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विश्व के अनेक धर्मो के ईश्वर ने अपने आप को ईश्वर का संदेश वाहक कहां हैँ , मगर एक मात्र श्री कृष्ण ऐसे प्रभु हैँ , जिन्होंने बार बार यह कहां कि मैं स्वयं ईश्वर हूं.
भगवान श्री कृष्ण के पहले गुरु सांदीपनी ऋषि थे. उनका आश्रम अवंतिका (उज्जैन) में था. गुरू सांदीपनि ने भगवान श्री कृष्ण, बलराम और सुदामा को वेद और योग की शिक्षा और दीक्षा के साथ ही 64 कलाओ की शिक्षा दी थी.
घोर अंगिरस भी श्री कृष्ण के गुरू थे. कहा जाता है कि घोर अंगिरस ने श्री कृष्ण को जो उपदेश दिया था वही उपदेश श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कुरुक्षेत्र में दिया था जो गीता के नाम से प्रसिद्ध हुआ. छांदोग्य उपनिषद में उल्लेख मिलता है कि देवकी पुत्र कृष्ण घोर अंगिरस के शिष्य थे.
भगवान श्री कृष्ण ने जैन धर्म में 22 वें तीर्थंकर नेमीनाथ जी से भी ज्ञान ग्रहण किया था. नेमिनाथ का उल्लेख हिंदू और जैन पुराणों में स्पष्ट रूप से मिलता है. शौरपुरी (मथुरा) के यादववंशी राजा अंधकवृष्णी के ज्येष्ठ पुत्र समुद्रविजय के पुत्र थे नेमिनाथ. अंधकवृष्णी के सबसे छोटे पुत्र वासुदेव से उत्पन्न हुए भगवान श्रीकृष्ण, इस प्रकार नेमिनाथ और श्रीकृष्ण दोनों चचेरे भाई थे.
भगवान विष्णु के दसवे अवतारों में से श्री कृष्ण आठवें अवतार थे, जबकि 24 अवतारों में उनका नंबर 22 वां था. श्री कृष्ण को अपने अगले पिछले सभी जन्मों की याद थी
सभी अवतारों में उन्हें पूर्णावतार माना जाता है.
यह भी कहा जाता है कि श्री कृष्ण ने महर्षि वेद व्यास से बहुत कुछ सिखा था. पांडु, धृतराष्ट्र और विदुर को वेद व्यास का ही पुत्र माना जाता है. वेद व्यास ही महाभारत के रचनाकार हैं और वे कई तरह की दिव्य शक्तिों से सम्पन्न माना जाता था.
भगवान श्री कृष्ण सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर थे ओर वे द्वंद्व युद्ध में माहिर थे. उनके पास कई अस्त्र और शस्त्र थे. उनके धनुष का नाम ‘सारंग’ था. उनके खड्ग का नाम ‘नंदक’, गदा का नाम ‘कौमौदकी’ और शंख का नाम ‘पांचजञ्य’ था, जो गुलाबी रंग का था. श्रीकृष्ण के पास जो रथ था उसका नाम ‘जैत्र’ दूसरे का नाम ‘गरुढ़ध्वज’ था. उनके सारथी का नाम दारुक था और उनके अश्वों का नाम शैव्य, सुग्रीव, मेघपुष्प और बलाहक था.
पितामह भीष्म, आचार्य द्रोण और अंगराज कर्ण तीनों ही परशुराम के शिष्य थे. श्री कृष्ण के पास कई प्रकार के दिव्यास्त्र थे. कहते हैं कि भगवान परशुराम ने उनको सुदर्शन चक्र प्रदान किया था, तो दूसरी ओर वे पाशुपतास्त्र चलाना भी जानते थे.पाशुपतास्त्र शिव के बाद श्री कृष्ण और अर्जुन के पास ही था. इसके अलावा उनके पास प्रस्वपास्त्र भी था, जो शिव, वसुगण, भीष्म के पास ही था. इसके अलावा उनके पास खुद की नारायणी सेना और नारायण अस्त्र भी था.
आपको जानकर आश्चर्य होगा की भगवान श्री कृष्ण के परमधाम गमन के समय ना तो उनका एक भी केश श्वेत था और ना ही उनके शरीर पर कोई झुर्री थीं. भगवान श्रीकृष्ण की परदादी मारिषा और सौतेली मां रोहिणी (बलराम की मां) नाग जनजाति की थीं.
भगवान श्रीकृष्ण की प्रेमिका राधा का वर्णन महाभारत, हरिवंशपुराण, विष्णुपुराण और भागवतपुराण में नहीं है. उनका उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण, गीत गोविंद और प्रचलित जनश्रुतियों में रहा है. भगवान श्रीकृष्ण से जेल में बदली गई यशोदापुत्री का नाम एकानंशा था, जो आज विंध्यवासिनी देवी के नाम से पूजी जातीं हैं.
भगवान श्री कृष्ण के जीवन का सबसे भयानक द्वंद्व युद्ध सुभद्रा की प्रतिज्ञा के कारण अर्जुन के साथ हुआ था, जिसमें दोनों ने अपने अपने सबसे विनाशक शस्त्र क्रमशः सुदर्शन चक्र और पाशुपतास्त्र निकाल लिए थे. लेकिन बाद में देवताओं के हस्तक्षेप से दोनों शांत हुए थे.
भगवान श्रीकृष्ण की त्वचा का रंग मेघश्यामल था और उनके शरीर से एक मादक गंध निकलती थी.भगवान श्री कृष्ण ने सिर्फ राधा से ही प्रेम किया था. लेकिन फिर भी महाभारत, पुराणों या भागवत कहीं भी राधा का जिक्र नहीं है. राधा बरसाना की रहने वाली थीं, ऐसा कहानियों में वर्णित है लेकिन नंदगोपाल की यह सखि उनकी हमजोली नहीं बल्कि उम्र में उनसे बड़ी थीं.
भगवान् श्री कृष्ण अंतिम वर्षों को छोड़कर कभी भी द्वारिका में 6 महीने से अधिक नहीं रहे. प्रचलित अनुश्रुतियों के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण ने मार्शल आर्ट का विकास ब्रज क्षेत्र के वनों में किया था. डांडिया रास का आरंभ भी श्री कृष्ण ने किया था.
जहां कर्ण व अर्जुन दोंनों असफल हो गए और तब श्री कॄष्ण ने लक्ष्यवेध कर लक्ष्मणा की इच्छा पूरी की, जो पहले से ही उन्हें अपना पति मान चुकीं थीं.
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