बिजली व दुनिया की पहली इलेक्ट्रिक मोटरका आविषकारक माइकल फैराडे.

STIM Michael Faraday Electrolysis

पाठक परमेश्वर , आपने कभी ऐसा सोचा है ? कि यदि बिजली का आविष्कार नहीं होता, तो क्या होता ? उत्तर आसान है, हम लोग घरमे उजाले के लिए मसाल या तो फिर दिये जला रहे होते. ना हवाई जहाज होता, ना ट्रैन होती, ना ट्राम होती, ना ट्रक, टेम्पो, रिक्शा होती, ना पानीमे चलने वाले जहाज होते.

अच्छे विचार और प्रेरणादायक कहानियाँ हमारे दिमाग में नई ऊर्जा का संचार करती हैं. चुटकुले और मनोरंजक वीडियो की खुशी थोड़ी देर तक रहती है. अच्छी प्रेरनात्मक कहानियाँ हमारे भीतर आंतरिक संस्कार उत्पन्न करती हैं. जो हमें जीनेकी राह दिखाती है.

अगर किसी इंसान को कोई काम करना पसंद हो व वह लगातार मेहनत के साथ काम करे, तो उसे सफल बनने से कोई रोक नहीं सकता. ऐसी ही एक प्रेरणा प्रदान करने वाली बिजली के आविष्कार की कहानी आप मित्रों को शेयर कर रहा हूं.

बिजली की खोज माइकल फैराडे ने 1820 में की थी. मगर आपको पता है ? प्राचीन भारतीय अगस्त्य ऋषि ने सबसे पहले विद्युत सेल (बैटरी) का आविष्कार किया था. इनका समय 2000 ईसा पूर्व का माना जाता है. अपनी पुस्तक अगस्त्य संहिता में उन्होंने कई वैज्ञानिक पहलुओं का उल्लेख किया है जिनमें से एक है विद्युत सेल कैसे बनाया जाय.

नये युग में माइकल फैराडे ने विद्युत चुंबकत्व के क्षेत्र में अभूतपूर्व खोज की. उनके द्वारा की गई खोजों से इलेक्ट्रिक मोटर, जनरेटर व इलेक्ट्रिक ट्रांसफार्मर का विकास हुआ.

महज 14 साल की कम उम्र में उन्होंने लंदन के ब्लैंडफोर्ड स्ट्रीट पर एक किताब की दुकान में काम किया. इसी स्टोर में उन्हें खुद को शिक्षित करने का मौका मिला. उन्होंने बिजली के विज्ञान में गहरी रुचि विकसित की, जो न केवल उनके लिए, बल्कि समस्त मानव जाति के भविष्य के लिए भी बेहद अद्भुत साबित हुई.

माइकल फैराडे का जन्म ता : 22 सितंबर 1791 को इंग्लैंड के न्युविंगटन में हुआ था. इनके पिता जेम्स फैराडे बहुत गरीब थे और लुहारी का कार्य करते थे. माइकल फैराडे अपने माता पिता के चार बच्चो में तीसरे नंबर पर थे. इन्होंने अपना जीवन लंदन में नौकरी से प्रारंभ किया. समय मिलने पर फैराडे रसायन एव विद्युत् भौतिकी पर पुस्तकें पढ़ते रहते थे. ई. सन् 1813 में प्रसिद्ध रसायनज्ञ, सर हंफ्री डेबी, के व्याख्यान सुनने का इन्हें सौभाग्य प्राप हुआ.

माइकल सर ने कभी औपचारिक वैज्ञानिक शिक्षा प्राप्त नहीं की. वह स्व-शिक्षित थे और उनका अधिकांश ज्ञान किताबों से आया था.

ई. सन 1820 में हैंड्स ओर्स्टेड ने अपनी खोज में बताया कि विद्युत धारा से चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न किया जा सकता है. उनकी इस खोज से माइकल फैराडे को विचार आया कि यदि विद्युत धारा के प्रवाह से चुम्बकीय प्रभाव पैदा हो सकता है तो चुम्बकीय प्रभाव से विद्युत धाराको भी उत्पन्न कर सकते है.

सन 1822 में, उन्होंने एक चुंबक, तरल पारा और एक धारा प्रवाहित तार का उपयोग करके एक उपकरण बनाया जो विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में परिवर्तित करता था.

