प्रभु जी की लीला अनंत अपरंपार है. ये मैं नहीं कहता. ये हमारे वेदों का सार है. है प्रभु आप कितने परम दयालु है. आपने मुजे क्या नहीं दिया ? आपने सब कुछ तो मेरे शरीर रूपी जोली मे भर दिया है. आपने मुजे अनमोल आँखे बक्षी है.
आंखों की बदौलत मे आपकी रचना को बारीकीसे निरिक्षण कर पाता हूं. सुबह उठते ही पूर्व दिशा की ओर आसमान मे , सुबह किरण की लाली देखता हूं तो मन प्रफुल्लित हो जाता है.
आसमान मे उड़ते पक्षियों की किलकिलाहट युक्त ध्वनि, सुबह की नीरव शांति आपकी करामत का पल – पल अहसास कराती है.
कुदरत ने बक्षी अनमोल आँखे ही तो है जो हमें उसकी हयाती अस्थित्व का साक्षात्कार कराती है. आँखे हमारी दुनिया को रंगीन बना देती है. ये हमें रंगों से अवगत कराती है. लाल, हरा, पीला , नीला, सफेद , वैगनी, जामुनी, सुनहरा , काला, भूरा, नारंगी , केसरिया, गुलाबी आदि रंगों की पहचान आंख ही हमें कराती है.
हे ! प्रभु तू सी ग्रेट हो !. आपने मुजे नाक दी है. जो मुजे स्वास लेनेमें मदद करती है. ये मुजे सुगंध, दुर्गन्ध, आदि गंधो को पहचान ने मे मदद करती है. नाक से मुख की सुंदरता मे वृद्धी होती है. नाक हमारी प्रतिष्ठा की निशानी मानी जाती है. नाक कटने का मतलब अपमान होना समजा जाता है. नाक को नासिका भी कहां जाता है.
प्रभु आपने मुजे क्या नहीं दिया. प्रभु मेरा मुंह आपही की करामत है. यदि मुंह नही होता तो, रस रसीले स्वाद को मैं कैसे पहचान पाता. फलों के राजा आमो के विविध किस्म के स्वाद का मजा मैं कैसे ले पाता ? सात्विक 56 भोग पकवान का टेस्ट कैसे कर पाता ? विविध मिष्ठान , विविध फल, विविध प्रकार के नमकीन, मेवा आदिका कैसे भोजन कर पाता ?
हे ! प्रभु तेरी लीला तू ही जाने…! आपने मुजे कान दिया. जिससे मे सात सुरों को पहचान पाता हूं. संगीत की देवी माँ सरस्वती की देन ” वादन ” को सुन पाता हूं. यदि कान नहीं होते तो मैं मधुर और कर्कश ध्वनि को कैसे समज पाता.
हे प्रभु आपने मुजे दो पैर दिए है. मैं जानता हूं, लाटम लाट के लिये नहीं, चलने के लिये. आपने मुजे दो हाथ दिए है, किसीका गला घोटने के लिये नहीं. गिरते को उठाने के लिये. किसका कुछ हड़पने के लिये बिलकुल नहीं. मैं भलि भाति जानता हूं, हाथ दिये है, किसीकी सहायता करने के लिये. निर्बलो की रक्षा करने के लिये.
है प्रभु आपने मुजे इतना कुछ दे दिया है की अधिक कुछ माँगनेकी इच्छा ही नहीं हो रही है. हा यदि आप कुछ अधिक देना ही चाहो तो, किसको लेना पसंद नहीं…. ? हे !. प्रभु यदि आपको मुजे धन देना ही हो तो अवश्य दीजिये, मगर मेरी भी एक शर्त है. मुजे प्रभु ऐसा वरदान दो की जरुरत से ज्यादा धन का उपयोग मे जरूरियात मंद गरीबों के लिये करु. साधु – संतों की सेवामे खर्च करु.
वह धन का उपयोग मे अंधाश्रम के लिये करु. वह धन का उपयोग मे अपंगो के लिए करु, वह धन का उपयोग मैं अस्पताल बनानेके लिये करु. वह धन का उपयोग मे वृद्धाश्रम के लिये करु. देश हित मे साक्षरता अभियान चलाने के लिये स्कूलों मे खर्च करु. यदि आपको ऐसा लगे की मैं ऐसा नहीं कर पाउंगा तो मुजे नहीं चाहिए ज्यादा धन जो मुजे स्वछंदी बना दे और पतन की ओर ले जाये और मुजे आध्यात्मिकता से दूर रखे.
प्रभु आप मुजे स्वस्थ रखे, निरोगी रखे, आपकी भक्ति की मुजे शक्ति दे. स्वास्थय इससे अधिक संपत्ति क्या हो सकती है ? सिर्फ पैसा जिंदगी को आनंदित नहीं कर सकता.
मै बचपन मे पूंछ वाली पतंग उडाता था. वो पतंग एक जगह स्थिर होकर उड़ते रहती थी. हाथमे दौर पकड़कर उसे घंटो भर देखते रहता था. जिंदगी का वह आनंद आज तक पैसों से नहीं मिला. मनसा मूसा 700 साल पहले दुनिया का सबसे धनी राजा हो गया. आज उसका नामोनिशान नहीं है.
आत्मज्ञान क्या है ? आत्मज्ञान की बडी व्याख्या हो सकती है. मगर मेरा मानना है की आत्मा की स्वानुभूति ही आत्मज्ञान है. कई लोगोंको सोना, चांदी, प्लेटिनम धातु से लदे रहनेकी आदत है. उनका मानना है की ऐसे आभूषण से प्रतिष्ठा बढ़ती है. व्यक्ति की शोभा बढ़ती है, मगर ज्ञानी लोग ये मानते है कि जैसे विद्या विनय से शोभित होती है वैसे स्व की पहचान आभूषण से नहीं मगर उनके मानवता वादी कार्य की महक से होती है. उनके सद्गुणों से होती है.
जिस दिन यह बात आपको समज मे आ जायेगी, और आप उसका अमल करना शुरु कर देंगे उस दिन समजो आपको आत्मज्ञान हो गया. उस दिन आपको दुनिया के तमाम भौतिक सुख तुच्छ लगने लगेंगे. आप प्रभु की ओर आकर्षित होने लगेंगे. ओर बोलने लगेंगे….
बहोत दिया देने वाले ने मुझको ,
आँचल ही न समाये तो क्या कीजे,
बीत गए जैसे ये दिन रैना,
बाकी भी कट जाये दुआ कीजे,
बहोत दिया, देने वालोने मुजको…..
——-====शिवसर्जन ===———-