एकबार पांच छह मित्र आपस मे चर्चा कर रहे थे. एक ने विषय छेड़ा की तुंगारेश्वर के बाबा सदानंद महाराज ने आज तक कोई चमत्कार नहीं किये है. मुजे बुरा लगा. रहा नहीं गया. मैंने कहा चमत्कार तो जादूगर करते है. सदानंद बाबा जादूगर नहीं है एक सन्यासी संत महात्मा है. जो ग्यारह साल की बाल्य अवस्था मे संसार से दूर होकर भगवान श्री परशुराम जी की पावन भूमि श्री क्षेत्र तुंगारेश्वर के जंगल मे जाकर बसा. वन्य वनोषधि जड़ीबूटी ओके के माध्यम से आज भी वे जन आरोग्य को सुरक्षित रखने के लिये महा मानवता का कार्य कर रहे है.
आपमे से कई लोगोंको महात्मा सदानंद महाराज के बारेमें पता नहीं होगा की बाबा का शुरुआती बचपन भाईंदर पश्चिम राई गांव मे बिता. मेरा सौभाग्य है की गृह त्याग करने से पहले मैं उसे राईगांव मे मिला था. सीधा सादा भोला , शांत स्वभाव का ये बच्चा आगे जाकर संत महात्मा बन जायेगा और आगे चलकर आगरी पाटील समाजका नाम रोशन करेगा, ये तो मैंने कभी सोचा तक नहीं था.
बाबा जब अपने माता पिता के साथ जब घर से निकला तो किसीको मालूम नहीं था. बाबा कहा प्रयाण करगे. उनके कदम बढ़ते गये और चलतें चलतें तुंगारेश्वर पर्वत की चोटी पर जाकर उनके कदम रुके जिस भूमि को उस वक्त भगवान परशुराम कुंड श्री क्षेत्र भूमि के नामसे जाना जाता था. हिंदू शास्त्रों के अनुसार भगवान श्री परशुराम जी को श्री विष्णु भगवान का छठवा अवतार माना जाता है.
सत्तर के दशक मे तुंगारेश्वर महादेव मंदिर छोटा था. तुंगारेश्वर शिव मंदिर के शिवा वहां कोई भी मंदिर नहीं था. सिर्फ तीन चार जटाधारी साधु वहां रहते थे. उनका कहना था कि यहां के शिवलिंग की स्थापना स्वयं भगवान श्री परशुराम ने की है.
तुंगारेश्वर से सदानंद आश्रम तक पहुंचने का रास्ता विकट हैं. सुनसान जंगल की नीरव शांति, विविध पक्षी ओकी किलकिलाहट से वातावरण डरावना लगता हैं. रास्ते मे कई बार सर्पो को देखा जा सकता हैं.
जंगली जानवर चिता, बाग का डर रहता हैं. सत्तर के दशक मे घोड़बंदर चेना की पहाड़ी, तुंगारेश्वर के जंगल मे बाघ,चिता,लोमड़ी जैसे हिंसक प्राणियों का डर रहता था.
बाल सदानंद जब नव साल के हुये तो वे वारंवार कहते रहते थे की. मी चाललो , मला बाबां कडे जायांच आहे. ये वाक्य वारंवार वे बोलते रहते थे.
आखिरकार बारह साल पुरा होते ही तारीख : 27 अप्रेल 1971 के दिन मंगलवार वैशाख सुदी तृतीया ( अक्षय तृतीया के दिन ) उन्होंने गृह त्याग करने का पक्का मन मना लिया.
इस घटना की खबर वायुवेग से पुरे परिसर मे फैल गई. जैसे सीता माता और भाई लक्षमण ने राम जी के साथ वनवास जाने का निश्चय किया वैसाही श्री सदानंद महाराज के माता पिता ने भी निर्णय लिया की हम अपने बच्चे के साथ इस दुनिया से वैरागी बनकर बाल योगी श्री सदानंद महाराज के साथ आजीवन सन्यासी जीवन व्यतीत करेंगे.
राई गांव मे उनका एक घर था . 30 गुंठा जमीन , 26 नमक की कुंडी ( क्यारी ) आदि सभी संपत्ति गांव को दान करके पुत्र के साथ वनवास गमन करने निकल गये.
राई गावको त्यागने से पहले श्री सदानंद महाराज गणेशपुरी जाकर आये तथा दो दिन पहले नायगाव जूचंद्र की देवी चंडिका देवी का दर्शन करके आये थे. वहां जाकर स्वतंत्रता सेनानी श्री द्वारकानाथ मालजी म्हात्रे से मिले थे मगर उनको वहां पैर मे काटा लग गया. पैरो मे सूजन आयी.
