मीनाकुमारी अपनी बेजोड़ सुपर डुपर अदाकारी की वजह से बॉलीवुड फ़िल्म इंडस्ट्रीज में अमर बन गई. वैसे
मीना कुमारी का असली नाम महजबीं बानो था और ये मुंबई ( तब बंबई ) में पैदा हुई थीं. उनके पिता अली बक्श पारसी रंगमंच के जानेमाने कलाकार थे और उन्होंने फ़िल्म “शाही लुटेरे” में संगीत भी दिया था.
मीनाकुमारी की माता प्रभावती देवी भी एक मशहूर नृत्यांगना और अदाकारा थी. उनका नाम अली बख्श से शादी के बाद इकबाल बेगम हो गया.
कहा जाता है कि गरीबी से त्रस्त उनके पिता अली बक़्श उन्हें पैदा होते ही मुस्लिम यतीमखाने के बाहर सीढ़ियों पर छोड़ आए थे. मगर अपने नवजात शिशु से दूर जाते-जाते पिता का दिल भर आया और तुरंत अनाथाश्रम की ओर चल पड़े. पास पहुंचे तो देखा कि नन्ही मीना के पूरे शरीर पर चीटियाँ काट रहीं थीं.
अनाथाश्रम का दरवाज़ा बंद था, हो सकता है, अंदर सब सो गए हो. यह सब देख उस लाचार पिता की हिम्मत टूट गई, और आँखों से आँसु टपकने लगे. उसने अपनी नन्हीं मुन्नी को अपने दिल से लगा लिया.
अली बक़्श अपनी बेटी को घर ले आए. और अंतिम सांस तक मीना का साथ नहीं छोड़ा. एक्शन क्वीन मीना कुमारी को भारतीय सिनेमा की ट्रैजेडी क्वीन भी कहा जाता है. अभिनेत्री होने के साथ-साथ मीना कुमारी एक उम्दा शायारा एवम् पार्श्वगायिका भी थीं.
मीनाकुमारी का जन्म, तारिख : 1 अगस्त, 1932 के दिन हुआ था. मिना कुमारी (महजबीं) पहली बार सात साल की उम्र में सन 1939 में निर्देशक श्री विजय भट्ट की फिल्म “लैदरफेस” में बेबी महज़बीं के रूप में नज़र आईं थी. सन 1940 की फिल्म “एक ही भूल” में विजय भट्ट ने इनका नाम बेबी महजबीं से बदल कर बेबी मीना कर दिया था.
सन 1946 में आई फिल्म बच्चों का खेल से बेबी मीना 13 वर्ष की आयु में मीना कुमारी बनीं. मार्च 1947 में लम्बे समय तक बीमार रहने के कारण उनकी माँ की मृत्यु हो गई. मीना कुमारी की प्रारंभिक फिल्में पौराणिक कथाओं पर आधारित होती थीं , जिनमें हनुमान पाताल विजय, वीर घटोत्कच व श्री गणेश महिमा प्रमुख हैं.
मीना का वास्तविक नाम महज़बीं बानो था, “मीना कुमारी नाज़” नाम से शायरी किया करती थीं. मीना कुमारी नहीं चाहतीं थीं कि उनकी गज़लें और नज़्में कहीं प्रकाशित हों. अपने दोस्त गुलज़ार के साथ उनकी बैठकें हुआ करती थी और दोनों के बीच आपसमे शेर-ओ-शायरी, सुनने-सुनाने का दौर चला करता था. मीना कुमारी की मौत के बाद गुलज़ार ने उनकी नज्मों और गज़लों का “तन्हा चांद’” के नाम से संकलन जारी किया.
सन 1962 की बात है. मिना को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए तीन फिल्मों को नामिनेशन मिला था, (1) “साहिब बीवी और गुलाम”, (2) ” मैं चुप रहूंगी” और (3) “आरती”. तीनों ही फिल्मों की नायिका थीं, मीना कुमारी. उस साल मीना कुमारी का कम्पीटीशन, मीना कुमारी से ही था. यह वह अवसर था जब नॉमिनेशन के साथ ही तय हो गया था किस अभिनेत्री को उस साल का फिल्म फेयर अवार्ड मिलेगा.
