बॉलीवुड का एक मंत्र है, ” जो दिखता है वो बिकता है.” नारी को अर्धनग्न बताना, बलात्कार के दृश्य को प्रमुखता से बोल्ड मे दिखाना, नारी उत्पीड़न, नारी हिंसा का फिल्मांकन करना. उनके लिये बाये हाथ का खेल है.
राजकपूर ने फ़िल्म इंडस्ट्रीज मे नाम और दाम दोनों ही कमाया. वें चार्ली चैपलिन की नक़ल करने मे माहिर थे. राज साहब प्रेक्षकों की पसंद से वाकिफ थे. उनको पता चल गया था कि जो दीखता है वो ही बिकता है
उनके फ़िल्म की कथा प्यार मोहबत के इर्दगिर्द गुमती थी . बरसात, श्री 420, बॉबी, सत्यम शिवम् सुंदरम, आवारा, जिस देश मे गंगा बहेती है, आह , संगम, मेरा नाम जोकर , प्रेम रोग , आग, राम तेरी गंगा मैली. इसके प्रमाण है. सत्यम शिवम् सुंदरम और राम तेरी गंगा मैली फ़िल्म मे तो हद्द पार कर दी. दोनों फ़िल्म मे नारी का वस्त्र हरण करनेमे मे कोई शर्मिंदगी नहीं वर्ती गई. हीरोइन के स्तनों को खुल्लम खुल्ला दिखाया गया, अतः दोनों फ़िल्म हिट रही.
बॉलीवुड ने हमारी हिंदू संस्कृति को पाश्चात्य देशों की संस्कृति मे तबदील कर दिया है. एक जमाना था.जब हीरोइन 30 साल की तो हीरो 45 साल के आसपास का होता था. फिर हीरोइन 25 तो हीरो 30 साल का जमाना आया. फिर जमाना आया पंद्रह सोलह साल के हीरो, हीरोइन का. जिस कारण कॉलेज के युवक युवती को पागल बना दिया.
सोचने वाली बात ये है कि देश का प्रथम नागरिक राष्ट्रपति एवं प्रधान मंत्री साल मे जितना नहीं कमाता है, उतना सुपर स्टार हीरो या हीरोइन कमाते है. नामी एक्टर एक फ़िल्म का सात से दस करोड़ रुपिया लेते है. इस पर कोई लगाम नहीं है.
सन 1970 मे मुंबई के उपनगर की टॉकीजो मे पांच आना ( 31 paisa) बारा आना, एक रुपिया एक आना और बालकनी का वन फाइव अर्थात एक रुपिया पांच आना ( 131 पैसा ) रेट था. उसका आज मनोरंजन के नाम से 300 से 400 रुपये वसूले जा रहे है. दो चार फ़िल्म हिट होते ही एक्टर सुपर स्टार बन जाता है, और लक्ज़री लाइफ जीने लगता है.
हिंदी फिल्मोने ” दो आँखे बारह हाथ “‘, ” मदर इंडिया,” ” पड़ोसन ” ” उपकार “, ” क्रांति “, ” यहूदी “, जया भादुरी की ” उपहार “, तथा ” मुन्ना भाई एम बी बी एस “, जैसी अनेकों मनभावन फिल्मे दी है. जिसको देखकर अधिकांश दर्शकों ने पसंद किया था.
बॉलीवुड का अंदर वर्ल्ड माफिया ओसे साठगांठ होने की बात जग जाहिर है. इसमे अंडर वर्ल्ड डॉन माफिया दाऊद इब्राहिम का नाम प्रमुखतासे लिया जाता है. बताया जाता है कि अधिकांश दो नंबरी काला धन का इन्वेस्टमेंट होता है.
फ़िल्म इंडस्ट्रीज मे खास करके नई हीरोइन को काम पानेके लिये शारीरिक संबंध की मांग की जाती है, ऐसे व्यवहार को, ” कास्टिंग काउच ” कहां जाता है. कहां जाता है कि कुछ पानेके लिये कुछ खोना पड़ता है. कास्टिंग काउच एक अनैतिक और गैर कानूनी आचार है.
कास्टिंग काउच चलचित्र फिल्म उद्योग से उत्पन्न हुआ है, काउच का मतलब सोफा होता है. ये फ़िल्म निर्देशक और निर्माताओं के कार्यालय में रखे सोफे की ओर इंगित करता है जहाँ महत्वाकांक्षी अभिनेताओं का साक्षात्कार होता है.ये एक प्रकार का व्यापक सेक्स स्कैंडल है.
फ़िल्म उद्योग मे प्रवेश पाने वाली कई ललनाओ को काम पाने के लिये इज्जत लुटानी पड़ती है. ये जरुरी नहीं कि सभी लोग ऐसे रहते है पर ऐसे हरकते आजकल आम बात बन गई है. कई सब कुछ लुटाके काम पाते है तो कुछ हीरोइन इसका सख़्ती से विरोध करती है. और करियर को छोड़ देती है. ऐसे अनेकों प्रसंग बन चुके है.
बॉलीवुड की दुनिया बाहर से जीतनी हसीन है अंदर से उतनी ही बदनाम है. बॉलीवुड में कास्टिंग काउच एक ऐसा काला सच है जो नए टैलेंट को इसी बदनामी के रास्ते से ले जाकर टोप पर बैठाता है.
बॉलीवुड में कास्टिंग काउच के सवाल पर मशहूर कोरियोग्राफर सरोज खांन का कहना है , कि हर क्षेत्र में ऐसा होता है महिलाओं का शोषण, राजनीत भी इससे अछूता नहीं है. सिर्फ बॉलीवुड को बदनाम करना नाइंसाफी है.
महिलाओंका शोषण आदि काल से होते आ रहा है. इसी लिये गुजराती मे कहावत है कि,” राजाने गमे ते रानी. ” अर्थात राजा को पसंद आयी वो रानी. राजा महाराजा ओ मे भी बहु पत्नीत्व का रिवाज़ था. वैदिक काल मे बड़े बड़े ज्ञानी ऋषि मुनि भी अपनी पत्नी के साथ जीवन व्यतीत करते थे.
नारी को हर युग मे भोग विलास का साधन समजा गया है. बर्षो से अन्याय सहन करते आयी है. जरुरियत है नारी के प्रति दृश्टिकोण बदलनेकी. नारी सशक्तिकरण की बातें तो हम लोग करते है, मगर परिस्थिति कोल्हू के बैल की तरह है, चले सौ कोस मगर वही के वही…. !!!.
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शिव सर्जन प्रस्तुति.