फ़िल्मी अदाकार कन्हैयालाल चतुर्वेदी.

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कन्हैयालाल का नाम नई पीढ़ी को पता नहीं होगा, मगर वें पचास, साठ व सत्तर के दशक के एक चरित्र अभिनेता थे. ” रील ” लाइफ में वें विलन का काम करते थे मगर ” रियल ” लाइफ में वें बहोत अच्छा इंसान था.

करीब 50 सालों तक बॉलीवुड की हिंदी फिल्मों में दिलीप कुमार, देव आनंद, अशोक कुमार, मनोज कुमार, सुनील दत्त, राजेन्द्र कुमार, राजेश खन्ना, धर्मेन्द्र, जितेन्द्र, अमिताभ बच्चन जैसे टाॅप अभिनेताओं के साथ काम करने वाले कन्हैयालाल जी का जन्म जन्म ता : 10 दिसंबर 1910 को वाराणासी में एक हिंदू ब्राह्मण परिवार में हुआ था.

उनके पिता जी का नाम भैरोदत्त था. वें सनातन धर्म नाटक समाज की नाटकमंडली चलाते थे. उनकी मंडली अलग-अलग शहरों में जाकर नाटक का आयोजन करती थी.ले कर जाती थी.

महज 9 साल के कन्हैयालाल को इसमें मजा आने लगा तो पढ़ाई-लिखाई छोड़ कर पिता के साथ जुड़ गए.

उनका मूल शौक लिखना था. इसी कारण वें मुंबई के हिंदी फिल्म इंडस्ट्रीज में आए थे. पर पिता की अकाल मौत के बाद वह खुद नाटकमंडली चलाने लगे थे. सन 1940 में रिलीज हुई महबूबखा की फिल्म “औरत” में कन्हैयालाल ने चतुर साहूकार की भूमिका निभाई थी.

“औरत” फ़िल्म की सफलता के बाद महबूब खा ने 17 साल के बाद “मदर इंडिया” फिल्म बनाई, जिसमे एक बार फिर कन्हैयालाल ने चतुर साहूकार की भूमिका निभाई. जिसका नाम था सुखी लाला.”मदर इंडिया” फ़िल्म में महबूब ने “औरत” के सभी कलाकारों को बदल दिए थ, मगर साहूकार के चरित्र के लिए कन्हैयालाल को ही चुना गया.

“मदर इंडिया” फ़िल्म सुपरहिट होने के बाद ऐसी तमाम फिल्में हैं जिनमे श्री कन्हैयालाल के अभिनय का जादू देखने को मिलता है. “गंगा जमना”, “उपकार”, “दुश्मन”, “अपना देश”, “गोपी”, “धरती कहे पुकारके ” और “हम पांच” आदि उनकी फ़िल्म थी.

“गंगा जमना” फ़िल्म मैं साथ काम कर चुके युसूफ खान ऊर्फ श्री दिलीप कुमार ने उनके बारे में कहा था कि “ वे जिस तरह से सामने वाले कलाकार को प्रतिक्रिया देते थे उसका सामना करना बहुत मुश्किल होता था.“ सन 1972 की फ़िल्म “दुश्मन” में राजेश खन्ना के साथ में कन्हैयालाल ने गांव के एक दुष्ट व्यापारी दुर्गाप्रसाद की भूमिका की थी.

तब राजेश खन्ना ने कहा था कि वो तो बहुत जिम्मेदार अभिनय करते थे.” “दुश्मन” में उनका एक संवाद काफी लोकप्रिय हुआ था ” कर भला तो हो भला. कन्हैयालाल जी ने इसे इस तरह बोला था कि यह लोगों के मन मस्तिक में बैठ गया था.

पिता के देहांत के बाद कन्हैया ने पैसो के लिए किराने की दुकान खोली, लेकिन इससे इतनी आमदनी नहीं हो पाई कि वह घर का खर्चा चला सकें. अतः वें अपने भाई के साथ फिल्मों में अपनी किस्मत आजमाने के लिए मुंबई आ गये. तब उनका मकसद सिर्फ पैसा कमाना था इसलिए उन्होंने फिल्मों में छोटे मोटे सभी रोल कर लिये.

कन्हैयालाल पान खाने के काफी शौकीन थे, इतने शौकीन कि वह खूब पान खाया करते थे. उनकी यहीं अदाने उसे नामचीन कर दिया. कन्हैयालाल एक कवि और लेखक भी थे, उन्होंने कई फिल्मों में गाने भी लिखे थे. सन 1940 में महबूब खान द्वारा निर्देशित फिल्म औरत से कgन्हैया लाल को एक नई पहचान मिली थी. इस फिल्म में उनकी एक्टिंग को फिल्म समीक्षकों द्वारा खूब सराहा गया था.