अवार्ड, ” न जाओ सैंया छुड़ा के बैंया ” गीत को पर्दे पर साकार करने वाली “साहिब बीवी और गुलाम” की “छोटी बहु” को मिला. इस फिल्म को बर्लिन अंतर्राष्ट्रीय समारोह के लिए नामांकित किया गया, जहां मीना कुमारी जी को प्रतिनिधित्व के लिए चुना गया.
मीना कुमारी ने अपने जीवन की शुरुआत कुछ फिल्मों में पार्श्व गायन के साथ की थी. बाद में उन्होंने एक्टिंग पर ध्यान केंद्रित किया. भले ही उनके गाए गीत पॉपुलर नहीं हुए लेकिन उन पर फिल्माए गए गीतों को लोग बड़े प्रेम से सुना करते थे.
मिना की अंतिम फिल्म “पाकीज़ा” में लता मंगेशकर द्वारा गाए गीत आज भी लोगोंकी जुबान पर हैं, इन्हीं लोगों ने ले लीना दुपट्टा मेरा, चलो दिलदार चलो, यूं ही कोई मिल गया था, ठाड़े रहियो ओ बांके यार. ये सुपरहिट गाने लोग आज भी बार बार सुनते है.
मीनाकुमारी के उपर फिल्माए गये गीतो में , हम तेरे प्यार में सारा आलम खो बैठे (दिल एक मंदिर), पिया ऐसो जिया में (साहिब बीवी ओर गुलाम), तोरा मन दर्पण कहलाए (काजल), हम इंतजा़र करेंगे तेरा कयामत तक (बहु बेगम), नगमा ओ शेर की बारात किसे पेश करूं (गज़ल), दिल जो न कह सका (भीगी रात), दूर कोई गाए धुन ये सुनाए (बैजू बावरा) और ना बोले ना बोले राधा न बोले रे (आजाद) भी खूब सुने जाते हैं.
उनकी चर्चित फिल्मों में चांदनी चौक, एक ही रास्ता, आजाद (दिलीप कुमार), यहूदी, शारदा, सहारा, दिल अपना प्रीत पराई, कोहिनूर, मैं चुप रहूंगी, चित्रलेखा, काजल, दिल एक मंदिर शामिल हैं. गुलज़ार की शत्रुघ्न सिन्हा और विनोद खन्ना अभिनीत “मेरे अपने” में नानी मां की भूमिका में भरपूर सराहना मिली.
मीनाकुमारी की कुछ खास बातें :
(1) कैसे टूटी बाएं हाथ की उंगली ?
फिल्म बैजू बावरा के बाद मीनाकी लाइफ में कई हादसे हुए. एक बार की बात है जब मीना मुंबई और महाबलेश्वर के रास्ते में कहीं जा रही थीं तो उनका एक्सीडेंट हो गया था. ये एक्सीडेंट इतना खतरनाक था कि इस एक्सीडेंट में मीना की बाएं हाथ की उंगली तक टूट गई थी, यही कारण है कि मीना ज्यादातर फिल्मों के दौरान अपनी बाएं हाथ की उंगली को दुपट्टे में लपेटे नजर आती थीं.
(2) मिना कुमारी की शुरुआती फ़िल्म :
मीनाकुमारी (महजबीन) ने छोटी उम्र में ही घर का सारा बोझ अपने कंधों पर उठा लिया था. सात साल की उम्र से फिल्मों में काम करने लगीं. और बेबी मीना के नाम से पहली बार फिल्म “फरजद-ए-हिंद” में नजर आईं. इसके बाद लाल हवेली, अन्नपूर्णा, सनम, तमाशा आदि कई फिल्में कीं. लेकिन उन्हें स्टार बनाया 1952 में आई फिल्म “बैजू बावरा” ने. इस फिल्म के बाद वह लगातार शोहरत की बुलंदियां चढ़ती ही गईं.
(3) मिनाकुमारी की फ़िल्म पाकीजा :
पाकीज़ा को बनने में लगभग 14 साल का समय लगा था. इस फिल्म के निर्देश कमाल अमरोही ने फिल्म के एक सीन के लिए फव्वारों में गुलाब जल तक डाले थे. फव्वारे हूबहू ताज महल के पास बने फव्वारों जैसे बनाए गए थे. फिल्म में मीना कुमारी ने अपने सभी कॉस्ट्यूम डिज़ाइन किए थे. ये उनकी आखिरी फिल्म थी. फिल्म पाकीज़ा का नाम एक बार बीच में बदलकर ” लहु पुकारेगा” कर दिया गया था, लेकिन बात कुछ जमी नहीं, इसलिए कमाल ने फिर से फिल्म का नाम “पाकीज़ा” रख दिया था.