इसके लिए इन्होने एक प्रयोग किया जिसमें तार की एक कुंडली बनाकर चुम्बक के पास रखी गई. लेकिन उन्हें कुंडली में कोई बिजली बनती हुई नहीं दिखाई दी. उन्होंने कई बार अपने प्रयोग को दोहराया किन्तु उन्हें हरबार नाकामी हाथ लगी. तंग आकर एक दिन उन्होंने कुंडली को फेंकने के लिए चुंबक के पाससे खींचा और उसी समय धारामापी ने विद्युत बनते हुए दिखा दिया.

उस समय फैराडे को यह ज्ञात हुआ कि यदि कुंडली तथा चुंबक के बीच में आपेक्षिक गति होती है तभी उससे बिजली पैदा होती है. इसी को चुम्बकीय प्रेरण का सिद्धान्त कहते हैं. आज पूरे विश्व में इसी तरीके से बिजली का उत्पादन होता है.

इस आविष्कार दुनिया की पहली इलेक्ट्रिक मोटर माना जाता है. वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने पहला विद्युत जनरेटर बनाया जिसे बाद में ” फैराडे डिस्क” कहा गया. सर हम्फ्री डेवी माइकल फैराडे के नायकों में से एक थे उन्होंने चुंबकीय शक्ति के खिंचाव का प्रदर्शन किया. सन 1850 के दशक की उनकी चुंबकीय प्रयोगशाला को रॉयल इंस्टीट्यूशन के फैराडे संग्रहालय में दोहराया गया. अपने साथी वैज्ञानिक विलियम व्हीवेल के साथ फैराडे ने इलेक्ट्रोड, एनोड, आयन और कैथोड जैसे शब्द गढ़े.

सन 1813 में प्रसिद्ध रसायनज्ञ सर हंफ्री डेबी, के व्याख्यान सुनने का इन्हें सौभाग्य प्राप्त हुआ. इन व्याख्यानों पर फैराडे ने टिप्पणियाँ लिखीं और डेबी के पास भेजीं. सर हंफ्री डेबी टिप्पणियों से प्रभावित हो गये और अपनी अनुसंधान शाला में इन्हें अपना सहयोगी बनाया. माइकल फैराडे ने लगन के साथ कार्य किया और निरंतर प्रगति कर सन1833 में रॉयल इंस्टिट्यूट में रसायन के प्राध्यापक हो गए.

माइकल फैराडे जीवन भर अपने कार्य में लगे रहे. धुन एवं लगन से कार्य कर, महान वैज्ञानिक सफलता प्राप्त करने का इससे अच्छा दूसरा उदाहरण वैज्ञानिक इतिहास में कही नही मिलता. फैराडे का विवाह ता : 12 जून, 1821 के दिन सारा बर्नाड के साथ हुआ था, उन्हें कोई संतान नहीं थी.

फैराडे के महान वैज्ञानिक योगदान के सम्मान और स्मृति में, कई संस्थानों ने उनके नाम पर पुरस्कार बनाए हैं. इसमें शामिल हैं….

*** आईईटी फैराडे मेडल.

*** रॉयल सोसाइटी ऑफ लंदन.

*** माइकल फैराडे पुरस्कार

*** भौतिकी संस्थान माइकल फैराडे

पदक और पुरस्कार.

*** रॉयल सोसाइटी ऑफ केमिस्ट्री

फैराडे लेक्चरशिप पुरस्कार.

सन 1832 में माइकल ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने उन्हें मानद डॉक्टोरेट की उपाधि दी. उन्होंने “नाइटहुड” उपाधि और दो बार रॉयल सोसाइट का अध्यक्ष पद संभालने के आमंत्रण को ठुकरा दिया था. सन 1991 से लेकर 2001 तक फैराडे की तस्वीर बैंक ऑफ इंग्लैंड द्वारा जारी 20 पाउंड के बैंक नोट के पीछे छपी होती थी.

बरसों पहले यह ज्ञात हुआ था कि यदि किसी तार को लपेटकर कुंडली बनाई जाये और उस कुंडली में विद्युत धारा प्रवाहित की जाये तो वह कुंडली चुम्बक बन जाती है. इसे देखकर फैराडे ने सोचा कि अगर बिजली से चुम्बक बन सकता है तो चुम्बक से बिजली क्यों नहीं बन सकती.

