जैन धर्म अपनी मंदिर की विशेषता के लिए भारत और विश्व भर में प्रसिद्ध है. आज मुजे बात करनी है राजस्थान के प्रसिद्ध “रणकपुर जैन मंदिर” की जो उदयपुर से 96 किलोमीटर की दूरी पर पाली जिले के सादड़ी में स्थित है.
रणकपुर जैन मंदिर जोधपुर और उदयपुर के बीच में अरावली पर्वत की घाटियों मैं विध्यमान है. उसे देखकर दर्शकों के मनमे प्रश्न उठता है, कि इसे हम मंदिर कहे या फिर महल कहे ?
रणकपुर जैन मंदिर अपनी विशाल आकृति, वास्तुकला और सुंदरता के लिए विश्व में विख्यात है. यह जैन धर्म के पांच प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक है.
जो जैन तीर्थंकर आदिनाथ जी को समर्पित है. चारों तरफ नयनरम्य जंगलों से घिरा यह मंदिर अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के लिए भी जाना जाता है..
यहां आनेवाला हर कोई दर्शक इसकी कलाकृति देखकर महल की अनुभूति करता है.
यह जैन मंदिर जैन धर्म के पांच प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक है. यह स्थान खूबसूरती से तराशे गए प्राचीन जैन मंदिरों के लिए सुप्रसिद्ध है. इन मंदिरों का निर्माण 15 वीं शताब्दी में राणा कुंभा के शासनकाल में हुआ था. इन्हीं के नाम पर इस जगह का नाम रणकपुर पड़ा है. जैन धर्म के आस्था रखने वालों के साथ-साथ वास्तुशिल्प के दिलचस्पी रखने वालों को भी यह पसंदीदा स्थल है.
रणकपुर जैन मंदिर में 4 प्रवेश द्वारा हैं. मंदिर में जैन तीर्थंकर आदिनाथ की संगमरमर से बनी 4 मूर्तियां हैं, जिनके मुख चारों दिशाओं की ओर हैं. इन सभी मूर्तियों की ऊंचाई 6 फीट है. इस मंदिर को चतुर्मुख मंदिर भी कहा जाता है. इसके अलावा मंदिर चार-चार बड़े-बड़े पूजा स्थल व प्रार्थना कक्ष और 80 छोटे गुम्बद जैसे दिखने वाले स्थान भी है, जो मनुष्य के काल-चक्र की 84 योनियों को दर्शाते हैं.
रणकपुर जैन मंदिर की वास्तुकला की संरचना विशाल है जिसमे चौमुखा मंदिर, अंबा माता मंदिर, पार्श्वनाथ मंदिर और सूर्य मंदिर आदि मंदिर शामिल हैं. आदिनाथ तीर्थ कर को समर्पित चौमुखा मंदिर यहाँ का सबसे आकर्षित मंदिर हैं.
इस मंदिर में 29 हॉल, 1444 खंभे और 80 गुंबद बने हुए हैं. मंदिर के अन्दर नृत्य करती हुई अप्सराओं की नक्काशी देखने लायक हैं.
रणकपुर जैन मंदिर करीबन 600 साल पुराना है. 6 शाताब्दी पहले बना यह मंदिर अपनी राजशाही अंदाज के लिए जाना जाता है, जिसे उस समय बनाने में करीब 99 लाख रुपये का खर्च आया था. राणा कुम्भा के शासनकाल में तैयार हुआ यह जैन मंदिर अपनी रोचक कहानी के लिए भी जाना जाता है.
यह कहा जाता है कि राणा कुम्भा ने मंदिर बनाने के लिए अपनी जमीन को धरनशाह को दे दी थी और साथ ही एक नगर बसानेका भी प्रस्ताव रखा था. इस भव्य मंदिर के रखरखाव के लिए साल 1953 में इसकी देखरेख की जिम्मेदारी एक ट्रस्ट को दे दी गई थी, जिसके बाद इसकी सुंदरता को एक आयाम मिला. आज यह महल जैसा दिखने वाला मंदिर पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है.
रणकपुर जैन मंदिर का प्रवेश शुल्क :
रणकपुर जैन मंदिर बाकी मंदिरों से थोड़ा अलग है. इसमें प्रवेश करने के लिए भारतीयों के लिए कोई प्रवेश शुल्क नहीं है लेकिन विदेशियों के लिए यहां 200 रुपये का प्रवेश शुल्क वसूला जाता है.
रणकपुर जैन मंदिर का समय :
दोपहर 12:00 बजे से लेकर शाम को 5:00 बजे तक है.
रणकपुर मंदिर जानेका सही समय :
प्राकृतिक जंगलों से घिरे इस मंदिर में जाने का सही समय जुलाई से सितंबर तक का है. लेकिन आप यहां कभी भी जा सकते हैं. यहां पूरे साल पर्यटकों को देखा जा सकता है, जो मंदिर में दर्शन करने कम और यहां की खूबसूरती और भव्यता देखने अधिक आते हैं. इस जैन मंदिर में फोटोग्राफी की जा सकती है.
रणकपुर जैन मंदिर का खासियत :
*** इस मंदिर में 1444 खंभे (पिलर) हैं, जो इसकी भव्यता को दिखाते हैं.
*** इन खंभों की डिजाइन इस तरह से की गई है कि कहीं से भी देखने पर मुख्य पूजा स्थल को देखने में बाधा नहीं पहुंचती है.
*** मंदिर की छत पर भी बेहतरीन नक्काशी की गई है, जो पर्यटकों को खूब आकर्षित करती है.
*** सभी खंभों पर अलग-अलग तरह नक्काशी बनाई गई है, जिसे दर्शक देखना पसंद करते है.
*** इसे कई दर्शक खंभों वाला मंदिर भी कहते हैं.
रणकपुर जैन मंदिर कैसे पहुंचें ? :
वहां तक रोड से कैसे पहुचे :
रणकपुर के निकट एक बड़ा शहर उदयपुर है , जो देश के प्रमुख नगरों से सड़क मार्ग से जुड़ा है यहां से प्राइवेट टैक्सी और बस सेवा उपलब्ध है.
ट्रेन द्वारा कैसे पहुचे :
रणकपुर जाने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन भी उदयपुर ( 92 की मी ) है, जो लगभग सभी नगरों से जुडा है.
हवाईमार्ग द्वारा कैसे पहुचे :
हवाई यात्रा करने वालों के लिए उदयपुर रणकपुर का निकटतम हवाई अड्डा है जहां से दिल्ली, मुंबई के लिए नियमित उड़ाने है. उदयपुर रणकपुर से 106 की.मी. की दुरी पर है. (समाप्त)