दूसरे दिन उसे घर को छोड़ना था. उस समय भाईंदर के नामी डॉक्टर गुणवंत त्रिवेदी , डॉ. शरद कुलकर्णी , उत्तन के डॉ. मस्करनिस को बुलाया गया. उन्होंने सर्जरी की सलाह दी. मगर सदानंद ने उनकी बात को ठुकरा दीया और अपने निश्चय पर अडग रहे.
इसका अहेवाल दैनिक नवकाळ मे प्रकाशित हुआ था. उसको दर्शन के लिये मानव महेरामन उमड़ने लगा. लोग दूर दूर से राई गांव मे पहुंचने लगे.
रात भर लोग दर्शन को आते गये उनको सबको स्टोव के माध्यम से चहा बनाकर वितरित की गई मगर अंत तक कम नहीं हुई. 27 अप्रेल 1971 का वो दिन था. तब बाबा की उम्र 12 साल 7 महीना और 27 दिन की थी. सुबह आठ बजे का समय था. उनके दाहिनी ओर श्री लक्षमण पांडुरंग पाटील थे तो बायीं ओर श्री वामन विठल पाटील थे. कोई बाबा की जय जय कार कर रहा था को कोई भजन बोल रहा था. विशाल शोभा यात्रा भाईंदर स्टेशन की ओर बढ़ रही थी.
बाबा कहा जायेगा किसीको पता नहीं था. भाईंदर स्टेशन से वे भाईंदर पूर्व खारीगांव स्थित काशी भवन के सामने श्री साईं बाबा मंदिर का भूमि पूजन किया फिर लोकल ट्रैन मे बैठकर वसई स्टेशन पहुचे.
स्टेशन से बाबा ओर उनके माता पिता एक टेक्सी मे बैठकर तुंगारेश्वर मंदिर तक पहुचे. वहां चार दिन तक मुकाम करके बाबा वहासे करीब सात किलोमीटर की दुरी पर परशुराम कुंड स्थित पहाड़ की चोटी पर वहां अपना मुकाम लगाया.
जैसे जैसे खबर आगे फैलती गयी लोग वहां जाने लगे. ओर आज भाईंदर से लेकर भारत भर से हजारों भक्तजन बाबाके दर्शन के लिये तुंगारेश्वर सदानंद बाबा के आश्रम मे जाते है.
उन दिनों भाईंदर,वसई विरार और दक्षिण भारत मे श्री नित्यानंद महाराज का नाम आदर के साथ लिया जाता था. पति वैजनाथ पाटील और पत्नी पार्वती का परिवार वैसे तो बारिस मे चावल की खेती और बारिस के बाद नमक आगर की खेती करते थे. उनके घर आने वाले हर साधु संत को पार्वती बाई कुछ ना कुछ दान दक्षिणा देकर भेजती थी.
देशाटन करने वाले एक साधु महाराज ने पार्वतीबाई को आशीर्वाद देते कहा था की बेटी तेरे कोख से एक दिव्य बालक का जन्म होने वाला है, मगर वो बारहवा साल की उम्र मे गृह त्याग कर सन्यासी बन कर घर त्याग कर चला जायेगा.
पति वैजनाथ पाटील और पत्नी पार्वती बाई पाटील गणेशपुरी के श्री नित्यानंद स्वामी के परम भक्त थे. उनके दर्शन के लिये वे सदा तप्तर रहते थे.
श्रावण शुक्ल नारियली पूर्णिमा शके 1880 के दिन तड़के तीन बजकर दस मिनट पर ब्रह्ममुहूर्त मे पार्वती बाई ने एक तेजस्वी दिव्य बालक को जन्म दीया. उस समय कुंभ राशि थी अतः उसका नाम सदानंद रखा गया, जो नित्यानंद से मिलता जुलता था. नित्य + आनंद = सदानंद. और सदा + आनंद = नित्यानंद…. ! जो नाम से एक ही थे.
श्री सदानंद जब तीन साल के थे तब उनके गलेमे श्री नित्यानंद महाराज की ताबीज थी. खेलते खेलते उसने वो ताबीज अपने हाथ मे ली और तीन बार मरा मरा मरा बोल कर मूर्छित हो गया. कुछ देर बाद वो होश मे आया. दूसरे दिन लोगो को खबर मिली की गणेश पूरी के महात्मा का महानिर्वाण हो गया. वो दिन था आषाढ़ वदी 12 शके 1883 मंगलवार तारीख : 8 अगस्त 1961 का दिन, उस दिन ही सदानंद महाराज मरा मरा कहकर मूर्छित हुये थे , और मानो यहां राई गांव भाईंदर मे श्री सदानंद के नाम से पुनः जन्म लिया था.
आज उनके लाखो भक्त श्री सदानंद महाराज को श्री नित्यानंद महाराज का अंश मान रहे है और उनकी आत्मा श्री सदानंद महाराज के शरीर मे वास कर रही है.
