मिरा भाईंदर नगर पालिका की स्थापना ता : 12 जून 1985 के दिन हो चुकी थी. प्रथम प्रशासक के रूपमें श्री दिगंबर भानू की नियुक्ति हुई थी. साथमे मुख्याधिकारी के रूपमें श्री एस डी शिंदे साहब ने कारोबार संभाला था. श्री भानू के बाद श्री ओ बी भगत की नियुक्ति हुई हुई थी. नयी नगर परिषद , असंगठित लोग, समस्या का समुंदर. ना गटर, ना स्ट्रीट लाइट, कच्चे रोड, फंड का अभाव तो दूसरी ओर मेन पावर की कमी.
जनता त्रस्त. प्रशासन परेशान. नगर पालिका की स्थापना से पहले ता : 5 फरवरी 1985 कों श्री पुरुषोत्तम लाल चतुर्वेदी ऊर्फ गुरूजी और श्री गौतम जैन के नेतृत्व मे रेल भीड़ से परेशान त्रस्त आम जनता ने रेल रोको आंदोलन किया. पश्चिम रेल्वे के इतिहास मे पहली बार राजधानी कों भाईंदर स्टेशन पर रोक दिया गया. जिसकी न्यूज़ बी बी सी पर आते ही भाईंदर शहर विश्व स्तर पर प्रसिद्ध हो गया.
विगत दो सालसे श्री चतुर्वेदी जी शासन के उच्च अधिकारी को यहांकी जन समस्या को भाईंदर डेवलोपमेन्ट आर्गेनाइजेशन संस्था द्वारा लिखकर भेज रहे थे. जब सुनवाई नहीं हुई तो उन्होंने यहां एक साप्ताहिक समाचार पत्र को प्रकाशित करना उचित समजा.
ता : 1 जनवरी 1985 के दिन भाईंदर से भाईंदर भूमि पत्र का शुभारंभ हुआ.
उनका उदेश्य क्या था ?
मुजे लिखनेकी जरुरत नहीं. आप खुद उनकी लिखी हुई प्रथम संपादकिय से उनकी इच्छा का अनुमान लगा सकते हो. प्रस्तुत है संपादकी……
1 जनवरी 1986 को “भाईंदर भूमि”
प्रथम अंक मे प्रकाशित संपादकी.
” प्रवेशांक “
श्री गणेशांक एक नवजात शिशु की भांति आपके कर कमलों मे अठखेलिया कर रहा है. यद्यपि पत्र के नाम से ही इसके क्रीड़ा क्षेत्र का स्पस्टीकरण होता है. परंतु हमारा प्रयास लेखकों एवं पाठकों के सहयोग से रोचक सामग्री के प्रस्तुतीकरण द्वारा इसे लोकप्रिय बनाने का होगा.
इस पत्र के जन्म की कहानी भाईंदर भूमि की विरह वेदना से प्रारंभ होकर, शोषण, उत्पीड़न एवं भ्रष्ट प्रशासन की दूषित दुर्गंध को संजोये, पानी के एक एक बूंद को तरसते – सूखे गले मे दबी हुई आवाज को बहरे अधिकारीयों के कानो तक ध्वनित करने के लिए, सड़क के सीने पर बने हुए गढ़डो के घाव, मच्छर उत्पादक गंदगी के ढेर एवं लोकल गाड़ियों मे मुर्गी की भांति ठुसी हुई जनता का दृश्यावलोकन जन्मांध सरकार को कराने के परम लक्ष्य तक पंहुचाती है.
स्थानीय, राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय विचारको, साहित्यकारों एवं उत्साही युवा लेखक – लेखिकाओं को प्रकाश मे लाने एवं सच्चे समाज सेवकों को संगठित और प्रोत्साहित करने तथा आम जनता कों, निष्पक्ष लेखनी से क्षेत्रीय साप्ताहिक गतिविधियों की स्पष्ट जानकारी देने के साथ – साथ जनसमस्यायो पर पूर्ण प्रकाश डालने एवं जनमत की आवाज कों प्रकाश मे लाने का उदेश्य है.
यद्यपि पत्रकारिता जगत के इतिहास कों पलट कर देखे तो स्थानीय लघुपत्रों की हजारों लाशें आर्थिक कैंसर के प्रकोप का शिकार हो चुकी है. परंतु फिर भी किसी शहर के विकास मे स्थानीय समाचार पत्र की मुख्य भूमिका होती है. इस बात को नकारा नहीं जा सकता.
भाईंदर की भूमि का स्वरूप पिछले एक दशक मे ही तीव्रगति से विकशित हुआ. भूमिपतियों एवं भवन निर्माताओं ने, सभी सुविधाओं के लुभावने आश्वासन युक्त विज्ञापनो से मध्यम वर्गीय जनता कों आकर्षित किया तो बैंक एवं अन्य वित्तीय संस्थाओंने उदारनीति से ऋण देकर उन्हें प्रोत्साहित किया. अतः सेकड़ो चार मंजलि भवन बन गये और बस गये. नये शहर मे सब कुछ नया है, लाखोंकी आबादी, जनता असुविधाओके चक्रव्यूह मे छटपटा रही है. क्योंकि वह अजनबी, एकांकी और असंतुस्ट एवं असहाय है.
सभास्थल, पार्क एवं मनोरंजन स्थल न होनेसे वैचारिक केंद्रिकारण असंभव है. नेतृत्व प्रतिभाए सिमती हुई है. कोई मंत्री, सांसद अथवा विधायक यहांसे लोकल गाडी का “डेली पैसेंजर ” तो है नहीं अतः सरकार कों यहांकी वास्तविकता की जानकारी कैसे हो ?
भाईंदर भूमि जहां एक और नागरिकों मे चेतना जागृत करना चाहता है वही दूसरी और सरकार के सामने जन समस्याओको स्पष्ट करना चाहता है. संबंधित अधिकारीयों से संपर्क करके विकासात्मक योजनओके पारुप, क्रियान्वयन, समय एवं सफलता की जानकारी आम जनता कों देना चाहते है.
इस प्रयत्न की सफलता, भाईंदर से जुड़े उन सभी विकासशील नागरिकों पर निर्भर है, जिनके दिलोमे यहाके विकास कों देखनेकी एक टिस उठी है. आपके प्रेम से यह पत्र पल्लवित होगा, आप अपना सहयोग तन, धन , मन और मस्तिक द्वारा, लेख और रचनाओ द्वारा समाचार सूत्र तथा सूचनाओ द्वारा एवं सुझाव व आलोचनाओ द्वारा करते रहे, हम यहीं आशा करते है.
* संपादक *
——=== शिवसर्जन ===——