कन्हैया लाल जी आखरी बार फ़िल्म हथकड़ी में नजर आए, जो सन 1983 में उनके निधन के बाद रिलीज हुई थी. कन्हैया लाल जी आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी अदाकारी आज भी दर्शकों के दिलों में जिंदा है.

कन्हैयालाल की फिल्मों में शुरुआत के बारेमें कहा जाता है कि कन्हैयालाल ने आर्देशिर ईरानी, चिमन देसाई और अंबालाल पटेल की सागर मूवीटोन फिल्म कंपनी की फिल्म ” सागर का शेर ” (1937) में एक्स्ट्रा कलाकार के रूप में पहली बार काम किया था. इस फिल्म में महबूब खान की भी एक छोटी-सी भूमिका थी. बाद में महबूब खान ने कन्हैयालाल को सुपरस्टार विलन बना दिया था.

कंपनी की दूसरी फिल्म गुजराती लेखक श्री कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी की कहानी पर बनी फिल्म “झूल बदन” (1938) थी. इस फिल्म के हीरो मोतीलाल के पिता की भूमिका करने वाला कलाकार शूटिंग में नहीं आया तो मोतीलाल ने स्टूडियो में घूम रहे कन्हैया लाल से कहा कि कैमरे के सामने तुम खड़े हो जाओ. मोतीलाल कन्हैयालाल से 11 दिन बड़े थे. उस वक्त 28 साल के कन्हैयालाल ने इस फिल्म में उनके पिता की भूमिका की थी. उसी साल ग्रामोफोन सिंगर नाम की दूसरी एक फिल्म आई, जिसमें सुरेन्द्र नाम का हीरो था. इसमें भी कन्हैयालाल की छोटी सी भूमिका थी.

सन 1939 में कंपनी की तीसरी फिल्म साधना आई. इसमें शोभना समर्थ और बिब्बो जैसी बड़ी स्टार थीं. इसमें चिमनलाल देसाई ने कन्हैयालाल से संवाद लिखवाए थे. पर उन्हें संवाद बोलता सुन कर फिल्म के हीरो प्रेम अदीब के दादा की भूमिका के लिए कन्हैयालाल को खड़ा किया और फिल्म सफल हुई थी.

बाद में ब्लॉकबस्टर फिल्म देने वाले महबूब खान को कन्हैयालाल में एक दुष्ट विलन दिखाई दिया था. सन 1939 में आई उनकी फिल्म एक ही रास्ता में उन्होंने पहली बार कन्हैयालाल को बांके नामके एक दलाल की भूमिका में लिया जो फिल्म की हीरोइन माला का अपहरण कर एक धनवान को बेच देता है.

सागर मूवीटोन बंद हो जानेके बाद इसके पार्टनर श्री चिमनलाल देसाई ने नेशनल स्टूडियो के युसुफ से हाथ मिला लिया. इसी नेशनल स्टूडियो के सहयोग से महबूब खान ने 1940 में ” औरत ” फिल्म बनाई थी. फ़िल्म में ब्याजखोर सुखीलाला की भूमिका में कन्हैयालाल को लिया था.

17 साल बाद 1957 में महबूब खान ने हिंदी सिनेमा की सब से बड़ी हिट फिल्म मदर इंडिया बनाई थी. जो ” औरत ” फ़िल्म की प्रथम रीमेक थी.

उस जमाने में जब पुरानी फिल्मों की रीमेक नहीं बनती थी, तब ऐसा साहस महबूब खान ने पहली बार किया था.

इसमें उर्दू नाटकों से आई सरदार अख्तर ( जिनके साथ महबूब खान ने विवाह किया था ) ने राधा की भूमिका की थी. रामू की भूमिका सुरेन्द्र ने की थी और बिरजू की भूमिका याकूब ने की थी. मदर इंडिया में ये भूमिकाएं क्रमश: नरगिस, राजेन्द्र कुमार और सुनील दत्त ने की थी.

कन्हैयालाल ने इसके बाद 1967 में मनोज कुमार की उपकार में “लाला धनीराम” 1967 में दिलीप कुमार की राम और श्याम में “मुनीम जी” और 1965 में मनोज कुमार की हिमालय की गोद में में “घोघर बाबा” की भूमिका में कन्हैयालाल को दर्शकों ने बहुत ही सराहा था. सन 1981 में संजीव कुमार, शबाना, मिथुन चक्रवर्ती, राज बब्बर और नसिरुद्दीन शाह की ” हम पांच ” फिल्म में उन्होंने लाला नयनसुख की भुमिका में सुखीलाला जैसी मीठी दुष्टता का परचम लहराया था.

“हम पांच” की शूटिंग के दौरान वह बुरी तरह जख्मी हुए थे. लंबे समय तक बिस्तर पर पड़े रहने के बाद वह खड़े तो हुए, पर यह जख्म उनके लिए जानलेवा साबित हुआ था. एक साल बाद 14 अगस्त्य, 1981 को कन्हैयालाल दुनिया से विदा हो गए थे.

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