उसके लिए उसने एक प्रयोग किया जिसमें तार की कुंडली (Coil) बनाकर चुम्बक के पास रखी गई. लेकिन उसे कुंडली में कोई बिजली बनती हुई नहीं दिखाई दी. उसने कई बार अपने प्रयोग को दोहराया किन्तु उसे हर बार नाकामी हुई. तंग आकर एक दिन उसने कुंडली को फेंकने के लिए चुंबक के पास से खींचा और उसी समय धारामापी ने विद्युत बनते हुए दिखा दिया.

उस समय फैराडे को यह ज्ञात हुआ कि यदि कुंडली तथा चुंबक के बीच में आपेक्षिक गति होती है तभी उससे बिजली पैदा होती है. इसी को चुम्बकीय प्रेरण का सिद्धान्त कहते हैं.

डायनेमो या जेनरेटर के बारे में जानकारी रखनेवाले यह जानते हैं कि यह ऐसा यंत्र है जिसमें चुम्बकों के भीतर तारों की कुंडली या कुंडली के भीतर चुम्बक को घुमाने पर विद्युत् बनती है.

फैराडे का प्रेरक प्रसंग :

एक बार फैराडे ने अपने सरल विद्युत् चुम्बकीय प्रेरण के प्रयोग की प्रदर्शनी लगाई.

कौतूहलवश इस प्रयोग को देखने दूर-दूर से लोग आए. दर्शकों की भीड़ में एक औरत भी अपने बच्चे को गोदी में लेकर खड़ी थी. एक मेज पर फैराडे ने अपने प्रयोग का प्रदर्शन किया. तांबे के तारों की कुंडली के दोनों सिरों को एक सुई हिलानेवाले मीटर से जोड़ दिया.

इसके बाद कुंडली के भीतर एक छड़ चुम्बक को तेजी से घुमाया. इस क्रिया से विद्युत् उत्पन्न हुई और मीटर की सुई हिलने लगी. यह दिखाने के बाद फैराडे ने दर्शकों को बताया कि इस प्रकार विद्युत् उत्पन्न की जा सकती है.

यह सुनकर वहां पर खड़ी वह महिला क्रोधित होकर चिल्लाने लगी, “यह भी कोई प्रयोग है ? यही दिखाने के लिए तुमने इतनी दूर-दूर से लोगों को बुलाया इसका क्या उपयोग है ?

यह सुनकर फैराडे ने विनम्रतापूर्वक कहा, “ मैडम, जिस प्रकार आपका बच्चा अभी छोटा है, मेरा प्रयोग भी अभी शैशवकाल में ही है. आज आपका बच्चा कोई काम नहीं करता अर्थात उसका कोई उपयोग नहीं है, उसी प्रकार मेरा प्रयोग भी आज निरर्थक लगता है. लेकिन मुझे विश्वास है कि मेरा प्रयोग एक-न-एक दिन बड़ा होकर बहुत महत्वपूर्ण सिद्ध होगा. ”

यह सुनकर वह महिला चुप हो गई. फैराडे अपने जीवनकाल में विद्युत् व्यवस्था को पूरी तरह विकसित होते नहीं देख सके लेकिन अन्य वैज्ञानिकों ने इस दिशा में सुधार व् खोज करते-करते उनके प्रयोगकी सार्थकता सिद्ध कर दी.

आज विश्व में व्यापक पैमाने पर जहां भी बिजली बनायी जाती है, उसके पीछे एक ही सिद्वान्त काम करता है. जिसका नाम है विद्युत चुम्बकीय प्रेरण (Electromagnetic Induction) का सिद्धान्त. इस सिद्धान्त के अनुसार चुम्बक का इस्तेमाल करते हुए बिजली का उत्पादन होता है.

तारिख : 25 अगस्त 1867 को स्वास्थ बिगड़ जाने के कारण 76 वर्ष की अवस्था मे इस महान वैज्ञानिक का निधन हो गया. फैराडे अपने महान आविष्कार के लिए सदेव याद किए जाएँगे.

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