आपको पता है ? दुनिया की सबसे ऊंची चोटी से जुड़ा माउंट एवरेस्ट पर्वत का नाम एक प्रसिद्ध वेल्श सर्वेक्षक और भूगोलवेत्ता सर जॉर्ज एवरेस्ट के नामपर रखा गया है, जिसकी सन 1830 से लेकर सन 1843 तक भारत के सर्वेयर जनरल के रूप में नियुक्त थे.
ब्रिटिश सर्वेक्षकों द्वारा इस पर्वत को मूल रूप से पीक XV कहा जाता था. सबसे पहले इसे 1856 में किस ने देखा था, लेकिन बाद में 1865 में सर जॉर्ज एवरेस्ट के सम्मान में इसका नाम बदल दिया गया था. पर्वत का स्थानीय नाम नेपाली में सागरमाथा या तिब्बती में चोमोलुंगमा है, जिसका अनुवाद “ब्रह्मांड की माता” होता है.
आश्चर्य की बात है कि जॉर्ज एवरेस्ट जिसका जन्म ता : 4 जुलाई 1790 व ता : 01 दिसंबर 1866 के दिन उसकी मृत्यु हो गई थी, वें कभी भी उस चोटी को नहीं देख पाए जिस पर उनका नाम अंकित है. सर एवेरेस्ट के पास भूगोल के इतिहास पर अपनी छाप छोड़ने के लिए पर्याप्त योग्यता थी.
सर एवरेस्ट का पालन-पोषण लंदन के एक प्रतिष्ठित ग्रीनविच पड़ोस में हुआ था. उन्होने भारत में सैन्य करियर बनाने के लिए 16 वर्ष की उम्र में अपना गृहनगर छोड़ दिया था. अंकगणित और खगोल विज्ञान के लिए उनकी योग्यता ने जल्द ही उन्हें सर्वेक्षण पदों पर काम करने के लिए प्रेरित किया और 1818 में परियोजना के निदेशक विलियम लैम्बटन ने एक प्रमुख सहायक के रूप में उनकी सेवाओं का अनुरोध किया.
पर्वत की चोटी, जिसे अंग्रेज पहले पीक XV कहा करते थे. सन 1865 में आधिकारिक तौर पर इस चोटी का नाम बदलकर एवरेस्ट कर दिया गया था. सर जॉर्ज एवरेस्ट सन 1806 में ईस्ट इंडिया कंपनी में शामिल हुए और अगले सात साल बंगाल में बिताए थे. उन्होंने 1806 में काम शुरू किया और 2,400 किलो मीटर से भी बड़े क्षेत्र में भारतीय महान त्रिकोणमितीय सर्वेक्षण पूरा किया था.
सर्वेक्षक जनरल के रूप में कार्य करते हुए एवरेस्ट ने उस समय के सबसे सटीक सर्वेक्षण उपकरण पेश किए थे. सर जॉर्ज एवरेस्ट सेवानिवृत्त होकर सन 1843 में सर्वेयर जनरल का पद छोड़ कर यूके लौट आए थे.
सर एवेरेस्ट को उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें 1861 में नाइट की उपाधि से सम्मानित किया गया था.
माउन्ट एवरेस्ट की चोटी पर चढ़ना असंभव सा था, मगर 70 साल पहले सन 1953 में न्यूजीलैंड के एडमंड हिलेरी और नेपाल के शेरपा तेनजिंग नोर्गे ने पहली बार एवरेस्ट पर पहुंचकर इतिहास रचा था. यह 29 मई का दिन था, जब दोनों पर्वतारोहियों ने एवरेस्ट की चोटी पर कदम रखा था.
भारतीय पर्वतारोहक में ता : 20 मई 1965 को लेफ्टिनेंट कर्नल अवतार एस चीमा, गुरदयाल सिंह और नवांग गोम्बू शेरपा चोटी पर चढ़े थे और यह उपलब्धि हासिल करने वाले पहले भारतीय बने थे . यह दूसरी बार था जब नवांग गोम्बू शेरपा ने माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई की थी पहला 1963 में अमेरिकी अभियान के साथ था.
बिना ऑक्सीजन के माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाला पहले व्यक्ति मेस्नर और हैबेलर थे. ता : 8 मई 1978 को दोपहर 1 से 2 बजे के बीच ये सिद्धि हासिल की थी.
अधिकतर लोगों को पता नहीं है कि सर जॉर्ज एवरेस्ट ने शायद कभी माउंट एवरेस्ट देखा ही नहीं, उस पर चढ़ना तो दूर की बात है. और तो और, वह इस विचार से भी सहज नहीं थे कि पहाड़ का नाम उनके नाम रखा जाए.
सर जॉर्ज एवरेस्ट वर्ष 1830 से लेकर 1843 तक भारत में नक्शे और मानचित्र बनाने वाली संस्था सर्वे ऑफ इंडिया के प्रमुख थे. जबकि उनका इस पर्वत से कोई संबंध नहीं था. भारत के गणितज्ञ श्री राधानाथ सिकदार ने इस चोटी की ऊंचाई सबसे पहली पता की.
सन 1852 में राधानाथ सिकदर ने पीक 15 नामक पर्वत शिखर को मापने का काम शुरू किया. उस समय माउंट एवरेस्ट को नेपाली में सागरमाथा या तिब्बती में चोमोलुंगमा नाम से जाना जाता था. तब विदेशियों को नेपाल की सीमा में दाखिल होने की इजाजत नहीं थी. एक विशेष उपकरण की मदद से श्री राधानाथ सिकदर ने पीक 15 की ऊंचाई 8839 मीटर रिकॉर्ड की थी.
गणितज्ञ राधानाथ सिकदर पश्चिम बंगाल के रहने वाले थे. और उन्होंने ही पहली बार माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई को रिकॉर्ड किया था. लेकिन भारत की गुलामी के कारण ब्रिटीश साम्राज्य ने उनके नाम को उजागर नहीं किया. और इस महान खोज का श्रेय सर एंड्रयू स्कॉट वॉ को दे दिया गया था.
सर एंड्रयू स्कॉट वॉ उस समय ऑफ इंडिया के डायरेक्टर थे. सर एंड्रयू स्कॉट वॉ ने गणितज्ञ राधानाथ सिकदर के द्वारा मापी गई ऊंचाई का 4 साल तक अध्ययन किया था. सर एंड्रयू स्कॉट वॉ, सर जॉर्ज एवरेस्ट को अपना गुरू मानते थे. शायद इसी वजह से दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट का नाम 1865 में रॉयल ज्योग्राफिकल सोसायटी के प्रमुख सर जॉर्ज एवरेस्ट के नाम पर दिया गया है.
उल्लेखनीय है कि सन 1865 से पहले जब मांउट एवरेस्ट की ऊंचाई नहीं मापी गई थी. तो कंचनजंगा को सबसे ऊंची चोटी के रूप में जाना जाता था. यह सिक्किम के उत्तर पश्चिम भाग में नेपाल की सीमा पर स्थित ये चोटी 8,586 मीटर के साथ दुनिया में तीसरे नंबर पर आती है.