“पूर्वोत्तर के शिवाजी” लचित बोरफुकन.

” लचित बोरफुकन.”

नाम सुनकर अचंबित हो गए ना ? क्यो ना हो ! नाम ही कुछ ऐसा है, जिसे हम लोगोमे से कम लोग जानते है. यहीं वह शूरवीर है, जिन्होंने कई बार मुगलों को युद्ध में हराया था. उनको पूर्वोत्तर का शिवाजी भी कहा जाता है.

हर साल ता : 24 नवंबर के दिन लचित दिन मनाया जाता है. मुगलों को हराने वाले लचित बोरफुकन के पराक्रम और सराईघाट की लड़ाई में असमिया सेना की विजय की याद में हर साल असम में 24 नवंबर को लचित दिवस मनाया जाता है. लचित बोरफुकन के नाम पर नेशनल डिफेंस एकेडमी में बेस्ट कैडेट गोल्ड मेडल भी दिया जाता है, जिसे लचित मेडल भी कहते है.

सन 2022 में लचित बोरफुकन की 400वीं जयंती मोदी सरकारने बड़े जोर शोर से मनाई. लचित बोरफुकन का जन्म ता : 24 नवंबर 1622 के दिन हुआ था. वें अहोम साम्राज्य की शाही सेना के प्रसिद्ध सेनापति थे. जिन्होंने मुगलों को हराकर औरंगजेब के अधीन मुगलों की रफ्तार को सफलतापूर्वक रोक दिया था.

” भारतीय जनता पार्टी ” ने सन

2022 उनकी जयंती को उत्साह के साथ मनाया था. उस आयोजनमें प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृहमंत्री श्री अमित शाह, वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण, कानून मंत्री किरेन रिजिजू जैसे कई दिग्गज पहुंचे थे.इसके अलावा असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने उनके सम्मान में थीम सॉन्ग रिलीज किया था.

लचित ने मुगलों को गुवाहाटी से बाहर किया था. उन्होंने मुगलों को कई बार धूल चटाई थी और हमेशा युद्ध में हराया था. लचित ने मुगलों के कब्जे से गुवाहाटी को छुड़ा कर उसपर फिर से अपना कब्जा कर लिया था और मुगलों को गुवाहाटी से बाहर धकेल दिया था.

इसी गुवाहाटी को फिर से पाने के चक्कर में मुगलों ने अहोम साम्राज्य के खिलाफ सराईघाट की लड़ाई लड़ी थी. इस युद्ध में मुगल सेना 1,000 से भी अधिक तोपों के अलावा बड़े स्तर पर नौकाओं का प्रयोग किया था, लेकिन फिर भी लचित की रणनीति के आगे उनकी एक नहीं चली थी.

उन्होंने श्री शिवाजी की तरह मुगलों की कई बार रणनीति फेल की थी और युद्ध के मैदान में हराया था गुवाहाटी पर मुगलों का कब्जा होने के बाद लचित ने शिवाजी की तरह ही उनको बाहर भी निकाल दिया था. इसीलिए तो कई लोग उन्हें पूर्वोत्तर के श्री शिवाजी के नाम से जानते है.

इतिहास क्या कहता है :

अहोम के राजाओं ने 13वीं सदी से लेकर 19वीं सदी की शुरुआत तक करीब 600 साल तक जिस क्षेत्र पर राज किया उसे असम कहा जाता है. यह साम्राज्य ब्रह्मपुत्र घाटी के ऊपरी और निचले हिस्सों तक फैला हुआ था. मुख्य रूप से यहां चावल की खेती होती थी. सन 1615-1682 के बीच अहोम और मुगल के बीच विवाद चलता रहा.

इसकी शुरुआत जहांगीर के शासन से हुई जो क्रूर औरंगजेब के काल तक चलती रही. इन्हीं में एक जंग जनवरी 1662 में हुई, जब मुगलों ने आंशिक जीत हासिल की व अहोम की राजधानी गढ़वाल पर कुछ समय के लिए और असम के कुछ हिस्सों पर भी नियंत्रण हासिल कर लिया. फिर अहोम क्षेत्रों को दोबारा हासिल करने के लिए राजा श्री स्वर्गदेव चक्रध्वज सिंह के राज में एक अभियान शुरू हुआ.

उस दौरान अहोम साम्राज्य को कुछ शुरुआती जीत मिलीं, लेकिन बाद में औरंगजेब ने 1669 में जयपुर के राजा श्री राम सिंह प्रथम को हारा हुआ क्षेत्र दोबारा हासिल करनेके लिए भेजा गया. इसका नतीजा हुआ सन 1671 की सरायघाट की जंग.

प्रधानमंत्री कार्यालय के अनुसार, लचित बोरफुकन (24 नवंबर, 1622 से 25 अप्रैल, 1672) अहोम साम्राज्य की शाही सेना के प्रसिद्ध सेनापति थे, जिन्होंने मुगलों को हराकर औरंगजेब के अधीन मुगलों की लगातार बढ़ती महत्वाकांक्षाओं को सफलतापूर्वक रोक दिया था. लचित बोरफुकन ने 1671 में लड़ी गई सरायघाट की भीषण लड़ाई में असमिया सैनिकों को प्रेरित किया और मुगलों को एक करारी अपमानजनक हार स्वीकार करने को बाध्य किया. लचित बोरफुकन और उनकी सेना की वीरतापूर्ण लड़ाई हमारे देश के इतिहास में प्रतिरोध की सबसे प्रेरक – शौर्य सैन्य उपलब्धियों में से एक है.

राजा चक्रध्वज सिंह की तरफ से चुने गए पांच सेनापति ओ में से एक लचित थे. वह अहोम साम्राज्य के बेहतरीन वीर सेनापति थे, जो बह्मपुत्र घाटी और आसपास के पहाड़ों को अच्छी तरह से जानते थे. राजा ने उन्हें प्रशासनिक, न्यायिक और सैन्य जिम्मेदारियां दी थीं.

खास बात है कि बड़ी सेना के साथ खुले मैदानमें युद्ध के विपरीत सेनापति गुरिल्ला तरीके से लड़ते हैं. इससे उनकी छोटी सी टुकड़ी को भी रण में बड़ा फायदा होता है. यहां भी वही हुआ और लचित ने मुगलों के बड़े कैंप्स पर नुकसान पहुंचाया. उनके हमले में कई मुगल सैनिक मारे गए और बड़ी सेनाएं निराश होती गईं.

बाद में अहोम राजा की तरफ से सेनापति ओ को सामने से हमला करने के आदेश दिए गए. नतीजा यह हुआ कि करीब 10 हजार अहोम योद्धा मारे गए. जब मुगलों ने घाटी की ओर रफ्तार बढ़ाई, तो उन्हें नदी का रास्ते को चुना. अब लचित पानी में भी उसी क्षमता के साथ लड़ सकते थे. उन्होंने हमलों का एक जाल तैयार किया. इतिहासकार बताते हैं कि अहोम बलों ने सामने से हमले के साथ पीछे से भी अचानक हमले की योजना तैयार की.

उन्होंने आगे कुछ जहाजों पर हमले का नाटक किया और मुगल टुकड़ी को आगे बढ़ने का लालच दिया. इससे मुगलों ने अपने पीछे के पानी के इलाके को खाली कर दिया और यहीं से अहोम की सेना ने हमला किया और फिर जीत हासिल कर ली. सरायघाट के युद्ध के करीब एक साल बाद ही लचित बोरफुकन का बीमारी के चलते 25 अप्रेल 1672 के दिन निधन हो गया.

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