भगवान शिव जी के बारह पवित्र ज्योतिर्लिंग मे सोमनाथ मंदिर का स्थान पहला है. यह मंदिर गुजरात के पश्चिमी तट पर सौराष्ट्र में वेरावल के पास प्रभास पाटन में स्थित है. यहां (1) कपिला (2) हिरन (3) पौराणिक सरस्वती यह तीन नदिओका त्रिवेणी संगम होनेकी वजह यह एक तीर्थ स्थल के नामसे भक्तों मे प्रसिद्ध है.
इस मंदिर को विदेशी मुगलों और पुर्तगालियों द्वारा कई बार ध्वस्त करने के बाद फिर से पुनः निर्माण किया गया है. वर्तमान मे इस मंदिर को हिंदू मंदिर वास्तुकला के चौलुक्य शैली में फिर से बनाया गया है, जिसे मई 1951 में पूरा किया गया .
उसका भारत के गृह मंत्री श्री सरदार वल्लभभाई पटेल के आदेश के तहत पुनर्निर्माण का कार्य शुरू किया गया था और उनकी मृत्यु के बाद पूरा हुआ था.
आज़ादी से पहले , वेरावल जूनागढ़ राज्य का एक हिस्सा था , जब पटेल, के.एम. मुंशी और कांग्रेस के अन्य नेता सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण के प्रस्ताव के लिये श्री महात्मा गांधी जी के पास गए , तो गांधी ने सम्मति दिखाते उनको आशीर्वाद दिया, लेकिन सुझाव दिया कि निर्माण के लिए धन जनता से एकत्र किया जाना चाहिए. मगर जल्द ही गांधी और सरदार पटेल दोनों की मृत्यु हुई और मंदिर के पुनर्निर्माण कार्य मुंशी के आधीन जारी रहा, जो तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में भारत सरकार के खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्री थे.
अक्टूबर 1950 में खंडहरों को खींच लिया गया और निर्माण स्थल का उपयोग करके उस स्थान पर मौजूद मस्जिद को कुछ किलोमीटर दूर स्थानांतरित कर दिया गया. 1 मई 1951 के दिन के. एम. मुंशी द्वारा आमंत्रित भारत गणराज्य के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने श्री मंदिर के लिए स्थापना समारोह किया.
प्राचीन भारतीय शास्त्रीय ग्रंथों के अनुसार पहला सोमनाथ ज्योतिर्लिंग प्राण-प्रतिष्ठा वैवस्वत मन्वंतर के दसवें त्रेता युग के दौरान श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया के शुभ दिन किया गया था. श्रीमद आदि जगदगुरु श्री शंकराचार्य वैदिक शिक्षण संस्थान, वाराणसी के अध्यक्ष स्वामी श्री गजानंद सरस्वतीजी ने सुझाव दिया कि स्कंद पुराण के प्रभास खंड की परंपराओं के अनुसार 7,99,25,105 वर्ष पहले उक्त प्रथम मंदिर का निर्माण किया गया था. इस प्रकार, यह मंदिर अनादि काल से लाखों हिंदुओं का प्रेरणा स्रोत है.
11वीं से 18 वीं शताब्दी के दौरान मुगलों के आक्रमण द्वारा कई बार तोड़े जाने पर मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया था.13 नवंबर 1947 को सोमनाथ मंदिर के खंडहरों का दौरा करने वाले सरदार पटेल के संकल्प के साथ आधुनिक मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया है.
तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 11 मई 1951 को मौजूदा मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम संपन्न किया था.
माना जाता है कि चंद्रमा देवता सोम को श्राप के कारण अपनी चमक खोनी पड़ी थी और उन्होंने इसे पुनः प्राप्त करने के लिए इस स्थल पर सरस्वती नदी में स्नान किया था.
सन 1024 में भीम के शासनकाल के दौरान , गजनी के प्रमुख तुर्क मुस्लिम शासक महमूद ने गुजरात पर हमला किया, सोमनाथ मंदिर को लूटा और उसके ज्योतिर्लिंग को तोड़ दिया और उसने 20 मिलियन दीनार की लूट की थी.
बताया जाता है कि महमूद ने 50,000 भक्तों की हत्या कर दी थी , जिन्होंने मंदिर की रक्षा करने की कोशिश की थी.
श्री सोमनाथ मंदिर का इतिहास बड़ा लंबा है. उसे कई बार तोड़ा गया और कई बार फिरसे निर्माण किया गया है. इस मंदिर को नष्ट करनेमे अल्लाउदीन खिलजी , जफ़र खान , औरंगजेब का मुख्य हाथ था.
श्री सोमनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंग मे प्रथम स्थान पर होने की वजह, हिंदू भक्तों का आस्था स्थान, श्रद्धा स्थान है. हर साल यहां लाखों लोग दर्शन को आते है, और धन्यता का अहसास करते है. दो साल पहले मुजे वहां जानेका अवसर मिला. साथ मे जुनागड़ श्री भवनाथ मंदिर के भी दर्शन किये.
—–=====शिवसर्जन ====——