श्री नित्यानंद महाराज के आशिर्वाद से जन्मा इस बालक मे लोग नित्यानंद के दर्शन करने लगे. जब सदानंद छह सालके हुये थे तो माता पिताने उसे राई गांव की स्कूल मे भर्ती किया गया मगर उसे पढाई मे रूचि नहीं रह गई और दूसरी कक्षा तक ही पढ़ पाये.
सदानंद महाराज ने आगरी पाटील घराने मे जन्म लिया था , जो मांसाहारी परिवार था. मगर सदानंद बचपन से शाकाहारी के रूपमें रहते थे. यदि कोई उसे जानबूझकर मटन , मच्छी का रसा पीला देते थे तो वह उलटी करके बाहर निकाल देता था. परिवार के कुछ लोग उसे ढोंग समजते थे वे लोग उसे सताने के लिये उसके घर के भीतर चिकन मटन मच्छी की हड्डी डालते थे. मगर कोई उसे विचलित नहीं कर पाये. वो सभी आज बाबा को माथा टेक रहे है. पुत्र के लक्षण को देखते उनके माता पिता ने मांसाहार का हमेशा के लिये त्याग किया. और शुद्ध शाकाहारी बन गये.
सदानंद महाराज के पिता का नाम श्री वैजनाथ हरिश्चंद्र पाटील था. उनका दादा दादी नायगांव – जूचंद्र गांव के मूल निवासी थे. वैजनाथ का जन्म भी ता : 29 अक्टूबर 1922 के दिन जूचंद्र मे हुआ था. उनकी शादी सन 1945 मे दहिसर के श्री गोविंद विठा माली की सुपुत्री पार्वती के साथ हुआ था.
श्री गोविन्द राई गांव की मराठी स्कूल मे तीसरी कक्षा तक पढ़े थे. सन 1957 मे सदानंद के माता पिता पुत्र प्राप्ति के लिये मन्नत मागने के लिये राई गांव से गणेशपूरी स्थित नित्यानंद आश्रम तक पैदल गये थे. उस समय महाराष्ट्र राज्य परिवहन की बस तो थी नहीं. उस समय वसई से पाटकर कंपनी की प्राइवेट बस चलती थी वो भी दिन मे एक या दो बार फेरी करती थी.
दोनों पति पत्नी राई गांव से पैदल चलकर भाईंदर स्टेशन पहुचे थे वहासे वसई तक लोकल ट्रैन से और बादमे वहासे पैदल चलकर गणेशपुरी स्थित नित्यानंद महाराज के मंदिर पहुचे थे. उसके लिये आठ नव घंटा लगे थे.
श्री सदानंद महाराज के पिताजी स्वतंत्रता सेनानी थे. वे राई गांव के सेवा दल के कार्यकर्त्ता थे. उन्होंने उनके मित्र लक्मण पांडुरंग पाटील ओर वामन विठल पाटील के साथ सन 1942 के जुलुस मे भाग लिया. अंग्रेज सरकार ने उसे गिरफ्तार कर लिया. दिन भर कालकोठरी मे रखा गया था.
अगस्त 2019 मे सुप्रीम कोर्ट के आदेश अनुसार आश्रम के कुछ भागों को पुलिस निगरानी मे तोड़ा गया. तब देश भरसे उसका विरोध हुआ. बाबा के भक्तजनों ने शांतिपूर्ण तरीको से प्रदर्शन करके विरोध किया. आखिरकार राम कापसे आगे आये और सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दीया की उनके माता पिता की समाधि, मंदिर तथा बाबा की वास्तव्य स्थान को सुरक्षित रखा जाय.
यहां पर उल्लेखनीय है की सन 1987 मे सरकार ने बाबा को आश्रम बनानेके लिये जगह आरक्षित की थी. जबकि बाबा वहां सन 1971 से वहां रह रहे है, और जंगल की जड़ी बुट्टी ओसे औषधी बनाकर समाज और भक्तों की सेवा कर रहे है.
बाबा को मानने वालोंकी संख्या दिन ब दिन बढती ही जा रही है. बाबा एक अच्छे भजन गायक भी है. उनके अर्थ पूर्ण भजन लोगों मे प्रसिद्ध हो रहे है.
प्राकृतिक सौंदर्य से भरा वातावरण मे बाबा का आश्रम मे जाकर भक्तजन उनके दर्शन करके धन्यता का अहसास करते है. नित्यानंद महाराज को लोग शिवजी का अवतार मानते थे, इसीलिए सदानंद बाबा के भक्त उन्हें भगवान शंकर के रूपमें पूजा करते है.
बाबा कोई जादूगर नहीं एक सिद्ध महात्मा है. और उनकी अलौकिक कृपा सदा उनके भक्तों पर बरसती रहती है. कोरोना जैसी महामारी मे बाबाका वन्य औषधी लेकर कई लोग कोरोना मुक्त हुए हैं.
बोलो सदानंद महाराज की जय.
——–===शिवसर्जन ===———