प्राचीन वैज्ञानिक अगस्त्य ऋषि| Ancient scientist Agastya Rishi

Untitled design

भारतीय विज्ञानिको का नाम आते ही हमें श्री आर्यभट , श्री होमी जहांगीर भाभा. श्री प्रफुल चंद्र राय, श्री जगदीश चंद्र बसु ,श्री सलीम अली,श्री चंद्रशेखर वैंकट रामन , श्री निवास रामानुजन, श्री साराभाई, श्री अब्दुल कलाम आदि के नाम नजर के सामने आते है. 

      मगर आजसे करीब 5000 साल यानी ईसा पूर्व 3000 साल पहले श्री अगस्त्य नामक महान वैदिक भारतीय वैज्ञानिक ऋषि हो गये, जिसने अपनी नित नयी शोधो से जगत को अचंबित कर दीया था. वैसे श्री अगस्त्य ऋषि महर्षि अगस्त्य ऋषि के नामसे पुराणों मे प्रसिद्ध है. 

      अगस्त्य ॠषि वशिष्ठ मुनि के बड़े भाई थे. इनका जन्म ईसा पूर्व 3000 मे काशी में हुआ था. वर्तमान में वह स्थान अगस्त्यकुंड के नाम से प्रसिद्ध है. 

        अगस्त्य ऋषि की पत्नी लोपा मुद्रा विदर्भ देश की राजकुमारी थी. श्री अगस्त्य ऋषि राजा दसरथ के राजगुरु थे. उनको सप्तर्षियों में से एक माना जाता है. देवताओं के अनुरोध पर वह काशी छोड़कर दक्षिण की यात्रा पर गये और बाद में वहीं बस गये थे. 

           श्री अगस्त्य ऋषि विज्ञान मे कुछ अधिक रूचि लेते थे. उस समय वो विश्व का महान वैज्ञानिक था. ऋषि श्री अगस्त्य ने , ” अगस्त्य संहिता ” नामक ग्रंथ की रचना की थी . इस ग्रंथ की प्राचीनता पर भी शोध हुए हैं और इसे सही पाया गया है. सबसे बड़ी आश्चर्य जनक बात ये है की अगस्त्य संहिता ग्रंथ मे विद्युत – बिजली उत्पादन से संबंधित सूत्र मिलते हैं. 

     वैज्ञानिक ऋषियों के क्रम में महर्षि अगस्त्य भी एक वैदिक ऋषि थे. वैसे देखा जाय तो बिजली का आविष्कार माइकल फैराडे ने किया था. बल्ब का अविष्कारक थॉमस एडिसन ने किया था. मगर महर्षि अगस्त्य ने उनके जीवन काल मे कई आविष्कार का मार्ग खुला कर दीया था. 

         महर्षि ऋषि श्री अगस्त्य ने कई मंत्रो को आत्मसात किया था. इतना ही नहीं उन्होंने ऋग्वेद के प्रथम मंडल के 165 सूक्त से 191 तक के सूक्तों को बताया था. साथ ही साथ इनके पुत्र श्री दृढ़च्युत तथा श्री दृढ़च्युत के बेटा श्री इध्मवाह भी नवम मंडल के 25 वें तथा 26 वें सूक्त के द्रष्टा ऋषि होनेका बताया जाता हैं.

      महर्षि ऋषि अगस्त्य ने ” अगस्त्य संहिता ” नामक ग्रंथ की रचना की थी इस ग्रंथ मे विद्युत बिजली उत्पादन से संबंधित सूत्र बताये गये हैं. ग्रंथ के अनुसार…. 

        एक मिट्टी का पात्र लें, उसमें ताम्र पट्टिका (Copper Sheet) डालें तथा शिखिग्रीवा (Copper sulphate) डालें, फिर बीच में गीली काष्ट पांसु (wet saw dust) को लगाएं, ऊपर पारा (mercury‌) तथा दस्त लोष्ट (Zinc) डालें, फिर तारों को मिलाएंगे तो उससे मित्रावरुणशक्ति (Electricity) का उदय होता है. 

