पुराने भाईंदर गांव की बीती हुई यादे | Part -XVII

1) भाईंदर भूमि दशक पूर्ति विशेषांक.

( प्रकाशन वर्ष : 1996)

” पृष्ठ भूमिका. “

भाईंदर के लोगोंमे मे आदर के साथ लिये जाने वाला नाम , ” भाईंदर भूमि ” समाचार पत्र से जुडी कुछ ऐतिहासिक पुरानी बात आप मित्रों के साथ शेर करनी है.

ईसवी सन नया साल 1 जनवरी 1986 के शुभ अवसर पर ” भाईंदर भूमि ” के 4 पुष्ठ का प्रथम अंक प्रकाशित हुआ तबसे इस पत्रने एक से एक ऊंचाई हासिल की. उस समय पत्र की कीमत थी , सिर्फ पचास नया पैसा. ये एक मात्र ऐसा पत्र था जिसे लोग खरीदकर पढ़त थे.

इस पत्र ने छोटे समय मे ऐसी लोकप्रियता हासिल की जिसे देखकर मुंबई के राष्ट्रीय बड़े अखबार भी भाईंदर भूमि से प्रभावित हुये. उस समय पानी की समस्या विकट थी. मुंबई शहर का तत्कालीन नाम बम्बई (गोरेगांव )मे श्रीमती मृणाल गोरे और भाईंदर मे श्री पुरुषोत्तम लाल चतुर्वेदी. एक ” पानी वाली बाई ” के नामसे प्रसिद्ध तो दूसरा “पानी वाली दाढ़ी ” के नाम से मुंबई, भाईंदर और ठाणे मे प्रसिद्ध था.

उस वक्त भाईंदर मे समस्या का समंदर था, नयी नयी नगर पालिका. नया नया पत्र. तब 12 जून 1985 मे नगर पालिका की स्थापना हो चुकी थी. मगर बढ़ती हुई नयी आबादी की वजह स्थानीय प्रशासन परेशान था.

पानी की किल्लत , कच्चे खाबड़ खूबड़ रास्ते , गटर का नामो निशान नहीं. शहर मे सरकारी स्कूलो की दुर्दशा , महानगर मुंबई टेलीफोन के लिये 14 साल तक प्रतीक्षा करो. शहर मे अच्छे उद्यान की कमी , क्रीड़ांगण , अस्पताल , स्कूल, कॉलेज , बस , स्ट्रीट लाइट , सबवे , उड़ान पुल, एवं स्वछता गृह की समस्या से जनता त्रस्त थी.

भाईंदर भूमि ने इन सभी समस्याओं को निर्भीकता से उजागर किया. प्रशासन वरिष्ठों के साथ पत्र व्यवहार किया. और ये सब करने के लिये अपना चांदी का व्यापार को बंद कर दीया और लग गये फूल टाइम भाईंदर विकास के लिये तपस्चर्या करने. पानी समस्या के लिये प्रण तो ले लीया मगर उस समय सोचा नहीं था की यह लड़ाई प्रभु श्री राम जी के वनवास की तरह 14 साल लंबी तक चलने वाली है…!.

समय गुजरते गया. दरम्यान विकास कार्यों मे तेजी आयी. एक के बाद एक समस्या का समाधान होने लगा, लोग मिशन मे जुड़ते गये. देखते ही देखते 10 साल गुजर गये. अब भाईंदर वासी श्री पुरषोत्तम लाल चतुर्वेदी जी को सम्मान के साथ” गुरूजी ” नाम से पुकारने लगे. कुछ कड़वी, कुछ मीठी बातें , प्रधान संपादक श्री गुरूजी के साथ घटती रही. पत्र को कुचलनेकी कोशिश की गयी. कुछ राज नेता नया अख़बार निकाल कर उसे फ्री मे बाटने लगे. फिर भी यहांकी सुज्ञ जनता सिर्फ भाईंदर भूमि को खरीदकर पढ़ती रही !.

संपादक के उपर जानलेवा हमला हुआ. झूठे मुकदमे करके कलम की ताकत को कुचलनेकी कोशिश की गयी. एक एक पैसे के लिये मोहताज बना दीया. यहां घर पर प्रपंच परेशान. कई लोग दोस्त बने तो कई दोस्त दुश्मन बने.

कई दोस्तों की बढ़ोतरी हुई तो कई जलसी ने अफवाह फैला कर पत्र को बंद करने की कोशिश की. फ़िरभी संपादक महोदय अपने मिशन मे अटल रहे. अकेला चलते रहे.

पत्र ने दस साल पुरे किये. इस खुशी मे ” भाईंदर भूमि ” पत्र ने दशक पूर्ति विशेषांक निकालने का निर्णय लीया. आगेकी कहानी कल प्रस्तुत करुंगा.

——=== शिवसर्जन ===——

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