पुराने भाईंदर गांव की बीती हुई यादे| Part-XXXVII -मिरा भाईंदर का ” माछी समाज ” और दमण पर भारतोय सेना का विजय.

मिरा भाईंदर क्षेत्र की बात करे तो,” दूध मे सक्कर की तरह मिल गये है, मिटना माछी समाज. ये समाज करीब 200 साल से मिरा भाईंदर मे वास्तव्य कर रहा है.

ये माछी समाज ब्रिटिश काल से आजका केंद्र शासित प्रदेश ” दमण ” के वरकुंड गांव के मूल निवासी है.आजादी के बाद भी दीव , दमण , सिलवासा गोवा, दादरा और नगर हवेली पुर्तगाल के हकूमत तले थे.यहां पर संक्षिप्त मे उल्लेख करना चाहूंगा कि, श्री डॉ राजेंद्र प्रसाद और तत्कालीन पंतप्रधान श्री जवाहर लाल नेहरू जी के नेतृत्व में भारतीय सेनाने ” ऑपरेशन विजय ” के तहत पुर्तगाल पर लड़ाई करनेका बीड़ा उठाया था.

प्लान के मुताबित पश्चिम अरबी समुद्र से अवं पूर्व , उत्तर , दक्षिण से जमीन मार्ग अवं हवाई मार्ग से दमण पर आक्रमण करनेका व्यूह बनाया. उस वक्त भारत के पास कुल 45000 सैनिक थे जबकि पुर्तगाल के पास सिर्फ 3995 सैनिक थे.

18 – 19 दिसम्बर 1961 के दिन हल्ला बोल दिया. लगातार 36 घंटे तक आमने सामने गोलीबारी हुई. दूसरी तरफ भारतीय एयर क्राफ्ट ने हवाई हमला चालु किया. भारतीय सेना के 22 सैनिक शहीद हुए जबकि पुर्तगाल के 30 सैन्य की जान गई अवं उनके 57 सैनिक घायल हुए थे.

आखिर कार भारतीय सेना का ऑपरेशन विजय सफल हुआ और पुर्तगाल की 451 साल पुरानी हकूमत का अंत आया. इसी दौरान भारतीय सेना ने गोवा पर भी कब्ज़ा किया. तत्कालीन पंत प्रधान राजीव गांधी के कार्यकाल में 30 मई 1987 के दिन गोवा को स्वतंत्र राज्य का दरज्जा दे दिया और गण राज्य मे समावेश कर लिया गया.

दमण की लड़ाई के समय भारतीय हवाई दल ने जो बमबारी की उसमे अनेक सरकारी दस्तावेज जल कर खाक हो गये थे. उससे माछी समाज के लोगोंको भयंकर नुकसान सहन करना पड़ा था.

मिटना माछी समाज की उत्पत्ति का कही इतिहास नहीं है मगर गहन संशोधन के बाद पता चला है की ये समाज वड़ोदरा के राजा श्री शहाजीराव गायकवाड़ के राज्य के क्षत्रिय लड़ाकू थे. तब श्री शहाजीराव गायकवाड़ की हकूमत उमरगांव गुजरात से लेकर कच्छ सीमा तक फैली हुई थी.

खुद राजा शहाजीराव गायकवाड़ ने इस बात की पुष्टि करते हुए बताया था की आप लोग मेरी रैयत हो. मान सम्मान के साथ वापिस आ जावो, हम आपको स्वीकार करेंगे.

ये घटना तब घटी थी जब दमण गांव वरकुंड के निवासी श्री सिंगलिया, और श्री बाबरिया जी नामके दो मच्छीमार, राजा गायकवाड़ जी के दरबार मे पहुंच गये तब पता चली थी.

बताया जाता है की एक लड़ाई के बाद हार होनेसे शत्रु से बचकर कुछ परिवारों ने दमण स्थित वरकुंड गांव मे आश्रय लिया था. ये समाज शाकाहारी था, मगर छुपे वेश मे रहने के कारण देश वैसा वेश के तहत आजीविका के लिये मच्छी पकड़ने लगा और मिटना माछी के नाम से लोग पहचान ने लगे. वहासे बस्ती बढ़ते ही इन लोगों ने खारीवाड, बावरी, हिजरत पुर, कालय, कादविया, फनसा, परगाम, घोलवड, वसई, तथा भायंदर गावों मे स्थलांतर किया था.

कुछ लोग इस समाज को क्षत्रिय राजपूत समाज भी मानते है और कई लोग अपनी जाती को राजपूत दर्शाते है, लिखते है. जो महाराणा प्रताप के वंशज बताते है.

वर्तमान इस समाज की बस्ती करीब 25000 की मानी जाती है. जो मुंबई, महाराष्ट्र, गुजरात, कच्छ सहित लंडन, अमेरिका और अरब कंट्री मे काम की तलाश मे वहां जाकर वास्तव्य कर रहे है. आज इनके बच्चे पढ़ लिख कर स्तानक डिग्री धारी वकील, डॉक्टर, कंप्यूटर एक्सपर्ट, कवि, लेखक और पत्रकार, बिज़नेस मेन बनकर समाज की मुख्य धारा मे रहकर देश के विकास मे अपना कर्तव्य निभा रहे है.

ब्रिटिश काल मे ये समाज के लोग अफ्रीका, नमक की खेती करने जाते थे. जो सालमे एक बार वतन भारत मे लौटते थे. इन लोगो का मुख्य व्यवसाय मच्छीमारी का रहा, जो जहां रहा उस गांवकी खाड़ी या समुद्र मे मच्छी पकड़ते थे. तो कुछ लोग नमक आगर मे काम करते थे.

भाईंदर मे यह समाज भाईंदर पूर्व खरीगांव, पश्चिम मे जय अम्बे नगर, देवल आगर, नहेरु नगर. मूर्धा खाड़ी, राई डोंगरी शिवनेरी नगर से मोरवा भाठी आगर स्थित झोपड़पट्टी एवं शहर के विभिन्न फ्लैटों मे वास्तव्य करते है.

इनके पास सक्षम नेतृत्व की कमी होनेके के कारण ये लोग अनेक सरकारी सुविधाओंसे वंचित है. भाईंदर मे रहने वाले अधिकांश युवा वर्ग चश्मा फ्रेम की कंपनी चलाते थे, मगर चश्मा लाइन मे मंदी आनेसे कई लोग बेकार हो गये है.

भाईंदर जब रेल सुविधा से जुडा नहीं था तब ये लोग अपने वतन दमण से भाईंदर तक पैदल चलकर आते थे. तब उनको आनेमे तीन दिन लगता था.

आजादी से पहले मिटना माछी समाज के कुछ लोग मुंबई की मर्चेंट नेवी मे काम करते थे. जो सालमे एक बार अपने वतन जाते थे. उनको पुर्तगाल सैन्य से बचकर छुपके बचाते मुंबई आना पड़ता था.

आज भी कई लोग भाईंदर कि झोपड़पट्टी मे बस रहा, मिटना माछी समाज असंगठित, सक्षम नेतृत्व के बिगर बीना सुकान की नाव की तरह इधर उधर भटक रहा है,और अनेक सरकारी सुविधा से वंचित है.

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