          अगस्त्य संहिता में विद्युत का उपयोग इलेक्ट्रोप्लेटिंग (Electroplating) के लिए करने का भी विवरण दीया गया है. उन्होंने बैटरी द्वारा तांबा या सोना या चांदी पर पॉलिश चढ़ाने की विधि निकाली अत: अगस्त्य जी को कुंभोद्भव (Battery Bone) भी कहा जाता हैं. 

        अगस्त्य संहिता मे ये भी बताया गया है की उदानवायु (Hydrogen) को वायु प्रतिबंधक वस्त्र में रोका जाए तो यह विमान विद्या में काम आता है. यानी वस्त्र में हाइड्रोजन पक्का बांध दिया जाए तो उससे आकाश में उड़ा जा सकता है, उस वस्त्र को बनाने की विधि भी अगस्त्य संहिता में विस्तार से बताई गयी है. 

          रेशमी वस्त्र पर अंजीर, कटहल, आंब, अक्ष, कदम्ब, मीराबोलेन वृक्ष के तीन प्रकार ओर दालें इनके रस या सत्व के लेप किए जाते थे. तत्पश्चात सागर तट पर मिलने वाले शंख आदि और शर्करा का घोल यानी द्रव सीरा बनाकर वस्त्र को भिगोया जाता था. फिर उसे सुखाया जाता था फिर इसमें उदानवायु भरकर उड़ा जा सकता है. 

     श्री अगस्त्य ऋषि आध्यात्मिक गुरु उपरांत दुनिया का तत्कालीन एक महान वैज्ञानिक था. जिन्होंने कई आविष्कार संशोधन की नींव डाली थी. 

        महर्षि अगस्त्य को पुलस्त्य ऋषि का बेटा माना जाता है. उनके भाई का नाम विश्रवा था, जो रावण के पिता थे. मतलब रावण के पिता जी का नाम विश्रवा था. पुलस्त्य ऋषि ब्रह्मा के पुत्र थे. महर्षि अगस्त्य ने विदर्भ-नरेश की पुत्री लोपामुद्रा से विवाह किया जो अति विद्वान और वेदज्ञ थीं. दक्षिण भारत में इसे मलयध्वज नाम के पांड्य राजा की पुत्री बताया जाता है.वहां इसका नाम कृष्णेक्षणा है. इनका इध्मवाहन नाम का पुत्र था.

        अगस्त्य के बारे में कहा जाता है कि एक बार इन्होंने अपनी मंत्र शक्ति से समुद्र का समूचा जल पी लिया था, विंध्याचल पर्वत को झुका दिया था और मणिमती नगरी के इल्वल तथा वातापी नामक दुष्ट दैत्यों की शक्ति को नष्ट कर दिया था. अगस्त्य ऋषि के काल में राजा श्रुतर्वा, बृहदस्थ और त्रसदस्यु थे. इन्होंने अगस्त्य के साथ मिलकर दैत्यराज इल्वल को झुकाकर उससे अपने राज्य के लिए धन-संपत्ति मांग ली थी.

    महर्षि अगस्त्य के भारतवर्ष में अनेक आश्रम हैं. इनमें से कुछ मुख्य आश्रम उत्तराखण्ड, महाराष्ट्र तथा तमिलनाडु में हैं. एक उत्तराखण्ड के रुद्रप्रयाग नामक जिले के अगस्त्यमुनि नामक शहर में है. यहाँ महर्षि ने तप किया था तथा आतापी वातापी नामक दो असुरों का वध किया था. मुनि के आश्रम के स्थान पर वर्तमान में एक मन्दिर है.आसपास के अनेक गाँवों में मुनि जी की इष्टदेव के रूप में मान्यता है. मन्दिर में मठाधीश निकटस्थ बेंजी नामक गाँव से होते हैं.

