“फतेहपुर सीकरी का बुलंद दरवाजा”

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बुलंद दरवाजा फतेहपुर सीकरी में जामा मस्जिद का मुख्य प्रवेश द्वार है. इसका मुगल साम्राज्य के सबसे महान बादशाह माने जाने वाले सम्राट अकबर ने गुजरात पर अपनी जीत के उपलक्ष्य में ई.सन 1602 में निर्माण किया था. यह भारत के आगरा से 43 किमी की दूरी पर है.

बुलंद दरवाजा विश्व का सबसे बड़ा दरवाजा है. शेख की दरगाह में प्रवेश करने के लिए बुलंद दरवाजे से होकर जाना पड़ता है. ये स्मारक हिन्दू और फारसी स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना भी है.

इस दरवाजे के प्रवेश द्वार के पूर्वी तोरण पर आज भी फारसी भाषा में शिलालेख अंकित हैं, जो सन 1601 में दक्कन पर बादशाह अकबर की विजय अभिलेख से संबंधित हैं. इसके 42 सीढ़ियों के ऊपर स्थित बुलंद दरवाज़ा 53.63 मीटर ऊंचा और 35 मीटर चौड़ा है. यह बुलंद दरवाजा लाल और बफ बलुआ पत्थर से बना है, जिसे सफेद संगमरमर से सजाया गया है.

बुलंद दरवाजे के आगे और स्तंभों पर कुरान की आयतें खुदी हुई हैं. यह दरवाजा एक बड़े आंगन और जामा मस्जिद की ओर खुलता है. सम अष्ट कोणीय आकार वाला यह दरवाजा गुम्बदों और मीनारों से सजा हुआ है.

बुलंद दरवाजे पर बना पारसी शिलालेख अकबर के खुले विचारों को दर्शाता है और इतिहासकारों द्वारा अक्सर ही यह विविध परंपराओं और संस्कृति के उदाहरण के रूप में उपयोग किया जाता है. बुलंद दरवाजे के तोरण पर ईसा मसीह से संबंधित बाइबल की कुछ पंक्तियां भी लिखी गई हैं.

बुलंद दरवाजे पर बाइबल की इन पंक्तियों की उपस्थिति को अकबर को धार्मिक सहिष्णुता का प्रतीक माना जाता है. शांतिपूर्ण दृश्यों का अनुभव करने और दीवारों पर बनी सुंदर कलाओं को देखने के लिए प्रतिदिन सैकड़ों लोग यहां आते हैं.

बुलंद दरवाजे के निर्माण में 12 वर्ष का समय लगा था. जिसके अंदरूनी भाग पर सफेद और काले संगमरमर की नक्काशी की गई है.

बुलंद दरवाजे में लगभग 400 साल पुराने आबनूस से बने विशाल किवाड़ आज भी ज्यों के त्यों लगे हुए हैं. यहां की सर्वोच्च इमारत बुलंद दरवाजा है, जिसकी ऊंचाई भूमि से 280 फुट है.

उल्लेखनीय है कि सन 1571 से सन 1585 तक फतेहपुर सिकरी मुग़ल साम्राज्य की राजधानी थी. इसके बायी ओर जामा मस्जिद है और सामने शेख का मज़ार. मज़ार या समाधि के पास उनके रिश्तेदारों की कब्रें भी मौजूद हैं.

इस दरवाजे का उपयोग प्राचीन काल में फतेहपुर सिकरी के दक्षिण पूर्वी प्रवेश द्वार पर गार्ड खड़ा रखने के लिए किया जाता था. बंदरगाह के पास से गुफाओं के प्रवेश द्वार तक एक मिनी ट्रेन भी चलती है जिसका किराया मात्र 10 रुपये प्रति व्यक्ति है.

बुलंद दरवाजे के पास लंगर खाने में खुदाई के दौरान एक सीढ़ी निकली. इस के बाद जब अंदर तक देखा गया तो एक सुरंग मिली है. ऐसा अनुमान है कि सुरंग का दूसरा सिरा किले के बाहर निकलता होगा.

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा संरक्षित इस इमारत का प्रवेश शुल्क भारतीय लोगों के 50 रुपये और विदेशी पर्यटकों के लिए 485 रुपये प्रति व्यक्ति है. इस के खुलने का समय सुबह 8 बजे और बंद होने का समय शाम 7 बजे है. इसे देखने का सबसे अच्छा समय नवम्बर से मार्च के बीच होता है, क्योकि भारत में तापमान उस समय सामान्य रहता है न तो ज्यादा ठंड होती है और न ही ज्यादा गर्मी पड़ती है.

बुलंद दरवाजे के तोरण पर ईसा मसीह से संबंधित बाइबल की कुछ पंक्तियां लिखी गई हैं. बुलंद दरवाजे पर बाइबल की इन पंक्तियों की उपस्थिति को अकबर को धार्मिक सहिष्णुता का प्रतीक माना जाता है. बुलंद दरवाजे पर बना पारसी शिलालेख अकबर के खुले विचारों को दर्शाता है. यहां देश और दुनिया के कई पर्यटक यह दरवाजा देखने आते है.

सन 1571 में अकबर ने गुजरात को फ़तह किया. इस कारण नई बनी राजधानी का नाम फ़तेहपुर सीकरी रखा गया. सन 1572 से लेकर सन 1585 तक अकबर वहीं रहा. 1584 तक करीब 14 साल तक फ़तेहपुर सीकरी मुग़ल साम्राज्य की राजधानी रही. अकबर ने अनेक निर्माण कार्य कराये, जिससे वह आगरा के समान बड़ी नगरी बन गई थी.

अकबर ने एक विशाल हरम का निर्माण कराया था.जिसमें विभिन्न राज घरानों से उपहार स्वरूप प्राप्त राज कन्यायें और विभिन्न देशों की सुन्दर स्त्रियों का अभूतपूर्व संग्रह था.

फतेहपुर सीकरी स्मारक में दीवाने आम, दीवाने खास, शेख सलीम चिश्ती की दरगाह, जोधा बाई का महल और बुलंद दरवाजा तो है ही मगर वहां का टर्की सुल्ताना का महल भी स्मारक की आकर्षण की जान है. इस महल की खास बात यह है की महल की छत पर बनी नक्काशी और नीचे फर्श पर बनी नक्काशी बिल्कुल एक जैसी है. यह कलाकारी का सुंदर नमूना है.

यह खुलने और बंद होने का समयः प्रातः 8 से सांय 7 बजे तक है.

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