ट्रेन को हिंदी में “लौहपथगामिनी” कहा जाता है क्योंकि ट्रेन पूरी तरह स्टील से बनी हुई होती है. इंजन, कोच से लेकर पहिये सब लोहे के बनाये गए होते हैं. लेकिन क्या आपने कभी सोचा किया है कि स्टील से बनी ट्रेन बिजली से चलती है और फिर भी इसमें करंट नहीं फैलता है. आमतौर पर लोहा और पानी में करंट फैलने का खतरा सबसे ज्यादा रहता है फिर भी स्टील से बनी ट्रेन में करंट क्यों नहीं लगता है ?
कुछ वर्षों पहले ट्रेनें डीजल इंजन से चलती थीं लेकिन आज पूरी तरह से रेलवे का विद्युतीकरण हो गया है. ऐसे में लगभग सभी छोटी और बड़ी ट्रेनें बिजली से चलती हैं.
ट्रेनों को चलने के लिए करंट इंजन के ऊपर लगे एक डिवाइस से मिलता है. हैरानी की बात है कि यह करंट इंजन और ट्रेन में नहीं फैलता है. यह बात शायद कम ही लोग जानते हैं.
बिजली से चलने के बावजूद आपको ट्रेन में करंट इसलिए नहीं लगता क्योंकि कोच का सीधा संपर्क हाईवोल्टेज लाइन से नहीं होता है.
हाईवोल्टेज लाइन से करंट की सप्लाई ट्रेन को इंजन के ऊपर लगे एक पेंटोग्राफ से मिलती है. आपने देखा होगा कि ट्रेन के इंजन के ऊपर लगा यह पेंटोग्राफ हमेशा हाईवोल्टेज लाइन से कनेक्ट रहता है. वहीं, सवाल यह भी है कि कोच हाईवोल्टेज लाइन के संपर्क में नहीं होने के कारण करंट से बच जाते हैं लेकिन इंजन में तो करंट उतरता है फिर इसमें बिजली के झटके क्यों नहीं लगते.
दरअसल इंजन में पेंटोग्राफ के नीचे Insulators लगाए जाते हैं ताकि करंट इंजन बॉडी में नहीं आए. इसके अलावा ट्रैक्शन ट्रांसफर्मर, मोटर वगैरहा और इलेक्ट्रिकल डिवाइसेज से निकलने के बाद रिटर्न करंट पहियों और एक्सल से होते हुए रेल में और अर्थ पोटेंशियल कंडक्टर से होते हुए वापस जाता है.
बिजली के तारों पर बैठे पक्षियों को करंट न लगने की वजह यही है कि वे ज़मीन को नहीं छूते. जब पक्षी खुले तार पर बैठते हैं, तो उनका संपर्क उस तार के अलावा किसी और चीज़ से नहीं होता. हालांकि, अगर पक्षी गलती से पास के खंभे को छू ले, तो उसे करंट लग जाएगा.
करंट लगने से कई बार मौत होती है. दरअसल करंट से मौत की वजह हार्ट यानी दिल का सही तरह से काम नहीं कर पाना होता है. कई बार करंट की वजह से हार्ट न तो खून पंप करता है न ही वहां खून रुकता है, इसे एट्रियल एवं वेंट्रिकुलर फेब्रिलेशन कहते हैं. यह मौत का भी कारण बन सकता है. कई बार पेशेंट कोमा में भी चला जाता है, उसके बाद सांस बंद हो जाती है. इसे कार्डियो पल्मोनरी अरेस्ट भी कहते हैं.
करंट के तेज झटके या लंबे समय तक लगे झटके से 12 तरहके खतरे होते हैं :
*** गंभीर रूप से शरीर जलना.
*** शरीर के अंगों का गल जाना.
*** सांस लेने में तकलीफ.
*** कार्डियक अरेस्ट.
*** हार्ट अटै.
*** दिमागी दौरा पड़न.
*** बेहोश होना.
*** लकवा मारना.
*** डिहाइड्रेशन.
*** खून का थक्का बनन.
*** मांसपेशियों में दर्द और संकुचन.
करंट लगने के बाद ये साधारण दिक्कतें भी हो सकती हैं :
*** आंखों से धुंधला दिखन.
*** हाथ पैर में झुंझुनाहट.
*** सिर दर्द.
*** घबराहट.
*** सुनने में दिक्कत.
*** मुंह में छाले आना.
खास बातें :
झटका वोल्ट से नहीं करंट से लगता है. झटका इस पर निर्भर करता है कि शरीर के किस हिस्से पर इलेक्ट्रिक फ्लो हुआ है. झटका इस पर भी निर्भर करता है कि आपका शरीर गीला है या सूखा.
झटका इस बात पर भी निर्भर करता है कि करंट कितनी देर तक बॉडी में फ्लो किया है