        दूसरा आश्रम महाराष्ट्र के नागपुर जिले में है. यहाँ श्री महर्षि ने रामायण काल में निवास किया था. श्रीराम के गुरु महर्षि वशिष्ठ तथा इनका आश्रम पास ही था. गुरु वशिष्ठ की आज्ञा से श्रीराम ने ऋषियों को सताने वाले असुरों का वध करने का प्रण लिया था. महर्षि अगस्त्य ने श्रीराम को इस कार्य हेतु कभी समाप्त न होने वाले तीरों वाला तरकश प्रदान किया था.

     एक अन्य आश्रम तमिलनाडु के तिरुपति में है. तथा एक आश्रम महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के अकोले में प्रवरा नदी के किनारे है. यहाँ महर्षि ने रामायण काल में निवास किया था. .

महर्षि अगस्त्य कहते हैं , सौ कुंभों की शक्ति का पानी पर प्रयोग करेंगे, तो पानी अपने रूप को बदलकर प्राणवायु (Oxygen) तथा उदान वायु (Hydrogen) में परिवर्तित हो जाएगा. 

       विद्युत तार :आधुनिक नौकाचलन और विद्युत वहन, संदेशवहन आदि के लिए जो अनेक बारीक तारों की बनी मोटी केबल या डोर बनती है वैसी प्राचीन काल में भी बनती थी जिसे रज्जु कहते थे.

    आकाश में उड़ने वाले गर्म गुब्बारे : इसके अलावा अगस्त्य मुनि ने गुब्बारों को आकाश में उड़ाने और विमान को संचालित करने की तकनीक का भी उल्लेख किया है.

         महर्षि अगस्त्य का जन्म वाराणसी में हुआ था. महर्षि अगस्त्य भगवान शिव के अनुयाई थे और काशी विश्वनाथ के मंदिर में पूजा पाठ किया करते थे. इनके जीवन का लक्ष्य धर्म प्रचार करना था. 

         कंबोडिया के शिलालेखों के अनुसार ब्राह्मण अगस्त्य आर्य देश के निवासी थे. वे शिव के भक्त थे, एवं हिंदू धर्म के अनुयाई थे. उनकी अलौकिक शक्ति एवं उनके मुख का तेज देखने योग्य था. बताया जाता है कि उसी के प्रभाव से वे पर देश तक पहुंच सके. कंबोडिया आकर उन्होंने भदेश्वर नामक शिवलिंग की पूजा अर्चना लंबे समय तक की. कंबोडिया में रहते हुए उनकी मृत्यु हो गई थी.   

कुछ विशेष सुर्खियां :

*** ऋग्वेद में लिखा है कि मित्रावरुण ने उर्वशी को देखकर कामपीड़ित होकर वीर्यपात किया जिससे अगस्त्य उत्पन्न हुए. 
*** पुराणों के अनुसार इन्होंने समुद्र को चुल्लू में भरकर पी लिया था जिससे ये समुद्रचुलुक और पीताब्धि कहलाते है . 
*** कई पुराणों मे अगस्त्य ऋषि को पुलस्य का पुत्र भी कहा गया है.
*** ऋग्वेद में ऋषि अगस्त्य की अनेक ऋचाएँ है. 
*** अगस्त्य एक तारा या नक्षत्र का नाम है जो भादों में सिंह के सूर्य के 18 अंश पर उदय होता है. 
*** शिव के एक नाम को भी अगस्त्य कहा गया है. 
*** अगस्त्य ऋषि एक तमिल वैदिक महर्षि थे. 
*** महर्षि अगस्त्य ऋषि राजा दसरथ के राज गुरु थे. उनकी गणना सप्तऋषियों मे की जाती है. 

  —–==== शिवसर्जन ====——

About पत्रकार : सदाशिव माछी -"शिव सर्जन"

View all posts by पत्रकार : सदाशिव माछी -"शिव सर्जन" →