको स्टार्ट होनेमे थोड़ा समय लगता था. बाहर गांव जाने वाली गाड़ी कोयले के इंजिन की चलती थी.
सन 1965 मे भाईंदर पूर्व मे प्रथम लाइट का आगमन हुआ था. जिसका शुभारंभ श्री सत्य नारायण मंदिर से किया गया था. यहाके किसानो की इनकम का मुख्य श्रोत चावल की खेती और मच्छी मारी का था. जिसपर उनका जीवन निर्वाह चलता था. कुछ मुंबई नौकरी पेशा के लिये जाते थे.
साठ के दशक मे भाईंदर पश्चिम मे रेती का व्यवसाय जोरो पर चलता था. उस वक्त जेसलपार्क चौपाटी को रेती बंदर के नाम से पहचाना जाता था. उसी के चलते भाईंदर पूर्व का बंदरवाड़ी गांव व नाम अस्थित्व मे आया.
सार्वजनिक श्री गणेश उत्सव बड़ी धाम धूम से मनाया जाता था. और सामूहिक रूप से भाईंदर पश्चिम स्थित उसका विसर्जन किया जाता था. उस समय पूर्व मे विसर्जन की जेटी नही थी. सन 1972 मे श्री सत्य नारायण मंदिर के तत्वविधान मे जागृति सेवा संघ – खारीगाव ग्रामस्थ द्वारा श्री सार्वजनिक नवरात्री उत्सव का पारंभ किया गया था. जो आज तक चालू है.
जिसमे श्री सदानंद पाटील , श्री बालकृष्ण मिस्त्री , श्री काशीनाथ मामा , श्री दांडेकर , श्री भास्कर भाऊ पाटील , श्री हरेश पाटील , श्री भरत तुकाराम पाटील, श्री प्रवीण रामचंद्र पाटील, श्री रतन कृष्णा पाटील, श्री सदाशिव माछी श्री मधुकर नारायण पाटील, मुन्ना भाई, राजू चुदासमा आदि अनेक लोगों का विशेष सहयोग रहता था.
भाईंदर पश्चिम गांव की सभी श्री गणेश जी की मूर्ति राम मंदिर , शंकर मंदिर स्थित राव तालाब मे विसर्जन की जाती थी. इसी तरह मूर्धा , राई , मोरवा गांव की श्री मूर्ति को अपने अपने गांव के तालाब मे विसर्जित की जाती थी.
——=== शिवसर्जन ===——