(4) मीनाकुमारी की बीमारी :
मीना कुमारी इतनी बीमार हो गईं कि उनका इलाज कर रहे डॉक्टर ने सलाह दी कि नींद लाने के लिए एक पेग ब्रांडी पिया करें. डॉक्टर की यह सलाह भारी पड़ी. एक पेग, दो, तीन और चार होता गया. मीना कुमारी को शराब की लत लग गई. इस बीच में “पाकीजा” का निर्माण भी रुक गया.
(5) मीना पर राज कुमार फिदा थे :
अपने अनोखे अंदाज़ और बेहतरीन अदाकारी के लिए पहचाने जाने वाले एक्टर राज कुमार भी मीना के हुस्न के दीवाने थे. वह फिल्म पाकीज़ा के दौरान अक्सर मीना की खूबसूरती को देखकर अपने डायलॉग भूल जाया करते थे. जब ये बात कमाल अमरोही को पता चली तो उन्होंने इस बात के लिए राज कुमार को समझाया की मीना केवल उनकी है.
(6) पार्श्व गायिका के रूपमें मिना :
मीना कुमारी एक पार्श्व गायिका भी थीं. उन्होंने 1945 तक बहन जैसी फिल्मों के लिए एक बाल कलाकार के रूप में गाया. एक नायिका के रूप में, उन्होंने दुनिया एक सराय (1946), पिया घर आजा (1948), बिछड़े बालम (1948) और पिंजरे के पंछी (1966) जैसी फिल्मों के गीतों को अपनी सुर भरी आवाज दी. मिना जी ने पाकीज़ा (1972) के लिए भी गाया, हालांकि, इस गाने का फिल्म में इस्तेमाल नहीं किया गया था और बाद में इसे पाकीज़ा-रंग बा रंग (1977) एल्बम में रिलीज़ किया गया था.
(7) पाकीजा का रुका शूटिंग:
” पाकीजा ” कमाल अमरोही की महत्वाकांक्षी फिल्म थी, पर वह इसे आगे नहीं बढ़ा पा रहे थे. सालों बाद सुनील दत्त और नर्गिस ने इसकी शूटिंग शुरू करवाई थी. इस बहाने तलाक के बाद पहली बार कमाल और मीना की मुलाकात हुई थी. इस मुलाकात में मीना कुमारी कमाल का हाथ पकड़ कर खूब रोई थीं.
(8) पाकीजा का दोबारा शूटिंग :
” पाकीजा” की शूटिंग दोबारा शुरू की गई. 14 साल बाद ता : 4 फरवरी, 1972 को फिल्म पर्दे पर आई. तब तक मीना मीना की हालत काफी बिगड़ चुकी थी. बीमारी की हालत में भी वह फिलमें कर रही थीं, लेकिन उनका रोग लाइलाज था. उनको लिवर सिरोसिस की बीमारी थी. अतः तारिख : 31 मार्च 1972, गुड फ्राइडे वाले दिन दोपहर 3 बजकर 25 मिनट पर महज़ 38 वर्ष की आयुमें मीना कुमारी ने अंतिम सांस ली.
पति कमाल अमरोही की इच्छानुसार उन्हें बम्बई के मज़गांव के रहमताबाद कब्रिस्तान में दफनाया गया.
मीना के पति कमाल अमरोही की 11 फरवरी 1993 को मृत्यु हुई और उनकी इच्छनुसार उन्हें मीना के बगल में दफनाया गया.
मीनाकुमारी को मिले पुरुस्कार :
वर्ष फ़िल्म परिणाम
*1954 बैजू बावरा जीत
*1955 परिणीता जीत
*1956 आज़ाद नामित
*1959 सहारा नामित
*1960 चिराग कहां
रोशनी कहां नामित
*1963 साहिब बीबी
और ग़ुलाम जीत
” आरती नामित
” मैं चुप रहुंगी नामित
*1964 दिल एक मंदिर नामित
*1966 काजल जीत
*1967 फूल और पत्थर नामित
*1973 पाक़ीज़ा नामित